मानवता की परिधि से बाहर होता इन्दौर

सच ही पढ़ा कि यह शहर अब अमानवीय होने पर आमादा है। शहर ही नहीं अपितु यहाँ आने वाले अफ़सरों को भी अमानवीयता की कार्यशाला का हिस्सा बनाकर भेजा जाता है। अफ़सरों से पहले जनप्रतिनिधियों की पाठशाला में मानवता को सरेआम कुचलना ही पदोन्नति का पर्याय हो गया है।
अब क्या ही कहें इस शहर को, जो अपने बाशिंदों की मौत पर भी मौन है?
शब्दों ने अपनी आत्मा के चोले को उतार फेंका है, बचे हुए अक्षर अब मातम मनाने का ढोंग कर रहे हैं। यही न कहें तो क्या कहें उस शहर के बारे में जो तरक़्क़ी की ऊँची-ऊँची इमारतों पर इतरा तो रहा है पर हादसों की जद में आए अपने ही लोगों की मौत पर भी मौन है।
सोमवार को इन्दौर के एरोड्रम रोड पर शाम को एक ट्रक, जो कई गाड़ियों और सड़क पर चलने वालों को मदमस्त रौंदता हुआ बढ़ गया और फिर बाद में 8 लोगों की अधिकृत मौत हो गई, कई घायल हो गए। सवाल सबसे पहला यहीं से शुरू होता है कि ‘ट्रक उस क्षेत्र में घुसा कैसे?’
फिर बात आती है कि इस हादसे के बाद शहर की क्या प्रतिक्रिया रही? फिर अफ़सरों ने कितनी लीपा-पोती की और फिर नेताओं का एकतरफ़ा मौन!
कमाल है, जो शहर मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रभार वाला शहर हो, जहाँ अफ़सरों की तैनाती में भी मुख्यमंत्री कार्यालय का दख़ल होता हो, ऐसे दौर में वे अफ़सर क्यों मौन बैठ गए कि ट्रक ने कैसे रौंद दिया! और कितनी साफ़-सफ़ाई रखकर सड़क साफ़ करवाई जा सकें।
कुछ दिनों पहले शहर ही नहीं अपितु जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में नवजात शिशु को चूहे कुतर गए थे, तब भी अफ़सरों की चुप्पी तो झेल गए पर जनता की चुप्पी खल गई। एरोड्रम वाले हादसे के बाद भी जनता अगले दिन भूल कर अपने काम में लग गई।
पहले भी यही सब हुआ है। पहले जब सरवटे बस स्टैंड के होटल के गिरने से 11 लोग मर गए, रिवर साइड स्थित पटाखे की दुकान में लगी आग ने लोगों की जान ले ली, डीपीएस विद्यालय हादसे ने बच्चों की जान ले ली, और तो और रामनवमी पर बावड़ी के धसने से 36 लोग दब कर मर गए, तब भी कुछ मोमबत्तियों के सिवा हुआ क्या?
आज भी यही बात है कि शहर की चुप्पी और नेताओं के मौन ने अफ़सरों की मनमर्ज़ी को मानो इन्दौर को अमानवीय सिद्ध करने का काम किया है। जनप्रतिनिधियों के मौन ने यह बता दिया कि अफ़सर तंत्र के आगे वे भी बेबस हो गए, अब सुरेश सेठ जैसी बेझिझक शख़्सियत शहर में बची ही नहीं, जो माँ अहिल्या के मान को बचा कर शहर को इस तरह के हादसों का गुलाम बना दिया, जो हमेशा मौन धारण करके बैठ जाता है।
मुख्यमंत्री तो शहर में आए दिन आते रहते हैं, फिर भी वो केवल आश्वासन देकर रफ़ू चक्कर।
शहर में सैंकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवि, नेतृत्व कौशल लोग मौजूद हैं, पर सबका मौन शहर को मानवता की परिधि से बाहर कर रहा है, जिसे न रोका गया तो शहर इन्दौर व्यावसायिक तो बन जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएँगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

