मानवता की परिधि से बाहर होता इन्दौर

सच ही पढ़ा कि यह शहर अब अमानवीय होने पर आमादा है। शहर ही नहीं अपितु यहाँ आने वाले अफ़सरों को भी अमानवीयता की कार्यशाला का हिस्सा बनाकर भेजा जाता है। अफ़सरों से पहले जनप्रतिनिधियों की पाठशाला में मानवता को सरेआम कुचलना ही पदोन्नति का पर्याय हो गया है।
अब क्या ही कहें इस शहर को, जो अपने बाशिंदों की मौत पर भी मौन है?
शब्दों ने अपनी आत्मा के चोले को उतार फेंका है, बचे हुए अक्षर अब मातम मनाने का ढोंग कर रहे हैं। यही न कहें तो क्या कहें उस शहर के बारे में जो तरक़्क़ी की ऊँची-ऊँची इमारतों पर इतरा तो रहा है पर हादसों की जद में आए अपने ही लोगों की मौत पर भी मौन है।
सोमवार को इन्दौर के एरोड्रम रोड पर शाम को एक ट्रक, जो कई गाड़ियों और सड़क पर चलने वालों को मदमस्त रौंदता हुआ बढ़ गया और फिर बाद में 8 लोगों की अधिकृत मौत हो गई, कई घायल हो गए। सवाल सबसे पहला यहीं से शुरू होता है कि ‘ट्रक उस क्षेत्र में घुसा कैसे?’
फिर बात आती है कि इस हादसे के बाद शहर की क्या प्रतिक्रिया रही? फिर अफ़सरों ने कितनी लीपा-पोती की और फिर नेताओं का एकतरफ़ा मौन!
कमाल है, जो शहर मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रभार वाला शहर हो, जहाँ अफ़सरों की तैनाती में भी मुख्यमंत्री कार्यालय का दख़ल होता हो, ऐसे दौर में वे अफ़सर क्यों मौन बैठ गए कि ट्रक ने कैसे रौंद दिया! और कितनी साफ़-सफ़ाई रखकर सड़क साफ़ करवाई जा सकें।
कुछ दिनों पहले शहर ही नहीं अपितु जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में नवजात शिशु को चूहे कुतर गए थे, तब भी अफ़सरों की चुप्पी तो झेल गए पर जनता की चुप्पी खल गई। एरोड्रम वाले हादसे के बाद भी जनता अगले दिन भूल कर अपने काम में लग गई।
पहले भी यही सब हुआ है। पहले जब सरवटे बस स्टैंड के होटल के गिरने से 11 लोग मर गए, रिवर साइड स्थित पटाखे की दुकान में लगी आग ने लोगों की जान ले ली, डीपीएस विद्यालय हादसे ने बच्चों की जान ले ली, और तो और रामनवमी पर बावड़ी के धसने से 36 लोग दब कर मर गए, तब भी कुछ मोमबत्तियों के सिवा हुआ क्या?
आज भी यही बात है कि शहर की चुप्पी और नेताओं के मौन ने अफ़सरों की मनमर्ज़ी को मानो इन्दौर को अमानवीय सिद्ध करने का काम किया है। जनप्रतिनिधियों के मौन ने यह बता दिया कि अफ़सर तंत्र के आगे वे भी बेबस हो गए, अब सुरेश सेठ जैसी बेझिझक शख़्सियत शहर में बची ही नहीं, जो माँ अहिल्या के मान को बचा कर शहर को इस तरह के हादसों का गुलाम बना दिया, जो हमेशा मौन धारण करके बैठ जाता है।
मुख्यमंत्री तो शहर में आए दिन आते रहते हैं, फिर भी वो केवल आश्वासन देकर रफ़ू चक्कर।
शहर में सैंकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवि, नेतृत्व कौशल लोग मौजूद हैं, पर सबका मौन शहर को मानवता की परिधि से बाहर कर रहा है, जिसे न रोका गया तो शहर इन्दौर व्यावसायिक तो बन जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएँगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

