स्वास्थ्य समस्या- जिम्मेदार कौन

 

हमारे धर्म शास्त्रों में मानव शरीर को सबसे बड़ा साधन माना गया है | कहा भी गया है कि
*शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम*– यानी यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है | सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं|
जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन और दिमाग तंदरुस्ती से लबरेज होकर उत्साहित रहेंगे | परन्तु आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में मनुष्य अपने स्वास्थ्य को लेकर लापरवाह होते जा रहे है| यही लापरवाही जीवन की बड़ी कठीनाईयों को आमंत्रण दे रही है | आज के दौर में स्वस्थ्य रहना ही सबसे बड़ी चुनौती है | हमारे धर्मग्रंथो में तो यह भी लिखा है कि –
*को रुक् , को रुक् , को रुक् ?* *हितभुक् , मितभुक् , ऋतभुक् ।*

अर्थात ‘कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है ?
हितकर भोजन करने वाला , कम खाने वाला, ईमानदारी का अन्न खाने वाला ही स्वस्थ्य है |

“आप क्या खा रहे हैं स्वास्थ्य का संबंध केवल इससे नहीं है बल्कि आप क्या सोच रहे हैं और क्या कह रहे हैं स्वास्थ्य का संबंध इससे भी है।” आम तौर पर एक व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से फिट होने पर अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेना कहा जाता है। हालांकि स्वास्थ्य का महत्व इससे अधिक है। स्वास्थ्य की आधुनिक परिभाषा में कई अन्य पहलुओं को शामिल किया गया है जिनके लिए स्वस्थ जीवन का आनंद लेना बरकरार रखा जाना चाहिए।

*स्वास्थ्य की परिभाषा कैसे विकसित हुई?*

शुरुआत में स्वास्थ्य का मतलब केवल शरीर को अच्छी तरह से कार्य करने की क्षमता होता था। इसको केवल शारीरिक दिक्कत या बीमारी के कारण परेशानी का सामना करना पड़ता था। 1948 में यह कहा गया था कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने किसी व्यक्ति की संपूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्थिति को स्वास्थ्य में शामिल किया है न कि केवल बीमारी का अभाव। हालांकि यह परिभाषा कुछ लोगों द्वारा स्वीकार कर ली गई थी लेकिन फिर इसकी काफी हद तक आलोचना की गई थी। यह कहा गया था कि स्वास्थ्य की यह परिभाषा बेहद व्यापक थी और इस तरह इसे सही नहीं माना गया। इसे लंबे समय के लिए अव्यवहारिक मानकर खारिज कर दिया गया था। 1980 में स्वास्थ्य की एक नई अवधारणा लाई गई। इसके तहत स्वास्थ्य को एक संसाधन के रूप में माना गया है और यह सिर्फ एक स्थिति नहीं है।

आज एक व्यक्ति को तब स्वस्थ माना जाता है जब वह अच्छा शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा है।

*स्वास्थ्य को बनाए रखने का महत्व*

अच्छा स्वास्थ्य जीवन में विभिन्न कार्यों को पूरा करने के लिए आधार बनता है। यहां बताया गया है कि यह कैसे मदद करता है:

*पारिवारिक जीवन:* कोई व्यक्ति जो शारीरिक रूप से अयोग्य है वह अपने परिवार की देखभाल नहीं कर सकता है। इसी तरह कोई व्यक्ति मानसिक तनाव का सामना कर रहा है और अपनी भावनाओं को संभालने में अक्षम है तो वह परिवार के साथ अच्छे रिश्तों का निर्माण और उनको बढ़ावा नहीं दे सकता है।

*कार्य:* यह कहना बिल्कुल सही है कि एक शारीरिक रूप से अयोग्य व्यक्ति ठीक से काम नहीं कर सकता। कुशलतापूर्वक काम करने के लिए अच्छा मानसिक स्वास्थ्य बहुत आवश्यक है। काम पर पकड़ बनाने के लिए अच्छे सामाजिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य का आनंद लेना चाहिए।