‘हेय’ की नहीं ‘हित’ की भाषा है हिन्दी


डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

भारत 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेषचारों से सम्पन्न, सांस्कृतिक रूप से सबल और साहित्यिक दृष्टिसम्पन्नता वाला वैभवमय, लोक अक्षुण्ण, भाषाई सशक्त, परम्पराओं वाला राष्ट्र है। इसकी चेतना दिगदिगंत तक प्रवाहित होती है, इसके सांस्कृतिक ताने-बाने और धार्मिक दृढ़ता की चर्चा न केवल विश्वभर में है बल्कि विश्व इस बात पर भारत का लोहा भी मानता है। यही कारण है कि सृष्टि पर सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में स्वीकृत सिंधु घाटी सभ्यता का केन्द्र भी भारत रहा। दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के रूप में तमिल और संस्कृत दोनों का उल्लेख किया जाता है, लेकिन तमिल को दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषा माना जाता है।
परम वैभव सम्पन्न राष्ट्र भारत का आज विश्व में सरलता से भाषाई परिचय हिन्दी से मिलता है। यानी कि भारत की पहचान हिन्दी है। और गर्व इस बात पर किया जाना चाहिए कि दुनिया को हिन्दी के माध्यम से उन ग्रन्थ, इत्यादि पढ़ने के लिए मिले, जो सदियों पहले अन्य भाषाओं के साथ लुप्त हो रहे थे। आरंभिक काल से देवभाषा संस्कृत ने अपने प्रभाव को अक्षुण्ण रखा, किन्तु समय के अनुवांशिक विकास ने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी को भी मज़बूती से गढ़कर भारतीयता के बोध को सुस्पष्ट कर दिया। वर्तमान में हिन्दी न केवल जनभाषा है अपितु विश्व की सबसे ज़्यादा बोली, सुनी और लिखी जाने वाली भाषा है।
विश्व के 50 से अधिक विश्वविद्यालय आज हिन्दी की पढ़ाई करवा रहे हैं। उसके पीछे का बड़ा कारण भारत का बाज़ार है, और साथ-साथ भारत का शक्ति सम्पन्न होना भी ज़िम्मेदार है। भारत की विदेश नीतियों की वजह से दिन-प्रतिदिन व्यापारिक संस्थान तेज़ी से बढ़ रहे हैं, सकल घरेलू उत्पाद दर व सकल राष्ट्रीय उत्पाद दर में बढ़ोतरी हो रही है, विश्व अपने व्यापार के लिए अब भारत का रुख़ कर रहा है, ऐसे समय भारतीय भाषाएँ ही भारत के बाज़ार की मज़बूती बन सकती हैं। सरकारों को भी चाहिए कि कोई एक विदेशी भाषा की गुलामी को छोड़कर अपनी भाषाओं की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि इस समय पूँजी का केन्द्र आपके हाथों में होने से आप विश्व को दिशा-निर्देश दे सकते हैं कि हमसे व्यापार करना है तो हमारी भाषा में करना होगा। जैसे चीन ने अपने देश में स्वभाषा की बाध्यता लगाई है। भारत भी चाइना की तरह ही बल्कि यूँ कहें कि चाइना से भी अधिक व्यापार सम्पन्न राष्ट्र है। फिर अपनी भाषा की स्थिरता क्यों नहीं?
इसके साथ भारतीयों के भीतर भी कटुता का त्याग कर जनजागृति लानी होगी, हम आपस में न लड़कर वैश्विक रूप से ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ के सिद्धान्त को दृढ़ करें। इस समय महाराष्ट्र में मराठी भाषा और हिन्दी के बीच खाई पैदा की जा रही है, जबकि जिन राजनैतिक लोगों को हिन्दी का विरोध दिख रहा है, वही आज मुम्बई की सफलता में बॉलीवुड के योगदान को नहीं हटा सकते। आज हिन्दी फ़िल्म जगत का केन्द्र मुम्बई न होता तो शायद आज मुम्बई इतना प्रगतिशील नहीं होता। कुल मिलाकर आप हिन्दी के बिना भारत की प्रगति सोच नहीं सकते, तब हिन्दी को अलग करने की चाह क्यों?ग
वैसे भी कोई भाषा किसी पर थोपी नहीं जा रही, बल्कि सब जनस्वीकार्यता के आगे नतमस्तक है। ऐसे दौर में भारत को अपनी सांस्कृतिक संपन्नता को कमज़ोर नहीं आँकना चाहिए। भारतीयता को बचाना है तो भारत की भाषाई पहचान हिन्दी को मज़बूत करना होगा, वह हेय की नहीं हित की भाषा है।।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

