ट्रैफिक प्रहरी अभियान में शामिल होकर डॉ. अर्पण जैन ने जागरूकता में दिया योगदान

सड़क सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी, आदतें बदलने से होगा सुधार

इंदौर। ट्रैफिक पुलिस द्वारा संचालित “ट्रैफिक प्रहरी अभियान” लगातार शहर में सड़क सुरक्षा और यातायात में जनसहभागिता बढ़ाने का कार्य कर रहा है।
इसी कड़ी में डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’, अध्यक्ष-मातृभाषा उन्नयन संस्थान और सामाजिक कार्यकर्ता सौरव गौसर ने अभियान से जुड़कर अपनी सक्रिय सहभागिता दी। डॉ.जैन द्वारा यातायात पुलिस के साथ खड़े होकर वाहन चालकों को सड़क सुरक्षा, नियमों के पालन और जिम्मेदार ड्राइविंग के प्रति जागरूक किया गया। उन्होंने कहा कि “जिस तरह इंदौर ने स्वच्छता में देशभर में सिरमौर बनकर मिसाल कायम की है, उसी तरह यदि नागरिक ट्रैफिक नियमों का जिम्मेदारी से पालन करें, तो हम सभी की सहभागिता से इंदौर यातायात व्यवस्था में भी बेहतर बना सकते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि “अभियान में शामिल होकर मैं स्वयं अनुभव कर रहा हूँ कि यातायात संचालन कितना चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यदि इंदौरवासियों का सहयोग मिलेगा, तो सड़क हादसों में निश्चित रूप से कमी आएगी और शहर की यातायात व्यवस्था और भी सुगम व सुरक्षित बनेगी।”

विकास के नाम पर ‘इंदौर की मौत’

तरक़्क़ी की गगनचुम्भी इमारत खड़ी करने की कवायद है, शहर को मेट्रो पर दौड़ाने की तैयारी जारी है, मास्टर प्लान लागू करने की बेहद जल्दी है, पर इन सबके बीच शहर के बीचोबीच बना जंगल उजाड़ा जा रहा है, पुरानी और ऐतिहासिक इमारतों को तोड़ने की चर्चा आम है। शहर की पुरानी सड़कों को दुरुस्त करने की बात तो होती है, पर बैठकों में सीधे फ़रमान जारी होता है, अतिक्रमण के नाम पर धरोहरों को तोड़ दो।
साहब! इंदौर अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक वैभव के कारण जाना जाता है, विश्व की धरोहरों में शामिल राजवाड़ा जैसी इमारतों के साथ-साथ यहाँ की परम्पराएँ जैसे रंगपंचमी की गैर, अनंत चतुर्दशी की झाँकियाँ और अन्य कई उत्सव और इमारतें इस शहर की पहचान हैं।
एक तरफ़ अफ़सर यह कहते हैं कि 100 फ़ीट की सड़कें तैयार करनी हैं, तो बीच में आने वाले मकान तोड़ दो। पर वही अफ़सर इस बात पर मौन है कि मुआवज़ा कितना देना चाहिए, जिनके पास सालों से पट्टे या रजिस्ट्री हैं।
आपने आज चुना मास्टर प्लान पर 100 साल पहले या 200 साल पहले कोई मास्टर प्लान नहीं था, तात्कालिक लोगों ने अपनी ज़मीन ख़रीदी और मकान बनाए, पर आज के काग़ज़ अब उन्हें अपनी धरोहरों को अतिक्रमण साबित करने से बचाने में लगे हैं। आख़िरकार इस तरह के विकास की अंधाधुंध दौड़ से इंदौर की मौत होगी।
मर जाएगा यह उत्सवधर्मी शहर, क्योंकि इस शहर की साँस इसकी ऐतिहासिकता के कारण चल रही है। एमजी रोड, भमोरी चौराहे से एमआर 10 वाली सड़क सब तरफ़ अफ़सरों ने अतिक्रमण दिखा दिया जबकि शहर विकास के नाम पर छला जा रहा है।
शहर की मौत के ज़िम्मेदार वे जनप्रतिनिधि भी होंगे, जो इस कृत्य पर मौन हैं। जब विकास का दुःशासन शहर की पांचाली का चीर हरण कर रहा है और जितने धृतराष्ट्र, पितामह भीष्म अपना मौन धारण कर रहे हैं, वे सबके सब अपराधी ही माने जाएँगे। इतिहास इन जनप्रतिनिधियों को भी माफ़ नहीं करेगा।
एक तरफ़ मेट्रो को दौड़ाने की जल्दबाज़ी है तो दूसरी तरफ़ पार्किंग न होना शहर पर बोझ है। ऐसे में शहर इंदौर मर रहा है, अब इसे बचाने के लिए क्या फिर किसी कृष्ण के जन्म की सद्इच्छा रखनी होगी या फिर शहर यूँ ही मर जाएगा!