*अध्ययन:* ख़राब शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य भी अध्ययन में एक बाधा है। अच्छी तरह से अध्ययन करने के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के अलावा अच्छा संज्ञानात्मक स्वास्थ्य बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।

एक सर्वे के अनुसार तो वर्तमान में होने वाली बीमारीयों में 78 प्रतिशत से ज्यादा बीमारीयाँ हमारी जीवनशैली की अनियमितताओं और गड़बड़ीयों के कारण ही होती है |
इसलिए यह भी कटु सत्य है कि मानव की लापरवाही ही उसके रोगी होने की मूल कारक है |
अष्टावक्र में लिखा भी गया है कि *बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है।*

और व्यक्ति की अपनी कमाई से तात्पर्य उसके स्वास्थ्य के प्रति परवाह और जिम्मेदारी ही है |
हमें अपनी जीवनशैली में नियमितता का विशेष ध्यान रखना होगा, अन्यथा रोग को निमंत्रण हम स्वयं ही देंगे | एक अंग्रेजी डाक्टर थॉमस फुल्लर अपनी किताब में लिखते है कि *’जब तक रुग्णता का सामना नहीं करना पड़ता; तब तक स्वास्थ्य का महत्व समझ में नहीं आता है।’*

*स्वास्थ्य को सुधारने की तकनीक*

स्वास्थ्य का सुधार करने में सहायता करने के लिए यहां कुछ सरल तकनीकें दी गई हैं:

*स्वस्थ आहार योजना का पालन करें*

अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की ओर पहला कदम विभिन्न सूक्ष्म पोषक तत्वों से समृद्ध आहार होना है। आपके आहार में विशेष रूप से ताजे फल और हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल होनी चाहिए। इसके अलावा दालें, अंडे और डेयरी उत्पाद भी हैं जो आपके समग्र विकास और अनाज में मदद करती हैं जो पूरे दिन चलने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं।

*उचित विश्राम करें*

अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त ऊर्जा प्रदान करने और काम करने के लिए ऊर्जा बनाए रखना आवश्यक है। इसके लिए 8 घंटों के लिए सोना ज़रूरी है। किसी भी मामले में आपको अपनी नींद पर समझौता नहीं करना चाहिए। नींद की कमी आपको सुस्त बना देती है और आपको शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान करती है।

*व्यायाम*

आपको अपने पसंद के किसी भी शारीरिक व्यायाम में शामिल होने के लिए अपने दैनिक कार्यक्रम से कम से कम आधे घंटे का समय निकालना चाहिए। आप तेज़ चलना, जॉगिंग, तैराकी, साइकिल चलाना, योग या अपनी पसंद कोई भी अन्य व्यायाम का प्रयास कर सकते हैं। यह आपको शारीरिक रूप से फिट रखता है और अपने दिमाग को आराम देने का एक शानदार तरीका भी है।

*दिमागी खेल खेलें*

जैसा कि आप के लिए शारीरिक व्यायाम में शामिल होना महत्वपूर्ण है आपके लिए दिमागी खेल खेलना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। ये आपके संज्ञानात्मक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

*ध्यान लगाना*

ध्यान आपके मन को शांत करने और आत्मनिरीक्षण करने का एक शानदार तरीका है। यह आपको एक उच्च स्थिति में ले जाता है और आपके विचारों को और अधिक स्पष्टता देता है।

*सकारात्मक लोगों के साथ रहें*

सकारात्मक लोगों के साथ रहना आवश्यक है। उन लोगों के साथ रहें जिनके साथ आप स्वस्थ और सार्थक चर्चाओं में शामिल हो सकते हैं तथा जो आपको निराश करने की बजाए आपको बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। यह आपके भावनात्मक और सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।