‘हेय’ की नहीं ‘हित’ की भाषा है हिन्दी


डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

भारत 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेषचारों से सम्पन्न, सांस्कृतिक रूप से सबल और साहित्यिक दृष्टिसम्पन्नता वाला वैभवमय, लोक अक्षुण्ण, भाषाई सशक्त, परम्पराओं वाला राष्ट्र है। इसकी चेतना दिगदिगंत तक प्रवाहित होती है, इसके सांस्कृतिक ताने-बाने और धार्मिक दृढ़ता की चर्चा न केवल विश्वभर में है बल्कि विश्व इस बात पर भारत का लोहा भी मानता है। यही कारण है कि सृष्टि पर सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में स्वीकृत सिंधु घाटी सभ्यता का केन्द्र भी भारत रहा। दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के रूप में तमिल और संस्कृत दोनों का उल्लेख किया जाता है, लेकिन तमिल को दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषा माना जाता है।
परम वैभव सम्पन्न राष्ट्र भारत का आज विश्व में सरलता से भाषाई परिचय हिन्दी से मिलता है। यानी कि भारत की पहचान हिन्दी है। और गर्व इस बात पर किया जाना चाहिए कि दुनिया को हिन्दी के माध्यम से उन ग्रन्थ, इत्यादि पढ़ने के लिए मिले, जो सदियों पहले अन्य भाषाओं के साथ लुप्त हो रहे थे। आरंभिक काल से देवभाषा संस्कृत ने अपने प्रभाव को अक्षुण्ण रखा, किन्तु समय के अनुवांशिक विकास ने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी को भी मज़बूती से गढ़कर भारतीयता के बोध को सुस्पष्ट कर दिया। वर्तमान में हिन्दी न केवल जनभाषा है अपितु विश्व की सबसे ज़्यादा बोली, सुनी और लिखी जाने वाली भाषा है।
विश्व के 50 से अधिक विश्वविद्यालय आज हिन्दी की पढ़ाई करवा रहे हैं। उसके पीछे का बड़ा कारण भारत का बाज़ार है, और साथ-साथ भारत का शक्ति सम्पन्न होना भी ज़िम्मेदार है। भारत की विदेश नीतियों की वजह से दिन-प्रतिदिन व्यापारिक संस्थान तेज़ी से बढ़ रहे हैं, सकल घरेलू उत्पाद दर व सकल राष्ट्रीय उत्पाद दर में बढ़ोतरी हो रही है, विश्व अपने व्यापार के लिए अब भारत का रुख़ कर रहा है, ऐसे समय भारतीय भाषाएँ ही भारत के बाज़ार की मज़बूती बन सकती हैं। सरकारों को भी चाहिए कि कोई एक विदेशी भाषा की गुलामी को छोड़कर अपनी भाषाओं की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि इस समय पूँजी का केन्द्र आपके हाथों में होने से आप विश्व को दिशा-निर्देश दे सकते हैं कि हमसे व्यापार करना है तो हमारी भाषा में करना होगा। जैसे चीन ने अपने देश में स्वभाषा की बाध्यता लगाई है। भारत भी चाइना की तरह ही बल्कि यूँ कहें कि चाइना से भी अधिक व्यापार सम्पन्न राष्ट्र है। फिर अपनी भाषा की स्थिरता क्यों नहीं?
इसके साथ भारतीयों के भीतर भी कटुता का त्याग कर जनजागृति लानी होगी, हम आपस में न लड़कर वैश्विक रूप से ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ के सिद्धान्त को दृढ़ करें। इस समय महाराष्ट्र में मराठी भाषा और हिन्दी के बीच खाई पैदा की जा रही है, जबकि जिन राजनैतिक लोगों को हिन्दी का विरोध दिख रहा है, वही आज मुम्बई की सफलता में बॉलीवुड के योगदान को नहीं हटा सकते। आज हिन्दी फ़िल्म जगत का केन्द्र मुम्बई न होता तो शायद आज मुम्बई इतना प्रगतिशील नहीं होता। कुल मिलाकर आप हिन्दी के बिना भारत की प्रगति सोच नहीं सकते, तब हिन्दी को अलग करने की चाह क्यों?ग
वैसे भी कोई भाषा किसी पर थोपी नहीं जा रही, बल्कि सब जनस्वीकार्यता के आगे नतमस्तक है। ऐसे दौर में भारत को अपनी सांस्कृतिक संपन्नता को कमज़ोर नहीं आँकना चाहिए। भारतीयता को बचाना है तो भारत की भाषाई पहचान हिन्दी को मज़बूत करना होगा, वह हेय की नहीं हित की भाषा है।।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा ‘नया इन्दौर’