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा, इंदौर

मीडिया का उतावलापन है बेहद घातक

चौथा खम्बा

समाचारों को भेजने और ख़बर को ब्रेक करने की रणनीति, ‘पहले हम-पहले हम’ की अनावश्यक भागमभाग, फ़्लैश करने की हड़बड़ी और इन सबके बीच विश्वसनीयता का गहरा संकट आज की मीडिया के सामने मुँहबाहें खड़ा हुआ है।
बीते दिनों फ़िल्म अभिनेता धर्मेन्द्र के मामले में भी यही नज़र आया। देश के सबसे बड़े चैनल होने का दावा देने वाले न्यूज़ चैनल और उससे जुड़े पत्रकारों ने धर्मेन्द्र के निधन के समाचार अपने चैनल और सोशल मीडिया हैंडल पर चला दिए। इस समाचार को देख लाखों प्रशंसकों ने अपने सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि तक दे दी, यहाँ तक कि कई बड़े राजनेताओं ने भी शोक संदेश तक जारी कर दिए। इसी बीच धर्मेन्द्र की पत्नी हेमा मालिनी एवं बेटी ईशा देओल ने पिता के जीवित होने का ट्वीट कर मीडिया को कोसा भी।
सच भी यही है कि, किसी व्यक्ति के अत्यधिक अस्वस्थता होने पर भी परिवार जीवित होने की प्रार्थनाएँ करता है और ऐसे मुश्किल समय मीडिया का इस तरह का गैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार परिवार को भी आहत करता है।
ऐसा पहली बार भी नहीं हो रहा है, बीते 5 वर्षों में कम से कम दसियों विशिष्ट व्यक्तित्व के मामलों में मीडिया के लोगों का इस तरह अपुष्ट समाचार प्रसारित करना मीडिया की गंभीरता पर प्रश्न चिह्न लगाता है और विश्वसनीयता पर भी संकट खड़ा होता है।
पुलवामा हमले के बाद कश्मीर एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में दुश्मन देश पाकिस्तान द्वारा ड्रोन हमले किए जा रहे हैं, उसी समय एक बड़े चैनल ने वीडियो गेम वाले ड्रोन वीडियो लाइव चैनल पर चला कर भी आमजन के बीच किरकिरी करवाई थी।
आख़िर अमानुषता मीडिया के क्षेत्र में क्यों हावी होती जा रही है? यह भी विषय खोजने का है। आख़िर किस बात की इतनी जल्दबाज़ी है कि मीडिया के साथी बिना पुष्टि और ठोस आधार के गंभीर मुद्दों पर भी जनभावना से खिलवाड़ करने वाली ख़बरें प्रसारित कर देते हैं? जब हाल बड़े चैनलों का इस तरह का है तो छोटे समाचार संस्थाओं की तो हालत और भी खस्ता है। आधे से ज़्यादा न्यूज़ पोर्टल और रीजनल चैनल अपने सोशल मीडिया पर नाम के बड़े चैनलों को ही ख़बर की पुष्टि मानकर कॉपी-पेस्ट की रणनीति के तहत ख़बरें प्रसारित कर देते हैं। उन्हें अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा वैसे भी कई मामलों में भारतीय मीडिया अब जनता के बीच कम विश्वसनीय बचा है, रही सही कसर इस तरह के घटनाक्रम पूरी कर देते हैं। अब भी समय विश्वसनीयता पुनः स्थापित करने में गंभीरता दर्शाने का है, अन्यथा एक दिन मीडिया देश में अप्रासंगिक हो जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा, इंदौर