*रूटीन चेक-अप कराते रहें*

वार्षिक स्वास्थ्य जांच कराना एक अच्छा विचार है। सावधानी हमेशा इलाज से बेहतर है। इसलिए यदि आप अपनी वार्षिक रिपोर्ट में किसी भी तरह की कमी या किसी भी तरह के मुद्दे को देखते हैं तो आपको तुरंत मेडिकल सहायता प्राप्त करनी चाहिए और इससे पहले कि यह बढ़े इसे ठीक कर लेना चाहिए।इन्ही सब कारकों के साथ सब स्वस्थ रहें, मस्त रहें |

  • *डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*&

कविता-धुंध

सुनो!
ये मौसम है ठण्ड और *धुंध* का,
पर तुम ज्यादा संभलना इससे,
क्योंकि इस मौसम में नमी
और साथ-साथ आलस होता है,
और यह मौसम सपनों पर भी
धुंध की परते चढ़ा देता है ।
और अभी सपनों को धुंध से बचाना होगा,
वरना हम बिखर से जाएंगे,

हाँ !
इसके लिए तुम मेहनत वाली
आग के सिरहाने ही रहना…
तपन से कोई धुंध ज्यादा
टिक नहीं पाएंगी…
और धुंध का न टिकना मतलब
लक्ष्य का ओझल न होना ही है,

हाँ!
तुम हौसला रखना उड़ान का,
बाकि अासमान छूने का जज्बा हम साथ लेकर चल रहे है ।
और हम दोनों मिलकर जीवन के कोहरे के पार,
अपने हिस्से का सूरज भी ले आएंगे…
हाँ! अपने हिस्से का आसमान भी ‘अवि’

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*

लघुकथा- मंचों की कवयित्री

संस्कृति मंचों की एक उम्दा कवियत्री है । सप्ताह में 4 से अधिक कवि सम्मेलनों में रचना पाठ करना ही संस्कृति की पहचान थी ।
पुरुषप्रधान समाज होने के कारण कई बार संस्कृति का सामना फूहड़ कवियों और श्रोताओं से भी होता था ।
इसी बीच एक गाँव में हुए कवि सम्मेलन में संचालक द्वारा संस्कृति की रचना को लेकर भद्दी और अश्लील फब्तियाँ मंच से कस दी ।
संस्कृति ने आव देखा ना ताव, मंच से ही संचालक के शब्दों का कड़ी *प्रतिक्रिया* दी और दो टूक शब्दों में संचालक कवि की लू उतार दी ।
उस संचालक को आयोजकों ने भी खूब लताड़ा और मंच से उतार दिया । शर्मिंदगी के मारे उस संचालक को काव्य जगत से भागना ही पड़ा ।
आज संस्कृति के प्रतिक्रियावादी रवैये से कई स्त्रीयों का लाभ हुआ जो मंच के गौरव के कारण यह सब सह जाती थी ।
यदि समाज में रहना है तो हर गलत कथ्य या आचरण का प्रतिकार करना आना चाहिए, वर्ना प्रतिकार न करना चलन का हिस्सा बन जाता है । और इससे कई लोग प्रभावित होते है ।

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर

लघुकथा- प्रतिक्रिया

*लघुकथा- प्रतिक्रिया*

सारांश अपनी व्यस्त जीवन शैली में संचयनी के साथ बहुत खुश था, पर संचयनी अपनी सहेलियों और सहकर्मीयों के बीच बहुत सीधी और भोली थी |
संचयनी के सहकर्मी उसके भोलेपन का हमेशा नाजायज फायदा उठा कर संचयनी को ही तंज कसते रहते थे, जिसके कारण वह पिछले कुछ दिनों से थोड़ी उखड़ी-उखड़ी सी रहने लगी थी, जबकि संचयनी पेशे से एक्युप्रेशर चिकित्सक थी, और उसका शौक लेखन था ।
उसकी एक सहकर्मी ने संचयनी की डीग्री पर जलनवश टिप्पणी की थी , जिससे संचयनी बहुत ज्यादा व्यथित थी ।
उसके माथे की शिकन देखकर सारांश ने उससे कारण जाना ।
कारण जानने के बाद सारांश ने तर्क दिया कि
संचयनी तुम प्रतिक्रियावादी समाज में रहती हो, और तुम एक बात ध्यान रखो
हर क्रिया की एक *प्रतिक्रिया* होती है,
जब तक तुम प्रतिक्रिया नहीं दोगी, ये समाज तुम्हे जीने नहीं देगा ।
जिस सहकर्मी ने टिप्पणी दी उसका भी तो तुम व्यक्तित्व देखो, क्या वो उस लायक भी है जिसे महत्व दिया जाए, तो तुम क्यों लिहाज करती हो, तुम्हें प्रतिक्रिया देना आना चाहिए ।
इनसब संवाद के बाद से संचयनी के जीवन में बहुत सुधार आया और संचयनी अब प्रतिक्रियावादी समाज में सहर्ष प्रतिक्रिया देकर जीवन को सशक्तता से जीने लग गई है ।