◆ डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

कभी अपने शहर इन्दौर के लिए सुना भी नहीं था कि गंजेड़ी, भंगेड़ी, पाउडरची, चरसी, अफ़ीमबाज़, नाइट्रा बाज़, और तमाम तरह के नशेड़ियों का शहर होने लगेगा। पर जैसे-जैसे शहर मेट्रोपॉलिटन बनने की राह पर है, वैसे-वैसे बेलगाम नशेड़ियों ने अपना ‘ठिया’ इन्दौर को बना लिया है।
विजय नगर से लेकर लव कुश चौराहा, मेट्रो मार्ग से एयरपोर्ट जाने वाले मार्ग को तो नशेड़ियों ने अपने कब्ज़े में लेकर मानो शिकार करने का अड्डा बना रखा है। वैसे एबी रोड़ भी इन्ही नशेबाज़ों की चपेट से अछूता नहीं है।
शहर के अपराध रिकॉर्ड को रोज़ खंगाला जाए तो हर दिन इन्दौर में नशेबाज़ों के द्वारा लूट, मारपीट, छीना-झपटी, बलात्कार, राह चलती लड़की पर बुरी नीयत से हाथ डालना, यहाँ तक कि हत्या जैसे जघन्य कार्यों को भी नियमित अंजाम दिया जा रहा है।
कई पुराने चिह्नित क्षेत्रों में तो नशे का कारोबार भयंकर रूप से हो रहा है। हाल ही में मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि ‘इंदौर में नशे के कारोबार के तार राजस्थान के प्रतापगढ़ से जुड़े हैं। एमपी पुलिस ने चोर को तो पकड़ लिया है, लेकिन चोर की माँ तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। एमपी को बचाना है तो चोर की माँ तक पहुँचना ज़रूरी है।’
सोचिए प्रदेश के काबीना मंत्री तक नशेड़ियों से त्रस्त हैं, उसके बावजूद नशे के शिकार लोग शहर को बर्बाद करने आए बाज़ नहीं आ रहे और न ही कोई पुलिसिया बड़ी कार्यवाही हो रही है।
पिछले दिनों इन्दौर पुलिस ने बड़े स्तर पर ‘नशे से दूरी है ज़रूरी’ अभियान के तहत नशे से मुक्ति के लिए जागरुकता का कार्य किया, जिसमें विशाल मानव शृंखला बनाकर विश्व कीर्तिमान भी बना लिया पर नतीजा जस का तस ही है। नशेड़ी से हर थाना परेशान है। हर थाने में रोज़ नशेड़ियों के कृत्य दर्ज हो रहे हैं। बीते 15 दिन में दो वरिष्ठ पत्रकारों के साथ भी नशेड़ियों ने वारदात कर दी, परदेशीपुरा थाना क्षेत्र में पत्रकार सागर चौकसे को नशेड़ियों ने लूट का शिकार बनाया। कल रात विजय नगर थाना क्षेत्र में पत्रकार अभिषेक वर्मा को होटल ला-ओमनी के समीप रोककर मारपीट की, आरोपी अभी भी पहचाने नहीं गए और न ही आस-पास का सीसीटीवी चालू मिला। इस तरह होती वारदातों से शहर के निवासियों में भय का वातावरण है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रभार वाला जिला आज नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा है। न नशेड़ियों पर वार हो रहा है और न ही इनके आकाओं की कमर तोड़ी जा रही। आख़िर इस तरह का ‘उड़ता इन्दौर’ किसी इन्दौरी के ख़्वाबों का शहर नहीं हो सकता। इस इंदौर को बचा लीजिए माननीय प्रशासन, वर्ना शहर बर्बाद हो जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक

क्या बर्बाद यातायात व्यवस्था का हल है हेलमेट की अनिवार्यता?