न्यूज़ वेबसाइट के सामने मंडराता वैधानिकता का संकट

चौथा खम्बा

देश और दुनिया डिजिटल होती जा रही है, कम्प्यूटर युग चल रहा है और इसी दौर में भारत में डिजिटल क्रांति की हुँकार भरने वाली सरकारें भी मीडिया के डिजिटलीकरण पर अपनी उदासी ज़ाहिर कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना आईटी प्रेम तो जताते हैं, पर उदासीनता मीडिया के क्षेत्र में अव्वल है। 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया परियोजना की शुरुआत की थी।
अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र ने 30 जून 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की अगुआई में इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को क़ानूनी मान्यता दे कर उस राष्ट्र के सम्पूर्ण डिजिटल होने का प्रमाण दे दिया था, उसी तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश में डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में जुटे हैं। इसलिए भारत में मीडिया संस्थानों ने भी स्वयं को डिजिटल युग के साथ-साथ गठजोड़ बनाने के उद्देश्य से तैयार करना शुरू कर दिया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने के उद्देश्य से दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा। किन्तु उन वेबसाइटों का पंजीयन, क़ानूनन मान्यता अब भी अधर में लटकी हुई है।
जिस प्रकार भारत में समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिए तमाम तरह की मान्यताएँ लेनी होती हैं, जिनमे भारत सरकार के अधीनस्थ ‘भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय’ की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसके पंजीयन होने के बाद ही उसे टाइटल और आरएनआई नंबर मिलता है और फिर समाचार पत्र का प्रकाशन होता है, उसी तरह डिजिटल पोर्टल के पंजीयन की दिशा में सरकार का कोई ख़ास ध्यान नहीं है। मान्यता या वैधानिकता के अभाव में पोर्टल को आज भी कोई विशेष तवज्जों नहीं मिल रही।

सरकारों ने न्यूज़ वेबसाइटों के लिए विज्ञापन नीति तो बनाई है किन्तु विज्ञापन नीति के अतिरिक्त भी महत्त्वपूर्ण विषय न्यूज़ पोर्टल या कहें न्यूज़ वेबसाइटों की क़ानूनन मान्यता की है। राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना, जो भारत में संचालित वेब न्यूज़ पोर्टल की रीति-नीति बना पाए, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को क़ानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा। यदि इसी तरह चलता रहा तो वैधानिकता के अभाव में न्यूज़ पोर्टल संचालित तो होंगे पर बेलगाम ही रहेंगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
इंदौर, मध्यप्रदेश

एआई के दौर में ज़रूरी है पत्रकारों की तकनीकी दक्षता

चौथा खम्बा

घटना हुई, पॉइंट बना, ब्रेकिंग हुई, इसी बीच वेबसाइट या सोशल मीडिया पर पूरा घटनाक्रम समाज के सामने आ गया, इस तकनीकी दौर में जो तत्परता सोशल मीडिया का उपयोगकर्ता दिखाता है, उससे कहीं अधिक तत्परता ज़िम्मेदार पत्रकार को भी रखनी होगी, अन्यथा उसकी प्रासंगिकता समाप्त हो जाएगी। और तत्परता के साथ-साथ ख़बरों की पुष्टि भी महत्त्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है।
ऐसे तकनीकी दौर में पत्रकारों को नए मीडिया के साथ क़दमताल करना भी आना चाहिए। तमाम अनुभवों के बाद भी जब तकनीक की बात आती है तो पत्रकार पिछड़ते जाते हैं। इस प्रयोजन के लिए पत्रकारों को नए ज़माने के टूल्स के साथ अपना नाता बनाना होगा।
जैसे-जैसे डिजिटल मीडिया अपना विस्तार कर रहा है, वैसे-वैसे पत्रकारों को भी सूचनाओं की पुष्टि, उनका प्रेषण और प्रकाशन भी त्वरित करने की आदत डालनी होगी।
देश के कई संस्थान अपने व्यय पर तकनीकी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं, और व्यक्ति निजी रूप से भी तकनीक को सीख सकता है।
जैसे एआई और ग्रुक का प्रयोग, ईमेल तकनीक, वॉइस टाइपिंग और वीडियो एडिटिंग के साथ-साथ अब नए टूल्स भी सीखना अनिवार्य होगा। कैसे गूगल का उपयोग कर सकते है,? कैसे ख़बरों के वेरिफ़िकेशन की नई टेक्नीक का इस्तेमाल कर सकते हैं? इन सबके अतिरिक्त प्रत्येक पत्रकार को अब सोशल मीडिया मार्केटिंग और सर्च इंजिन ऑप्टिमाइज़ेशन की जानकारी होना भी ज़रूरी है। अपनी ख़बरों को कैसे वायरल करें? यूट्यूब पर कैसे ख़बरे प्रसारित होती हैं? इन विषयों पर भी गंभीरता के साथ प्रशिक्षित होना आवश्यक होगा।
आने वाले समय में मोबाइल जर्नलिस्म बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहा है, ऐसे में हर पत्रकार को मोजो सीखना होगा ताकि अपना वजूद स्थापित रख सके, वरना नई तकनीक पुराने तरीकों को धूल धूसरित कर रही है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा, इंदौर