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
इंदौर, मध्यप्रदेश

दैनिक लोकजंग में प्रकाशित आलेख

भोपाल से प्रकाशित दैनिक लोकजंग में मेरा आलेख-
‘तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य’

तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य

तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य

*तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य*

*_समग्र के रोष के बाद, सत्य की समालोचना के बाद, दक्षिण के विरोध के बाद, समस्त की सापेक्षता के बाद, स्वर के मुखर होने के बाद, क्रांति के सजग होने के बाद, दिनकर,भास्कर, चतुर्वेदी के त्याग के बाद, पंत,सुमन, मंगल,महादेवी के समर्पण के बाद भी कोई भाषा यदि राष्ट्रभाषा के गौरव का वरण नहीं कर पाई तो इसके पीछे राजनैतिक धृष्टता के सिवा कोई कारक तत्व दृष्टिगत नहीं होता |_*

हाँ! जब एक भाषा संपूर्ण राष्ट्र के आभामण्डल में उस पीले रंग की भांति सुशोभित है जो चक्र की पूर्णता को शोभायमान कर रहा है, उसके बाद भी ‘राजभाषा’ की संज्ञा देना न्यायसंगत नहीं लगता।
बहरहाल हम पहले ये तो जाने कि क्यों आवश्कता है राष्ट्रभाषा की ? जिस तरह एक राष्ट्र के निर्माण के साथ ही ध्वज को, पक्षी को, खेल को, पिता को, गीत को, गान को, चिन्ह तक को राष्ट्र के स्वाभिमान से जोड़कर संविधान सम्मत बनाने और संविधान की परिधि में लाने का कार्य किया गया है तो फिर भाषा क्योंकर नहीं?
किसी भी राष्ट्र में जिस तरह राष्ट्रचिन्ह, राष्ट्रगान, राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगीत, राष्ट्रीय पक्षी, राष्ट्रीय पशु की अवहेलना होने पर देशद्रोह का दोष लगता है परन्तु भारत में हिन्दी के प्रति इस तरह का प्रेम राजनैतिक स्वार्थ के चलते राजनीति प्रेरित लोग नहीं दर्शा पाए, उसके पीछे मूल कारण में सत्तासीन राजनीतिक दल का दक्षिण का पारंपरिक वोट बैंक टूटना भी है।
हाशिए पर आ चुकी बोलियाँ जब केन्द्रीय तौर पर एकिकृत होना चाहती है तो उनकी आशा का रुख सदैव हिन्दी की ओर होता है, हिन्दी सभी बोलियों को स्व में समाहित करने का दंभ भी भरती है साथ ही उन बोलियों के मूल में संरक्षित भी होती है। इसी कारण समग्र राष्ट्र के चिन्तन और संवाद की केन्द्रिय भाषा हिन्दी ही रही है।
विश्व के 178 देशों की अपनी एक राष्ट्रभाषा है, जबकि इनमे से 101 देश में एक से ज्यादा भाषाओं पर निर्भरता है और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एक छोटा-सा राष्ट्र है *’फिजी गणराज्य’* जिसकी आबादी का कुल 37 प्रतिशत हिस्सा ही हिन्दी बोलता है, पर उन्होनें अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी को घोषित कर रखा है । जबकि हिन्दुस्तान में 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिन्दीभाषी होने के बावजूद भी केवल राजभाषा के तौर पर हिन्दी स्वीकारी गई है।
*राजभाषा का मतलब साफ है कि केवल राजकार्यों की भाषा।*
आखिर राजभाषा को संवैधानिक आलोक में देखें तो पता चलता है कि ‘राजभाषा’ नामक भ्रम के सहारे सत्तासीन राजनैतिक दल ने अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली। उन्होनें दक्षिण के बागी स्वर को भी समेट लिया और देश को भी झुनझुना पकड़ा दिया ।
राजभाषा बनाने के पीछे सन 1967 में बापू के तर्क का हवाला दिया गया जिसमें बापू नें संवाद शैली में राष्ट्रभाषा को राजभाषा कहा था । शायद बापू का अभिप्राय राजकिय कार्यों के साथ राष्ट्र के स्वर से रहा हो परन्तु तात्कालिन एकत्रित राजनैतिक ताकतों ने स्वयं के स्वार्थ के चलते बापू की लिखावट को ढाल बनाकर हिन्दी को ही हाशिए पर ला दिया ।