शहर में पहले की तरह ही हल्ला मचाया जा रहा है कि सरकार हेलमेट न लगाने वालों को अब फिर से पेट्रोल देना बंद कर रही है। भारतीय नागरिक सुरक्षा अधिनियम 2023 का हवाला लेकर इन्दौरी सरकार ने आदेश कि आगामी 1 अगस्त 2025 से बिना हेलमेट लगाये दो पहिया वाहनों को पेट्रोल नहीं मिलेगा। पेट्रोल पंप की निगरानी की जाएगी, उम्मीद की जा रही है कि इस आदेश के बाद सड़क दुर्घनाएँ कम होंगी।
इस तरह के आदेश पहले भी इन्दौर में आ चुके हैं, कुछ ही दिनों में ऐसे आदेश की धज्जियाँ उड़नी शुरू हो जाती हैं, पहले भी जब यह आदेश आया तो पेट्रोल पंप के कैमरे की निगरानी से थोड़ा दूर खड़ा पम्प कर्मचारी हेलमेट मुहैय्या करवाता है, आप पेट्रोल भरवा कर दूसरी ओर से जैसे निकलेंगे, पम्प का ही दूसरा कर्मचारी आपसे वापस हेलमेट ले लेगा। अब इससे तो हेलमेट की अनिवार्यता की भी धज्जियाँ उड़ गईं और यह आदेश भी नाक़ामयाब हुआ।
इसी तरह, इन्दौर नगरीय सीमा में अस्त-व्यस्त यातायात के चलते सामान्य दो पहिया वाहनों की गति प्रायः 20 किमी से 40 किमी तक ही होती है, ऐसी मध्यम गति में वाहनों की टक्कर संभवतः कम या नगण्य होती है।
स्वच्छतम शहर की मुख्य समस्या सड़क दुर्घटना नहीं बल्कि बिगड़ा हुआ यातायात व्यवस्थाओं का ढर्रा, असुरक्षित सड़क मार्ग, आए दिन लगने वाला सड़क जाम, घटिया गुणवत्ता की सड़कें, जिनमें बारिश में तो कई गड्ढों ने अपना घर बना लिया, पुराने मार्ग पर अतिक्रमण, हॉकर ज़ोन की कमी है, पर नगर सरकार ने इस दिशा से ध्यान हटाने के लिए अपना रूख़ हेलमेट की ओर कर लिया। पिछली बार जब इसी तरह का आदेश लाया गया था, तब भी कोई ख़ास कारगर नहीं हुआ, कुछ ही दिनों में इस आदेश को वापस लिया गया। अब फिर इसे लाकर थोड़ी हेलमेट बनाने वाली कंपनियों को लाभ तो पहुँचाया जाएगा, पर धरातल पर फिर वही ढाक के तीन पात।
बात यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने की हो रही थी, पर नगर सरकार हेलमेट पर ही अटक गई, ऐसे में हिंदी की एक कहावत याद आती है- ‘आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।’

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार
इन्दौर, मध्यप्रदेश

डॉ. अर्पण जैन को मिला विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान 2025

भोपाल। लघुकथा दिवस के अवसर पर लघुकथा शोध केन्द्र समिति द्वारा भोपाल के हिन्दी भवन में शुक्रवार को लघुकथा पर्व 2025 का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दीयोद्धा डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान 2025’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने की व सारस्वत अतिथि नई दिल्ली से सुभाष नीरव, डॉ. उमेश कुमार सिंह, शोध केन्द्र निदेशक कान्ता रॉय एवं उपाध्यक्ष घनश्याम मैथिल रहे।

ज्ञात हो कि डॉ. अर्पण जैन हिन्दी सेवी हैं, जिन्होंने अब तक लगभग 30 लाख लोगों के हस्ताक्षर बदलवा दिए हैं। साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 का अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार और जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी एवं वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति द्वारा वर्ष 2023 का अक्षर सम्मान डॉ. अर्पण जैन को प्राप्त हुए हैं।

आयोजन में विभिन्न कृतिकारों एवं साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया।

घनाक्षरी- प्रेम

कोमल अंग सी तुम
प्रेम का पवित्र रूप
प्रेम तुम से हुआ है
प्रेम जीत जाएगा

जीवन का एक छंद
पवन बहेगी मंद
प्रीत की फुहार बन
प्रेम गीत गाएगा

भाषा का शृंगार देख
मन बन हार देख
मानस तो भीगा हुआ
प्रेम मीत लाएगा

कहने को शब्द रीत
मनडोर बंधी प्रीत
जीवन जीयेगा और
प्रेम प्रीत पाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

डॉ. अर्पण ने किया 41वीं बार रक्त दान

इन्दौर। नियमित रक्तदान करने वाले हिन्दीयोद्धा एवं मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने शुक्रवार 16 मई 2025 को 41वीं बार रक्तदान किया।
रक्त नायक अशोक नायक के ब्लड कॉल सेंटर से किसी मरीज़ के लिए आवश्यकता दर्शाने पर डॉ. अर्पण जैन ने एमवाय अस्पताल में जाकर रक्तदान किया।
डॉ. अर्पण जैन का कहना है कि ‘रक्त किसी कारखाने में नहीं बनता, यदि आप भी रक्त दान करेंगे, तभी भारत में रक्त की उपलब्धता नहीं होने से किसी की जान नहीं जाएगी। मैं प्रत्येक तीन-चार माह में रक्तदान करता ही हूँ, आप भी करें। रक्तदान करके बहुत ख़ुशी मिलती है।’