मानवता की परिधि से बाहर होता इन्दौर

सच ही पढ़ा कि यह शहर अब अमानवीय होने पर आमादा है। शहर ही नहीं अपितु यहाँ आने वाले अफ़सरों को भी अमानवीयता की कार्यशाला का हिस्सा बनाकर भेजा जाता है। अफ़सरों से पहले जनप्रतिनिधियों की पाठशाला में मानवता को सरेआम कुचलना ही पदोन्नति का पर्याय हो गया है।
अब क्या ही कहें इस शहर को, जो अपने बाशिंदों की मौत पर भी मौन है?
शब्दों ने अपनी आत्मा के चोले को उतार फेंका है, बचे हुए अक्षर अब मातम मनाने का ढोंग कर रहे हैं। यही न कहें तो क्या कहें उस शहर के बारे में जो तरक़्क़ी की ऊँची-ऊँची इमारतों पर इतरा तो रहा है पर हादसों की जद में आए अपने ही लोगों की मौत पर भी मौन है।
सोमवार को इन्दौर के एरोड्रम रोड पर शाम को एक ट्रक, जो कई गाड़ियों और सड़क पर चलने वालों को मदमस्त रौंदता हुआ बढ़ गया और फिर बाद में 8 लोगों की अधिकृत मौत हो गई, कई घायल हो गए। सवाल सबसे पहला यहीं से शुरू होता है कि ‘ट्रक उस क्षेत्र में घुसा कैसे?’
फिर बात आती है कि इस हादसे के बाद शहर की क्या प्रतिक्रिया रही? फिर अफ़सरों ने कितनी लीपा-पोती की और फिर नेताओं का एकतरफ़ा मौन!
कमाल है, जो शहर मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रभार वाला शहर हो, जहाँ अफ़सरों की तैनाती में भी मुख्यमंत्री कार्यालय का दख़ल होता हो, ऐसे दौर में वे अफ़सर क्यों मौन बैठ गए कि ट्रक ने कैसे रौंद दिया! और कितनी साफ़-सफ़ाई रखकर सड़क साफ़ करवाई जा सकें।
कुछ दिनों पहले शहर ही नहीं अपितु जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में नवजात शिशु को चूहे कुतर गए थे, तब भी अफ़सरों की चुप्पी तो झेल गए पर जनता की चुप्पी खल गई। एरोड्रम वाले हादसे के बाद भी जनता अगले दिन भूल कर अपने काम में लग गई।
पहले भी यही सब हुआ है। पहले जब सरवटे बस स्टैंड के होटल के गिरने से 11 लोग मर गए, रिवर साइड स्थित पटाखे की दुकान में लगी आग ने लोगों की जान ले ली, डीपीएस विद्यालय हादसे ने बच्चों की जान ले ली, और तो और रामनवमी पर बावड़ी के धसने से 36 लोग दब कर मर गए, तब भी कुछ मोमबत्तियों के सिवा हुआ क्या?
आज भी यही बात है कि शहर की चुप्पी और नेताओं के मौन ने अफ़सरों की मनमर्ज़ी को मानो इन्दौर को अमानवीय सिद्ध करने का काम किया है। जनप्रतिनिधियों के मौन ने यह बता दिया कि अफ़सर तंत्र के आगे वे भी बेबस हो गए, अब सुरेश सेठ जैसी बेझिझक शख़्सियत शहर में बची ही नहीं, जो माँ अहिल्या के मान को बचा कर शहर को इस तरह के हादसों का गुलाम बना दिया, जो हमेशा मौन धारण करके बैठ जाता है।
मुख्यमंत्री तो शहर में आए दिन आते रहते हैं, फिर भी वो केवल आश्वासन देकर रफ़ू चक्कर।
शहर में सैंकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवि, नेतृत्व कौशल लोग मौजूद हैं, पर सबका मौन शहर को मानवता की परिधि से बाहर कर रहा है, जिसे न रोका गया तो शहर इन्दौर व्यावसायिक तो बन जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएँगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