देश के लगभग १० से अधिक राज्यों में बहुतायत में हिन्दी भाषी लोग रहते हैं, अनुमानित रुप से भारत में ४० फीसदी से ज़्यादा लोग हिन्दी भाषा बोलते है । किंतु दुर्भाग्य है क़ि हिन्दी को जो स्थान शासकीय तंत्र से भारत में मिलना चाहिए वो कृपापूर्वक दी जा रही खैरात है बल्कि हिन्दी का स्थान राष्ट्र भाषा का होना चाहिए न क़ि राजभाषा का । हिन्दी का अधिकार राष्ट्रभाषा का है। *राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा बताये गये निम्नलिखित लक्षणों पर दृष्टि डाल लेना ही पर्याप्त रहेगा, जो उन्होंने एक ‘राजभाषा’के लिए बताये थे-*
(1) अमलदारों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
(2) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
(3) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
(4) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
(5) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।
इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा खरी तो उतरी किंतु राष्ट्रभाषा होना हिन्दी के लिए गौरव का विषय होगा ।
*अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा*
संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी, संघ के अशासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा जिनके लिए उसका ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले प्रयोग किया जा रहा था, परन्तु राष्ट्रपति उक्त अवधि के दौरान, आदेश द्वारा, संघ के शासकीय प्रयोजनों में से किसी के लिए अंग्रेजी भाषा के अतिरिक्त हिंदी भाषा का और भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप के अतिरिक्त देवनागरी रूप का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की अवधि के पश्चात विधि द्वारा
(क) अंग्रेजी भाषा का या
(ख) अंकों के देवनागरी रूप का,
ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं।
*अनुच्छेद 351 हिंदी भाषा के विकास के लिए निदेश*
संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिंदी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिंदुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करें।
हिन्दी के सम्मान की संवैधानिक लड़ाई देशभर में विगत ५ दशक से ज़्यादा समय से जारी है, हर भाषाप्रेमी अपने-अपने स्तर पर भाषा के सम्मान की लड़ाई लड़ रहा है ।
हाँ! हम भारतवंशियों को कभी आवश्यकता महसूस नहीं हुई राष्ट्रभाषा की, परन्तु जब देश के अन्दर ही देश की राजभाषा या हिन्दी भाषा का अपमान हो तब मन का उत्तेजित होना स्वाभाविक है ।जैसे राष्ट्र के सर्वोच्च न्याय मंदिर ने एक आदेश पारित दिया है कि न्यायालय में निकलने वाले समस्त न्यायदृष्टान्त व न्यायिक फैसलों की प्रथम प्रति हिन्दी में होगी, परन्तु 90 प्रतिशत इसी आदेश की अवहेलना न्यायमंदिर में होकर सभी निर्णय की प्रतियाँ अंग्रेजी में दी जाती है और यदि प्रति हिन्दी में मांगी जाए तो अतिरिक्त शुल्क जमा करवाया जाता है ।
वैसे ही देश के कुछ राज्यों में हिन्दीभाषी होना ही पीढ़ादायक होने लगा है जैसे कर्नाटक सहित तमिलनाडु, महाराष्ट्र आदि । वही हिन्दीभाषियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार भी सार्वभौमिक है । साथ ही कई जगहों पर तो हिन्दी साहित्यकारों को प्रताड़ित भी किया जाता है । ऐसी परिस्थिति में कानून सम्मत भाषा अधिकार होना यानी राष्ट्रभाषा का होना सबसे महत्वपूर्ण है ।
कमोबेश हिन्दी की वर्तमान स्थिति को देखकर सत्ता से आशा ही की जा सकती है कि वे देश की सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए, संस्कार सिंचन के तारतम्य में हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर इसे अनिवार्य शिक्षा में शामिल करें । इन्हीं सब तर्कों के संप्रेषण व आरोहण के बाद ही हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सूर्य मिलेगा और देश की सबसे बड़ी ताकत उसकी वैदिक संस्कृति व पुरातात्विक महत्व के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम जीवित रहेगा ।