सड़कों पर कब्ज़ा या बदरंग होता शहर

◆ डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

शहर उत्सवधर्मी है, उत्सवों का अपना आनंद भी है, और इन्हीं उत्सवों की बदौलत इन्दौर की आर्थिक तंदरुस्ती भी बनी रहती है। किन्तु त्योहार हर व्यक्ति के होते है, इस बात से बेख़बर ये तथाकथित बड़े दुकानदारों ने तो अपनी दुकान सड़कों पर ही लगा रखी है। बची-कुची पार्किंग पर भी इनका कब्ज़ा है, अथवा सड़कों पर ग्राहकों की गाड़ियों को पार्क करवा कर सीधे तौर पर सड़कों पर अतिक्रमण करने आम राहगीर का जीना दूभर कर रहे हैं, और प्रशासन है कि हमेशा की तरह हाथ पर हाथ धरकर बैठा है, जैसे मानो कुछ अतिक्रमण हो ही नहीं रहा क्योंकि ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’?

कारण कुछ भी हो पर शहर के प्रति इस तरह की प्रशासनिक अनदेखी सोचने पर विवश करती है कि इस तरह की रहमदिली प्रशासन ने क्यों दिखा रखी है? पलासिया से साकेत नगर जाने वाले मार्ग में ग्रेटर कैलाश के सामने की ओर सड़कों पर चौपहिया वाहनों की अनाधिकृत पार्किंग बन गई, उसी मार्ग पर आए दिन जाम लगता है। दो मिठाई की प्रसिद्ध दुकानों के ग्राहकों के चौपहिया वाहनों का कब्ज़ा सड़क पर है, इससे आगे निकले तो कैप के बड़े ब्रांड की दुकान से लेकर आगे वाले कॉम्प्लेक्स दोनों में पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं है, इस कारण वहाँ के रहवासी दुकानदारों और ऑफ़िस मालिकों की गाड़ियाँ भी सड़कों पर पार्क हैं। यही हाल साकेत चौराहे से आनंद बाज़ार जाने वाले रास्ते के मोड़ का भी है।
बहरहाल, यही हाल शहर के अन्य-अन्य स्थानों का भी है, पर प्रशासन का अतिरिक्त प्रेम इन बड़े दुकानदारों पर क्यों है? जबकि इसी शहर में नगर निगम की पीली गैंग ने सड़कों पर ग़रीबों की दुकानों से सामान सड़क पर फेंका है। रेहड़ियों को पलट कर ग़रीब के सामान को लूटा है। शहर के पश्चिम क्षेत्र के बाज़ारों में तो पैर रखने की जगह नहीं, आधी सड़क तो अतिक्रमण से दुकानदारों ने घेरी हुई है और बची हुई जगह पर लोगों ने गाड़ियों की पार्किंग रख ली। अब इस शहर का भगवान ही मालिक बचा है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक

नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा ‘नया इन्दौर’