घनाक्षरी- प्रेम

कोमल अंग सी तुम
प्रेम का पवित्र रूप
प्रेम तुम से हुआ है
प्रेम जीत जाएगा

जीवन का एक छंद
पवन बहेगी मंद
प्रीत की फुहार बन
प्रेम गीत गाएगा

भाषा का शृंगार देख
मन बन हार देख
मानस तो भीगा हुआ
प्रेम मीत लाएगा

कहने को शब्द रीत
मनडोर बंधी प्रीत
जीवन जीयेगा और
प्रेम प्रीत पाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

जननायक या चुनावी नायक बन गए टंट्या मामा

जननायक या चुनावी नायक बन गए टंट्या मामा

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हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन

कहानी:

अनथक हिन्दी योद्धा डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ से खास भेंट

हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन

कहानी एक ऐसे व्यक्ति की जो हिन्दी भाषा को भारत में ही सम्मान स्वरुप राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संघर्षरत है, जो संगणक विज्ञान अभियंता होने के बावजूद स्थापित पत्रकारिता की उसके बाद भी हिन्दी माँ के प्रति जवाबदेही से कार्य कर रहे है। एक ऐसा शख्स जो हिन्दी को भारत में रोजगार मूलक भाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

 भारत माँ के स्वाभिमान पर जब-जब भी आँच आई है तब-तब धरा पर सपूतों का जन्म हुआ है, ऐसे ही सपूत का जन्म २९ अप्रैल १९८९ शनिवार को मध्यप्रदेश के सेंधवा में पिता सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा की कुक्षी से एक क्रांतिकारी पुत्र का जन्म हुआ जिनका नाम अर्पण रखा गया। अर्पण अपने माता-पिता के दो बच्चों में से सबसे बड़े हैं। उनकी एक छोटी बहन नेहल हैं। उनके पिता सुरेश जैन गृह और सड़क निर्माण का कार्य करते है। आपके दादा बाबूलालजी एक राजनैतिक व्यक्तित्व रहे। अर्पण जैन मध्यप्रदेश के धार जिले की छोटी-सी तहसील कुक्षी में पले बड़े, आरंभिक शिक्षा कुक्षी के वर्धमान जैन हाईस्कूल और शा. बा. उ. मा. विद्यालय कुक्षी में हासिल की, तथा फिर इंदौर में जाकर राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्धयालय के अंतर्गत एसएटीएम महाविद्यालय से संगणक विज्ञान (कम्प्यूटर साइंस) में बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई-कंप्यूटर साइंस) में स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही अर्पण जैन ने सॉफ्टवेयर व वेबसाईट का निर्माण शुरू कर दिया था। इसी दौरान सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी भी की। पिता के कारोबार में रूचि न होने और अपनी अलग दुनिया बनाने की इच्छाशक्ति ने अर्पण को तकनिकी योद्धा बनाया।