डॉ. अर्पण जैन रक्तदाता के रूप में प्रेरणास्त्रोत हैं। वे हमेशा लोगों के लिए भी रक्त उपलब्ध करवाने में बेहद सक्रिय रहते हैं।

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी
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एक आम भारतीय के दृष्टिकोण से यह कहना बहुत उचित है कि भारत की सरकार ने समझौता किया और अमेरिका के दबाव में कदम पीछे लिए किन्तु जब इसे अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य, युद्धनीति और वैश्विक विवशताओं के साथ जोड़कर देखेंगे तो निःसंदेह इसका दूसरा पक्ष भी है, जो जल्द ही सामने आएगा।
मत देखिए कि पाकिस्तान को मदद करने वाले देश कौन हैं पर यह अवश्य देखें कि behind the curtain क्या हो रहा होगा!
एक संवेदनशील प्रधानमंत्री और उनसे भी कहीं अधिक धैर्य रखने वाली भारतीय सेना… विश्वास कीजिए, अवश्य कुछ अलग और बेहतर होगा।
इस समय भारत विकासशील देशों की श्रेणी में आता है, एक उदाहरण है ना कि जब हम सड़क पर चलते हैं तो साइकिल सवार यदि ग़लती से भी कार से टकरा जाए, तब भी ग़लती कार चालक की मानी जाती है। उसी तरह पाकिस्तान साइकिल सवार देश है और भारत कार चालक।
चीन यही चाहता है कि भारत को युद्ध में उलझा कर कुछ नुक़सान करे। पर यह भी तय है कि देश का गंभीर नेतृत्व कुछ तो सोच ही रहा होगा, जबकि वह जानता है कि आगामी चुनाव में इस तरह रणछोड़ बनना उसके राजनैतिक दल के लिए घातक हो सकता है, फिर भी यह निर्णय लिया है तो कुछ तैयारी के साथ ही यह कदम उठाया होगा।
शेष सब शुभ हो, यही कामना है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

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सवाल तो विधान का था…

सवाल तो विधान का था…
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■ डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’

हस्तिनापुर के अनुबंध और करार में बंधें गुरू द्रोणाचार्य ने जब वनवासी बालक और क्षेत्रीय काबिले के सरदार के पुत्र को धनुर्विद्या सीखाने से इंकार कर दिया तो वही वनवासी बलवान एकलव्य गुरु द्रोण की मूर्ति से धनुर्विद्या सीखने लगा और पारंगत होने पर उसी के जंगल में एक कुकुर का भोंकना भी वह न सह सका और शरों से उस कुकुर के मुँह को बंद कर दिया।
तभी गुरु द्रोणाचार्य और पाण्डव उसकी प्रशस्त धनुर्विद्या को खोजते-खोजते एकलव्य से जा मिले, गुरु ने संवाद के बाद जानने पर गुरुदक्षिणा में अंगूठा मांग लिया।
सवाल तो तब भी उठे, और तब भी जब गुरु द्रोण ने धनुर्विद्या सिखाने से इंकार किया ।
जबकि सच तो यह है कि अनुबंध और विधान नाम की कोई चीज होती है, इसको लेकर बुद्धिमान प्रश्न नहीं करते और उनके अतिरिक्त अन्य को आप समझा भी दोगे तो समझ नहीं आएगी, क्योंकि नीति विरुद्ध तो आप भी हो ही।
क्या एकलव्य का दोष नहीं था कि बिना गुरु द्रोण की आज्ञा के क्यों उसने उनकी मूर्ति बनाई?
सवाल तो यह भी उठा कि एकलव्य निरीह वनवासी था, तो महाशय कोई निरीह सीधा-साधा व्यक्ति धनुर्विद्या ही क्यों सीखेगा?
धनुर्विद्या वही सीखते है जिन्हें योद्धा बनना होता है, और कबिले के सरदार का बेटा यानी उस कबिले का अगला सरदार निरीह या मूर्ख नहीं हो सकता।
खैर प्रश्न यही था न कि ‘गुरु द्रोण ने एकलव्य को क्यों धनुर्विद्या नहीं सिखाई?’ और उसके उपरांत भी ‘अँगूठा क्यों दक्षिणा में मांग लिया?’
दोनों ही प्रश्नों का जवाब केवल एक ही था, वो है ‘अनुबंध या संविधान’ ।
हस्तिनापुर को दिए वचनों में धनुर्विद्या सिखाने का अनुबंध केवल हस्तिनापुर के राजपुत्रों से था, अतिरिक्त किसी को वो सिखा नहीं सकते थे और यही जब एकलव्य ने किया तो दुनिया वाले उनके बाद ये नहीं कहें कि गुरु द्रोणाचार्य वचन के पक्के या विधान के पक्के नहीं थे इसलिए अँगूठा दक्षिणा में मांगा।
इसके अतिरिक्त एक और बात कि गुरु द्रोण भी जानते थे कि कौन किस विद्या को प्राप्त करने का अधिकारी है , एक निरीह श्वान पर अपनी विद्या का प्रयोग करने वाला धैर्यवान योद्धा हो ही नहीं सकता।