◆ डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

कभी अपने शहर इन्दौर के लिए सुना भी नहीं था कि गंजेड़ी, भंगेड़ी, पाउडरची, चरसी, अफ़ीमबाज़, नाइट्रा बाज़, और तमाम तरह के नशेड़ियों का शहर होने लगेगा। पर जैसे-जैसे शहर मेट्रोपॉलिटन बनने की राह पर है, वैसे-वैसे बेलगाम नशेड़ियों ने अपना ‘ठिया’ इन्दौर को बना लिया है।
विजय नगर से लेकर लव कुश चौराहा, मेट्रो मार्ग से एयरपोर्ट जाने वाले मार्ग को तो नशेड़ियों ने अपने कब्ज़े में लेकर मानो शिकार करने का अड्डा बना रखा है। वैसे एबी रोड़ भी इन्ही नशेबाज़ों की चपेट से अछूता नहीं है।
शहर के अपराध रिकॉर्ड को रोज़ खंगाला जाए तो हर दिन इन्दौर में नशेबाज़ों के द्वारा लूट, मारपीट, छीना-झपटी, बलात्कार, राह चलती लड़की पर बुरी नीयत से हाथ डालना, यहाँ तक कि हत्या जैसे जघन्य कार्यों को भी नियमित अंजाम दिया जा रहा है।
कई पुराने चिह्नित क्षेत्रों में तो नशे का कारोबार भयंकर रूप से हो रहा है। हाल ही में मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि ‘इंदौर में नशे के कारोबार के तार राजस्थान के प्रतापगढ़ से जुड़े हैं। एमपी पुलिस ने चोर को तो पकड़ लिया है, लेकिन चोर की माँ तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। एमपी को बचाना है तो चोर की माँ तक पहुँचना ज़रूरी है।’
सोचिए प्रदेश के काबीना मंत्री तक नशेड़ियों से त्रस्त हैं, उसके बावजूद नशे के शिकार लोग शहर को बर्बाद करने आए बाज़ नहीं आ रहे और न ही कोई पुलिसिया बड़ी कार्यवाही हो रही है।
पिछले दिनों इन्दौर पुलिस ने बड़े स्तर पर ‘नशे से दूरी है ज़रूरी’ अभियान के तहत नशे से मुक्ति के लिए जागरुकता का कार्य किया, जिसमें विशाल मानव शृंखला बनाकर विश्व कीर्तिमान भी बना लिया पर नतीजा जस का तस ही है। नशेड़ी से हर थाना परेशान है। हर थाने में रोज़ नशेड़ियों के कृत्य दर्ज हो रहे हैं। बीते 15 दिन में दो वरिष्ठ पत्रकारों के साथ भी नशेड़ियों ने वारदात कर दी, परदेशीपुरा थाना क्षेत्र में पत्रकार सागर चौकसे को नशेड़ियों ने लूट का शिकार बनाया। कल रात विजय नगर थाना क्षेत्र में पत्रकार अभिषेक वर्मा को होटल ला-ओमनी के समीप रोककर मारपीट की, आरोपी अभी भी पहचाने नहीं गए और न ही आस-पास का सीसीटीवी चालू मिला। इस तरह होती वारदातों से शहर के निवासियों में भय का वातावरण है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रभार वाला जिला आज नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा है। न नशेड़ियों पर वार हो रहा है और न ही इनके आकाओं की कमर तोड़ी जा रही। आख़िर इस तरह का ‘उड़ता इन्दौर’ किसी इन्दौरी के ख़्वाबों का शहर नहीं हो सकता। इस इंदौर को बचा लीजिए माननीय प्रशासन, वर्ना शहर बर्बाद हो जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक

क्या बर्बाद यातायात व्यवस्था का हल है हेलमेट की अनिवार्यता?