एक मध्यवर्गीय परिवार से आने वाले किसी भी शख्स का सपना क्या होता है? यही न कि एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद मोटी रकम वाली सम्मानजनक नौकरी मिल जाए। लेकिन अर्पण अपनी इस 9 से 5 वाली और मोटे वेतन वाली नौकरी से संतुष्ट नहीं थे। एक दिन उन्होंने अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकलने का फैसला किया और अपना खुद का उद्यम शुरू किया। सपने बड़े होने के कारण स्वयं की कंपनी बनाने का ख्वाब पूरा करने में अर्पण जुटे तो सही परन्तु दो माह बिना नौकरी के भी घर पर ही भविष्य की रणनीति बनाने के दौरान सभी बचत ख़त्म कर चुके अर्पण के जेब में मात्र १५० रुपये ही बचे थे। मात्र १५० रुपये लेकर ११ जनवरी २०१० को ‘सेन्स टेक्नोलॉजीस की शुरुआत हुई, अर्पण ने फॉरेन ट्रेड में एमबीए किया, तथा पत्रकारिता के शौक के चलते एम.जे. की पढाई भी की है। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’  पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। समाचारों की दुनिया ही उनकी असली दुनिया थी, जिसके लिए उन्होंने सॉफ्टवेयर के व्यापार के साथ ही खबर हलचल वेब मीडिया की स्थापना की और इसे भारत की सबसे तेज वेब चैनल कंपनियों में से एक बना दिया। सेंस टेक्नॉलजीस और खबर हलचल न्यूज भारत के लगभग 29 राज्यों में २०० से ज़्यादा लोगो के दल के साथ कार्यरत पंजीकृत कंपनी है।

इसी दौरान पत्रकारिता के उन्नयन हेतु कई पत्रकारिता संगठन में कार्य किया जैसे श्रमजीवी पत्रकार परिषद में बतौर महासचिव, इंदौर प्रेस क्लब, सेव जर्नलिस्म संस्थान के सदस्य आदि। इसके बाद पत्रकार संचार परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व भी संभाला। आप राष्ट्रीय मानव अधिकार परिषद महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे।

वर्ष २०१५ में शिखा जैन जी से उनका विवाह हुआ। विवाह उपरांत भी तन्मयता से पत्रकारिता और भाषा के सौंदर्य को स्थापित करने के लिए श्री जैन सतत संघर्षरत रहे। आपने अपनी कविताओं, आलेखों के माध्यम से भी समाज की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा हैं और आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता के आधार आंचलिक पत्रकारिता और समाज के लिए ज़्यादा लिखा हैं।

अर्पण ने व्यापार के दूसरे क्षेत्रों में भी उत्कृष्ट सफलताएँ प्राप्त की हैं। पत्रकारिता से अपने गहरे सरोकार को दर्शाते हुए उन्होंने भारत के पत्रकारों के लिए पहली सोशल नेटवर्किंग साइट ‘इंडियनरिपोर्टर्स.कॉम (www.IndianReporters.com)’ बनाई, जिसके फलस्वरूप पंजाब, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे भारत के सभी राज्यों के पत्रकार जुड़े हुए हैं। जैन ने कई संस्थाओं के साथ जुड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में भी और अन्य सामाजिक कार्यों और जनहितार्थ आंदोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।

समाचारों की दुनिया से जुड़े होने के कारण अर्पण का हिन्दी प्रेम प्रगाड़ होता चला गया, इसी के चलते वर्ष २०१६ में अर्पण ने मातृभाषा.कॉम की शुरुआत की और फिर तब से लेकर आज तक हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्यरत रहे। इस दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में हिन्दी भाषा के महत्व को स्थापित करने के लिए यात्राएँ की, जनमानस को हिन्दी से जोड़ा, और मातृभाषा उन्नयन संस्थान और हिन्दी ग्राम की स्थापना की। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत है, इसी प्रकल्प में योगगुरु और पतंजलि योगपीठ के सूत्रधार स्वामी रामदेव जी का आशीर्वाद मिला। वर्तमान में हिन्दी के गौरव की स्थापना हेतु व हिन्दी भाषा को राजभाषा से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ भारतभर में इकाइयों का गठन करके आंदोलन का सूत्रपात कर रहे हैं, और वे मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी है और हिन्दी ग्राम के संस्थापक भी हैं। डॉ. वेद प्रताप वैदिक के संरक्षण में संस्थान देश भर में हस्ताक्षर बदलो अभियान संचालित कर रही हैं। हिन्दी योद्धा, संगणक योद्धा और संवाद सेतु के माध्यम से सम्पूर्ण भारत में हिन्दी का प्रचार प्रयास कर रहे है।