अब बात विधान, संविधान और अनुबंध की करते है-
प्रत्येक जीवन में, संस्था में, ग्राम, नगर,प्रान्त और राष्ट्र में संचालन विधान और संविधान अनुरूप होता है।
संचालन की सुस्पष्टता उसमें निहित संवैधानिक शक्तियों के कारण होती है। नियमों से बंधा जीवन अलंकार होता है।
कोई व्यक्ति हठ कर सकता है, किन्तु संस्था, राज्य, राष्ट्र हठी नहीं हो सकतें ,यदि ऐसा होता है तो उस संस्था, राज्य और राष्ट्र की अवनति तय है।
उसके संचालन हेतु बनाए गए नियमों को मानना ही होता है, उदाहरण के लिए कोई अति बुद्धिमान व्यक्ति यह कहता है कि केवल उसके लिए नियम बदल दो तो यह न संस्थान, राज्य या राष्ट्र के लिए संभव है, क्योंकि ये संवैधानिक व्यवस्था से चलने वाला तंत्र है।
संस्थान या राष्ट्र किसी का घर नहीं जो आपके व्यक्तिगत के लिए नियमों को ताक में रख दें।
उसके उपरांत भी व्यक्तिगत मदद की जा सकती है, किन्तु संस्थागत नियमों का उलंघन करके एक परिपाठी न बनाने की इच्छा भी संवैधानिक कमेटी की होती है।
नियमों को तोड़ने की प्रगाढ़ता चाहने वाले शाख से टूट जाया करते है और उसके बाद खुद के वजूद तलाशते रहते है।
वैसे जो संस्थान या राष्ट्र में दोगला चरित्र निभाते है, इधर-उधर की करने में जीते है, केवल अपना सम्मान, मंच औऱ पैगाम चाहते है वो भी तो कहाँ टिक पाते है। उनके हाथ क्या आता है वो भी जग जाहिर है। वो दो ही कोढ़ी के होते है, इसमें कोई शक भी नहीं है। यदि नियमों से बंधे रहें तो लहरों से भी मोहब्बत मिलती है, वरना ज्वार बनकर लहरें ही डूबा देती है। इसलिए संविधान और विधान का मान आवश्यक है।

*– डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*

हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन

कहानी:

अनथक हिन्दी योद्धा डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ से खास भेंट

हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन

कहानी एक ऐसे व्यक्ति की जो हिन्दी भाषा को भारत में ही सम्मान स्वरुप राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संघर्षरत है, जो संगणक विज्ञान अभियंता होने के बावजूद स्थापित पत्रकारिता की उसके बाद भी हिन्दी माँ के प्रति जवाबदेही से कार्य कर रहे है। एक ऐसा शख्स जो हिन्दी को भारत में रोजगार मूलक भाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।

 भारत माँ के स्वाभिमान पर जब-जब भी आँच आई है तब-तब धरा पर सपूतों का जन्म हुआ है, ऐसे ही सपूत का जन्म २९ अप्रैल १९८९ शनिवार को मध्यप्रदेश के सेंधवा में पिता सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा की कुक्षी से एक क्रांतिकारी पुत्र का जन्म हुआ जिनका नाम अर्पण रखा गया। अर्पण अपने माता-पिता के दो बच्चों में से सबसे बड़े हैं। उनकी एक छोटी बहन नेहल हैं। उनके पिता सुरेश जैन गृह और सड़क निर्माण का कार्य करते है। आपके दादा बाबूलालजी एक राजनैतिक व्यक्तित्व रहे। अर्पण जैन मध्यप्रदेश के धार जिले की छोटी-सी तहसील कुक्षी में पले बड़े, आरंभिक शिक्षा कुक्षी के वर्धमान जैन हाईस्कूल और शा. बा. उ. मा. विद्यालय कुक्षी में हासिल की, तथा फिर इंदौर में जाकर राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्धयालय के अंतर्गत एसएटीएम महाविद्यालय से संगणक विज्ञान (कम्प्यूटर साइंस) में बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (बीई-कंप्यूटर साइंस) में स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही अर्पण जैन ने सॉफ्टवेयर व वेबसाईट का निर्माण शुरू कर दिया था। इसी दौरान सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी भी की। पिता के कारोबार में रूचि न होने और अपनी अलग दुनिया बनाने की इच्छाशक्ति ने अर्पण को तकनिकी योद्धा बनाया।