शहर में पहले की तरह ही हल्ला मचाया जा रहा है कि सरकार हेलमेट न लगाने वालों को अब फिर से पेट्रोल देना बंद कर रही है। भारतीय नागरिक सुरक्षा अधिनियम 2023 का हवाला लेकर इन्दौरी सरकार ने आदेश कि आगामी 1 अगस्त 2025 से बिना हेलमेट लगाये दो पहिया वाहनों को पेट्रोल नहीं मिलेगा। पेट्रोल पंप की निगरानी की जाएगी, उम्मीद की जा रही है कि इस आदेश के बाद सड़क दुर्घनाएँ कम होंगी।
इस तरह के आदेश पहले भी इन्दौर में आ चुके हैं, कुछ ही दिनों में ऐसे आदेश की धज्जियाँ उड़नी शुरू हो जाती हैं, पहले भी जब यह आदेश आया तो पेट्रोल पंप के कैमरे की निगरानी से थोड़ा दूर खड़ा पम्प कर्मचारी हेलमेट मुहैय्या करवाता है, आप पेट्रोल भरवा कर दूसरी ओर से जैसे निकलेंगे, पम्प का ही दूसरा कर्मचारी आपसे वापस हेलमेट ले लेगा। अब इससे तो हेलमेट की अनिवार्यता की भी धज्जियाँ उड़ गईं और यह आदेश भी नाक़ामयाब हुआ।
इसी तरह, इन्दौर नगरीय सीमा में अस्त-व्यस्त यातायात के चलते सामान्य दो पहिया वाहनों की गति प्रायः 20 किमी से 40 किमी तक ही होती है, ऐसी मध्यम गति में वाहनों की टक्कर संभवतः कम या नगण्य होती है।
स्वच्छतम शहर की मुख्य समस्या सड़क दुर्घटना नहीं बल्कि बिगड़ा हुआ यातायात व्यवस्थाओं का ढर्रा, असुरक्षित सड़क मार्ग, आए दिन लगने वाला सड़क जाम, घटिया गुणवत्ता की सड़कें, जिनमें बारिश में तो कई गड्ढों ने अपना घर बना लिया, पुराने मार्ग पर अतिक्रमण, हॉकर ज़ोन की कमी है, पर नगर सरकार ने इस दिशा से ध्यान हटाने के लिए अपना रूख़ हेलमेट की ओर कर लिया। पिछली बार जब इसी तरह का आदेश लाया गया था, तब भी कोई ख़ास कारगर नहीं हुआ, कुछ ही दिनों में इस आदेश को वापस लिया गया। अब फिर इसे लाकर थोड़ी हेलमेट बनाने वाली कंपनियों को लाभ तो पहुँचाया जाएगा, पर धरातल पर फिर वही ढाक के तीन पात।
बात यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने की हो रही थी, पर नगर सरकार हेलमेट पर ही अटक गई, ऐसे में हिंदी की एक कहावत याद आती है- ‘आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास।’

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार
इन्दौर, मध्यप्रदेश

पेडों की हत्याओं पर मौन तंत्र

दिखावा नहीं, असल पर्यावरण हितैषी बनना होगा

इन्दौर में लगातार पर्यावरण जागरुकता मुहिम चलाई जा रही है, पेड़-पौधों के रोपण की संख्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है, राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे लगातार पेड़ लगाए जा रहे हैं, ‘एक पेड़ माँ के नाम’ से आरम्भ हुई यात्रा अब ‘एक बगिया माँ के नाम’ तक पहुँच चुकी है। वर्ष 2024 में सरकारी तंत्र द्वारा 51 लाख पेड़ लगाने का पुनीत कार्य करने की बात हुई और फिर एक ही दिन में 11 लाख पौधे लगाकर विश्व कीर्तिमान बनाया और अब इस वर्ष भी 51 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया हुआ है, ऐसे दौर में भी शहर में वृक्षों की अवैध कटाई रुकी नहीं।
शहर को मेट्रोपॉलिटन बनाने का सपना देखने वाले राजनेताओं ने विकास की मेट्रो चलाने के लिए सैंकड़ों पेड़ सुपर कॉरिडोर और अन्य स्थानों पर ट्रांसप्लांट किए, उनमें से कई जीवित नहीं रह पाए। फ्लाईओवर बनाने की हड़बड़ी ने हज़ारों पेड़ों को असमय मौत के घाट उतार दिया। यहाँ तक कि मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के द्वारा हुकुमचंद मिल की ज़मीन पर 5000 से अधिक पेड़ों पर आरी चलने के दुःखद समाचार ने शहर को व्यथित किया। ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर और आसपास की सड़कों पर ग्रीनरी कम हो गई है। ऐसी सैंकड़ों घटनाओं का गवाह इन्दौर बना है और आज भी बनता ही जा रहा है।
काग़ज़ों पर बनाई तमाम वृक्ष हितेषी योजनाओं की साख पर धरातलीय कार्यों ने बट्टा लगा दिया। प्रदेश के कई जिलों में वन माफ़िया रात के स्याह अंधेरे में वृक्षों की अवैध कटाई में लगे है। जबकि उच्च न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगा रखी है। ऐसे में विचार यह भी उठता है कि जब प्रदेश के मुखिया से लेकर मंत्री, अफ़सर, महापौर इत्यादि सब वृक्ष हितेषी हैं तो फिर इन वन माफ़ियाओं के हौंसलें बुलंद कैसे, जो वृक्षों को अंधाधुंध काट रहे हैं!
खोट तंत्र के मौन में है, जो धृतराष्ट्र की भाँति पांचाली के चीर हरण पर मौन रहे, और वृक्षों की अब लगातार हो रही हत्या पर चुप्पी साध कर नए पेड़ लगाने के अभियान को गति दे रहे हैं। शायद वृक्षों का नाम मतदाता सूची में नहीं है, अन्यथा उनके बचाओ के लिए भी यह तंत्र आगे आता। यदि शहर हित चाहते हैं तो सबसे पहले वन माफ़ियाओं को चिह्नित करके वृक्षों की हत्या से बचाओ, अन्यथा सारी बगिया और पेड़ कोरे दिखावे हैं।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार
इन्दौर, मध्यप्रदेश