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
संस्थापक- हिन्दीग्राम
इंदौर,मध्यप्रदेश

जीवेत शरद: शतम्

‘जीवेम शरदः शतम्’

आज मेरे दादाजी का जन्मदिवस है…
उम्र के 90 बसंत का गहरा अनुभव संजोएं हुए दादाजी का आशीष हमें मिलता है….
परमात्मा उत्तम स्वास्थ्य सह दीर्घायु प्रदान करें….

www.arpanjain.com

About SANS Group of Companies

SANS Group of Companies

Its all about SANS Business Group…

*1 SANS Technologies*

Arpan Jain
CEO & Founder
www.sanswebmedia.com

*2 SANS Buildcon*
Suresh Jain
Founder & CMD

*3 Khabar Hulchal News*
Arpan Jain
CEO & Founder
www.khabarhulchal.com

*4 KNI India*
Arpan Jain
CEO & Founder
www.kniindia.com

*5 IndianReporters.com*
Arpan Jain
CEO & Founder
www.indianreporters.com

*6 Matrubhashaa*
Ajay Jain
Co Founder
www.matrubhashaa.com

*7 Pathshalam*
Ajay Jain
Co Founder
www.pathshalam.com

*8 SANS Films*
Arpan Jain
CEO & Founder

*9 Urdubhasha*
Arpan Jain
CEO & Founder
www.urdubhasha.com

*10 JustInfome.com*
Kamal kumar Jain
Co Founder & COO
www.justinfome.com

*11 Indori Thiya*
Mrs. Shikha Jain
Founder & COO
www.indorithiya.com

*12 Madhukar Sandesh*
Swastik Jain
Co Founder & co Editor
www.madhukarsandesh.com

*13 SANS Foundation*
Shikha Jain
Co Founders

*14 eArtistBank*
Swapnil solanki
Co founder & CEO
www.eartistbank.com

*15 AntraShabdshakti*
Mrs. Priti Surana
Founder and CEO
www.antrashabdshakti.com

*16 SANS Patners*
Arpan Jain
Founder

जन्मदिन की शुभेच्छा, पापा

एक शख्स जिसने खुद का यौवन, मेरे जीवन को बनाने में कुर्बान कर दिया,जिसने मेरे हर ख्वाब को पुरा करने के लिए खुद के ख्वाब नहीं देखे,
जो मेरी प्रेरणा और सर्वस्व हैं, मेरे जीवन में एक पिता होने के पहले वो मेरे गुरु, प्रेरक और अच्छे दोस्त है…
ईश्वर को अनंत धन्यवाद है जो मेरे पिता के रुप में मेरा सबकुछ आज मेरी ताकत है…
आप मेरे साथ है तो ही मेरे जीवन में मेरी सबसे बड़ी जीत और हिम्मत है…

पापा, जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Happy Birthday PAPA,

 

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