एक मध्यवर्गीय परिवार से आने वाले किसी भी शख्स का सपना क्या होता है? यही न कि एक अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के बाद मोटी रकम वाली सम्मानजनक नौकरी मिल जाए। लेकिन अर्पण अपनी इस 9 से 5 वाली और मोटे वेतन वाली नौकरी से संतुष्ट नहीं थे। एक दिन उन्होंने अपने सुविधा क्षेत्र से बाहर निकलने का फैसला किया और अपना खुद का उद्यम शुरू किया। सपने बड़े होने के कारण स्वयं की कंपनी बनाने का ख्वाब पूरा करने में अर्पण जुटे तो सही परन्तु दो माह बिना नौकरी के भी घर पर ही भविष्य की रणनीति बनाने के दौरान सभी बचत ख़त्म कर चुके अर्पण के जेब में मात्र १५० रुपये ही बचे थे। मात्र १५० रुपये लेकर ११ जनवरी २०१० को ‘सेन्स टेक्नोलॉजीस की शुरुआत हुई, अर्पण ने फॉरेन ट्रेड में एमबीए किया, तथा पत्रकारिता के शौक के चलते एम.जे. की पढाई भी की है। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’  पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। समाचारों की दुनिया ही उनकी असली दुनिया थी, जिसके लिए उन्होंने सॉफ्टवेयर के व्यापार के साथ ही खबर हलचल वेब मीडिया की स्थापना की और इसे भारत की सबसे तेज वेब चैनल कंपनियों में से एक बना दिया। सेंस टेक्नॉलजीस और खबर हलचल न्यूज भारत के लगभग 29 राज्यों में २०० से ज़्यादा लोगो के दल के साथ कार्यरत पंजीकृत कंपनी है।

इसी दौरान पत्रकारिता के उन्नयन हेतु कई पत्रकारिता संगठन में कार्य किया जैसे श्रमजीवी पत्रकार परिषद में बतौर महासचिव, इंदौर प्रेस क्लब, सेव जर्नलिस्म संस्थान के सदस्य आदि। इसके बाद पत्रकार संचार परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष का दायित्व भी संभाला। आप राष्ट्रीय मानव अधिकार परिषद महासंघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे।

वर्ष २०१५ में शिखा जैन जी से उनका विवाह हुआ। विवाह उपरांत भी तन्मयता से पत्रकारिता और भाषा के सौंदर्य को स्थापित करने के लिए श्री जैन सतत संघर्षरत रहे। आपने अपनी कविताओं, आलेखों के माध्यम से भी समाज की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा हैं और आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता के आधार आंचलिक पत्रकारिता और समाज के लिए ज़्यादा लिखा हैं।

अर्पण ने व्यापार के दूसरे क्षेत्रों में भी उत्कृष्ट सफलताएँ प्राप्त की हैं। पत्रकारिता से अपने गहरे सरोकार को दर्शाते हुए उन्होंने भारत के पत्रकारों के लिए पहली सोशल नेटवर्किंग साइट ‘इंडियनरिपोर्टर्स.कॉम (www.IndianReporters.com)’ बनाई, जिसके फलस्वरूप पंजाब, उत्तराखंड और सिक्किम जैसे भारत के सभी राज्यों के पत्रकार जुड़े हुए हैं। जैन ने कई संस्थाओं के साथ जुड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में भी और अन्य सामाजिक कार्यों और जनहितार्थ आंदोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई है।

समाचारों की दुनिया से जुड़े होने के कारण अर्पण का हिन्दी प्रेम प्रगाड़ होता चला गया, इसी के चलते वर्ष २०१६ में अर्पण ने मातृभाषा.कॉम की शुरुआत की और फिर तब से लेकर आज तक हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्यरत रहे। इस दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में हिन्दी भाषा के महत्व को स्थापित करने के लिए यात्राएँ की, जनमानस को हिन्दी से जोड़ा, और मातृभाषा उन्नयन संस्थान और हिन्दी ग्राम की स्थापना की। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत है, इसी प्रकल्प में योगगुरु और पतंजलि योगपीठ के सूत्रधार स्वामी रामदेव जी का आशीर्वाद मिला। वर्तमान में हिन्दी के गौरव की स्थापना हेतु व हिन्दी भाषा को राजभाषा से राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए संघर्षरत डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ भारतभर में इकाइयों का गठन करके आंदोलन का सूत्रपात कर रहे हैं, और वे मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी है और हिन्दी ग्राम के संस्थापक भी हैं। डॉ. वेद प्रताप वैदिक के संरक्षण में संस्थान देश भर में हस्ताक्षर बदलो अभियान संचालित कर रही हैं। हिन्दी योद्धा, संगणक योद्धा और संवाद सेतु के माध्यम से सम्पूर्ण भारत में हिन्दी का प्रचार प्रयास कर रहे है।