जनता और प्रशासन के तालमेल से सुधरेगा ‘इन्दौरी ट्रैफ़िक’

जिजीविषा की कमी, इच्छाशक्ति की मृत्यु और ध्येय का धूमिल हो जाना ही किसी कार्य की असफलता का मानक और पर्याय हो जाता है। ऐसा ही कुछ हाल इन्दौर के अव्यवस्थित यातायात ने शहर पर बदनुमा दाग़ की तरह जगह बना ली है।
भारत में लगभग 1 लाख से अधिक लोग प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गँवा देते हैं, उनमें से अधिकांशतः युवा हैं, ऐसे नए भारत में इंदौर भी किसी सूरत में कम नहीं। बीते दिनों एक सड़क मार्ग जाम हो जाने से 3 लोगों ने दम तोड़ दिया। पुलिस-प्रशासन को उस जाम को हटवाने और सड़क मार्ग को सुचारू करवाने में 15 घण्टे से अधिक समय लग गया। ऐसी दुर्गति शहर के भीतर भी आए दिन हो रही है। यातायात के मामले में तो अब इंदौर राम भरोसे ही चल रहा है। और इसके लिए जितना ज़िम्मेदार प्रशासन है, उतनी ही ज़िम्मेदार जनता जनार्दन भी है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती, उसी तरह केवल प्रशासन द्वारा यातायात दुरुस्तीकरण के क़दम उठाने से शहर का यातायात भला नहीं हो जाता, जनता को भी नियम से चलने और बेवजह यातायात बाधित नहीं करने का भी ज्ञान होना चाहिए।
इंदौर ने पूरे देश में स्वच्छता के मामले में मिसाल क़ायम की है, उसी तरह सुचारू यातायात व्यवस्था में भी हम नंबर वन बनें। इंदौर की बड़ी समस्या, अव्यवस्थित यातायात और सिग्नल तोड़ते लोग हैं।
वैसे यातायात विभाग को सिग्नल तोड़ने वाले, यातायात बाधित करने वाले, सड़कों पर बेतरतीब वाहन खड़े करने वालों पर सख्ती और तगड़ा जुर्माना लगाना चाहिए। बड़ी बात यह भी कि शहर के जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों को भी एक प्रण लेना होगा कि किसी व्यक्ति द्वारा यातायात नियमों को तोड़ने पर लगने वाले जुर्माने व कार्यवाही से बचाने के लिए कतई पुलिस विभाग में न ही फ़ोन लगाए जाएँगे और न ही कोई दबाव बनाया जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
स्वतंत्र लेखक एवं हिन्दीयोद्धा
इन्दौर, मध्यप्रदेश