डॉ अर्पण जैन अविचल का ध्येय वाक्य है ‘हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में’ इसी को सम्पूर्ण राष्ट्र का समर्थन मिल रहा है। डॉ जैन ‘एक घंटा राष्ट्र को, एक घंटा देह को और एक घंटा हिन्दी को’ जैसा आव्हान भी जनता से कर रहे है, जिसे भरपूर समर्थन मिल रहा है।

डॉ अर्पण जैन अविचल कहते है कि ‘हिन्दी भाषा भारत की सांस्कृतिक अखंडता को मजबूत करने में अग्रणी कारक है, हिन्दी के माध्यम से ही भारत के संस्कार बचे है क्योंकि हमारे राष्ट्र में संस्कार देने दादी-नानी की कहानियां महनीय भूमिका अदा करती है, ऐसे में दादी-नानी की कहानियों की भाषा हिन्दी है, इसलिए हिन्दी युग के निर्माण हेतु हिन्दी का संरक्षण और प्रचार-प्रसार आवश्यक है। तभी भारत के संस्कार बचेंगे और भारत बचेगा वर्ना गुलामी की स्थिति बनेगी।’

हिन्दी भाषा को प्रचारित एवं प्रसारित करने के उद्देश्य से ग्राम, नगर प्रान्त में श्री जैन व्याख्यान, परिचर्चा , गोष्ठियां आदि करते है, जनमानस को हिन्दी का महत्व समझाते हुए उसके राष्ट्रभाषा बनने के कारण बताते है और जनजागृति लाते है। वर्तमान में डॉ अर्पण जैन व मातृभाषा उन्नयन संस्थान की प्रेरणा से  लगभग ४ लाख से अधिक लोगों में प्रामाणिक रूप से अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करना प्रारंभ कर दिए है। डॉ अर्पण जैन के हिन्दी आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा डॉ प्रीति सुराना है जिन्हे डॉ जैन अपना प्रेरणा पुंज बताते है। इन्ही के साथ उनके अभिन्न मित्र और उप सैनानी कमलेश कमल जी भी है जो हिन्दी जे मानकीकरण पर कार्य कर रहे है और देश भर में कमल की कलम के माध्यम से हिन्दी को शुद्ध करने की दिशा में प्रयासरत है।

डॉ जैन से जब भी पूछों कि जीवन जीने का उद्देश्य क्या है, तब उनका एक ही जवाब होता है ‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में हमारा योगदान दर्शक का नहीं बल्कि कार्यकर्ता का हो, हमें तमाशा देखने वाला न समझा जाए, जब भी याद किया जाए तब ये कहा जाए कि ये लोग घरों में बैठे नहीं थे, इन्होने काम किया है।’

जिन लोगो से आप प्रेरणा पाते है उनकी सूची में शामिल है- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, बाबा नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर, बाबू विष्णु पाराडकर, गणेशचंद्र विद्धयार्थी, प. दीनदयाल उपाध्याय ( एकात्मवाद के कारण), डॉ. अबुल पॅकिर जेनुलआबदीन अब्दुल कलाम, राजेंद्र माथुर (रज्जु बाबू), राहुल बारपुते, स्वदेशी प्रवर्तक राजीव दीक्षित, धीरू भाई अंबानी( रिलायंस), वारेन बफ़ेट(बर्कले हैथशायर), स्टीव जॉब्स (एपल), डॉ. प्रीति सुराना (अंतरा शब्दशक्ति)।

हिन्दी को राष्ट्रभाषा ही नहीं वरन जनभाषा बनाना जिसका मूल ध्येय हो ऐसी शख्सियत समाज में सदैव अपने कार्यों से समाज को प्रेरित करती है। और इस जीवन के होने के उद्देश्य को पूरा भी।