डॉ अर्पण जैन अविचल का ध्येय वाक्य है ‘हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में’ इसी को सम्पूर्ण राष्ट्र का समर्थन मिल रहा है। डॉ जैन ‘एक घंटा राष्ट्र को, एक घंटा देह को और एक घंटा हिन्दी को’ जैसा आव्हान भी जनता से कर रहे है, जिसे भरपूर समर्थन मिल रहा है।

डॉ अर्पण जैन अविचल कहते है कि ‘हिन्दी भाषा भारत की सांस्कृतिक अखंडता को मजबूत करने में अग्रणी कारक है, हिन्दी के माध्यम से ही भारत के संस्कार बचे है क्योंकि हमारे राष्ट्र में संस्कार देने दादी-नानी की कहानियां महनीय भूमिका अदा करती है, ऐसे में दादी-नानी की कहानियों की भाषा हिन्दी है, इसलिए हिन्दी युग के निर्माण हेतु हिन्दी का संरक्षण और प्रचार-प्रसार आवश्यक है। तभी भारत के संस्कार बचेंगे और भारत बचेगा वर्ना गुलामी की स्थिति बनेगी।’

हिन्दी भाषा को प्रचारित एवं प्रसारित करने के उद्देश्य से ग्राम, नगर प्रान्त में श्री जैन व्याख्यान, परिचर्चा , गोष्ठियां आदि करते है, जनमानस को हिन्दी का महत्व समझाते हुए उसके राष्ट्रभाषा बनने के कारण बताते है और जनजागृति लाते है। वर्तमान में डॉ अर्पण जैन व मातृभाषा उन्नयन संस्थान की प्रेरणा से  लगभग ४ लाख से अधिक लोगों में प्रामाणिक रूप से अपने हस्ताक्षर हिन्दी में करना प्रारंभ कर दिए है। डॉ अर्पण जैन के हिन्दी आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा डॉ प्रीति सुराना है जिन्हे डॉ जैन अपना प्रेरणा पुंज बताते है। इन्ही के साथ उनके अभिन्न मित्र और उप सैनानी कमलेश कमल जी भी है जो हिन्दी जे मानकीकरण पर कार्य कर रहे है और देश भर में कमल की कलम के माध्यम से हिन्दी को शुद्ध करने की दिशा में प्रयासरत है।

डॉ जैन से जब भी पूछों कि जीवन जीने का उद्देश्य क्या है, तब उनका एक ही जवाब होता है ‘हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में हमारा योगदान दर्शक का नहीं बल्कि कार्यकर्ता का हो, हमें तमाशा देखने वाला न समझा जाए, जब भी याद किया जाए तब ये कहा जाए कि ये लोग घरों में बैठे नहीं थे, इन्होने काम किया है।’

जिन लोगो से आप प्रेरणा पाते है उनकी सूची में शामिल है- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, बाबा नागार्जुन, रामधारी सिंह दिनकर, बाबू विष्णु पाराडकर, गणेशचंद्र विद्धयार्थी, प. दीनदयाल उपाध्याय ( एकात्मवाद के कारण), डॉ. अबुल पॅकिर जेनुलआबदीन अब्दुल कलाम, राजेंद्र माथुर (रज्जु बाबू), राहुल बारपुते, स्वदेशी प्रवर्तक राजीव दीक्षित, धीरू भाई अंबानी( रिलायंस), वारेन बफ़ेट(बर्कले हैथशायर), स्टीव जॉब्स (एपल), डॉ. प्रीति सुराना (अंतरा शब्दशक्ति)।

हिन्दी को राष्ट्रभाषा ही नहीं वरन जनभाषा बनाना जिसका मूल ध्येय हो ऐसी शख्सियत समाज में सदैव अपने कार्यों से समाज को प्रेरित करती है। और इस जीवन के होने के उद्देश्य को पूरा भी।