|| वसुंधरा ||
सौम्य सुधा सब पक्ष हमारा, जीवन का अगणित श्रृंगार | सबकुछ सहकर कुछ ना बोले, वहीं माँ है हमारी तारणहार || तंतु की विवेचना भी सहती, न निकले कभी अश्रु की धार | अहम के टकराव में रहती, धरती माँ है हमारी पालनहार || निश्चल मन, निर्मल स्वअंग है, सबसे ही करती वो भी प्यार | कभी न करती फेर किसी में वहीं धरा है हमारी चिंतनहार || न जाति न रंग भेद है उसमें सबका उस पर है अधिकार | मौन स्वीकृति सबको देती ‘अवि’ वसुंधरा है पुरणहार || अर्पण जैन ‘अविचल‘ इंदौर (म.प्र.)