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी
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एक आम भारतीय के दृष्टिकोण से यह कहना बहुत उचित है कि भारत की सरकार ने समझौता किया और अमेरिका के दबाव में कदम पीछे लिए किन्तु जब इसे अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य, युद्धनीति और वैश्विक विवशताओं के साथ जोड़कर देखेंगे तो निःसंदेह इसका दूसरा पक्ष भी है, जो जल्द ही सामने आएगा।
मत देखिए कि पाकिस्तान को मदद करने वाले देश कौन हैं पर यह अवश्य देखें कि behind the curtain क्या हो रहा होगा!
एक संवेदनशील प्रधानमंत्री और उनसे भी कहीं अधिक धैर्य रखने वाली भारतीय सेना… विश्वास कीजिए, अवश्य कुछ अलग और बेहतर होगा।
इस समय भारत विकासशील देशों की श्रेणी में आता है, एक उदाहरण है ना कि जब हम सड़क पर चलते हैं तो साइकिल सवार यदि ग़लती से भी कार से टकरा जाए, तब भी ग़लती कार चालक की मानी जाती है। उसी तरह पाकिस्तान साइकिल सवार देश है और भारत कार चालक।
चीन यही चाहता है कि भारत को युद्ध में उलझा कर कुछ नुक़सान करे। पर यह भी तय है कि देश का गंभीर नेतृत्व कुछ तो सोच ही रहा होगा, जबकि वह जानता है कि आगामी चुनाव में इस तरह रणछोड़ बनना उसके राजनैतिक दल के लिए घातक हो सकता है, फिर भी यह निर्णय लिया है तो कुछ तैयारी के साथ ही यह कदम उठाया होगा।
शेष सब शुभ हो, यही कामना है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

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संकट में है अख़बार, भविष्य अधर में

✍🏻 *डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*

‘एक समय आएगा जब अख़बार रोटरी पर छपेंगे, संपादकों की ऊँची तनख्वाह होगी, पर तब संपादकीय संस्थाएँ समाप्त हो जाएँगी।’ ऐसी बात आज़ादी के पहले बाबू विष्णु पराड़कर जी लिख गए, जो आज अक्षरश: सत्य नज़र आ रही है।
आज संपादकीय संस्थान तो विज्ञापन या कहें सर्कुलेशन विभाग के मुनाफ़े और आज्ञा पर ही जीवित हैं।
असल बात तो यह है कि हिंदुस्तानी अख़बार दुनिया का एकमात्र ऐसा हसीन उत्पाद (प्रोडक्ट) है, जो अपनी लागत मूल्य से कम से कम पाँच या दस गुना कम मूल्य में बिकता है क्योंकि शेष लाभ विज्ञापन आधारित माना जाता है।
इसी कारण संपादकीय विभाग भी विज्ञापन विभाग के दबाव में रहने लगा है।
इस मूल्य की क्षीणता के साथ ही वर्तमान समय में देशबन्दी के कारण अख़बारी दुनिया केवल खानापूर्ति मात्र हो रही है।
अख़बारों को संचालित करने वाली व्यवस्था, जिसे विज्ञापन कहते हैं, वो अख़बारों से गायब है, और जब विज्ञापन नहीं होंगे तो अख़बार कैसे ज़िंदा रहेगा!
हालात तो यह है कि देश के कई मीडिया संस्थान कर्ज़े में हैं, घाटे में हैं, कई महीनों से नियमित तनख्वाह तक दे पाने में असमर्थ हैं। इसके बावजूद कोरोना कहर के कारण वितरण भी प्रभावित है और समाचार भी।
ऐसी स्थिति में अख़बारों का प्रबंधन वेंटिलेटर पर आ जाएगा। आर्थिक रूप से टूटे हुए अख़बारी लोग तनख्वाह, भत्ते आदि से परेशान रहेंगे, नौकरियों में संकट आना स्वाभाविक है और कामगारों और पत्रकारों के लिए दुगुनी चिंता क्योंकि समय पर वेतन न मिलने का बोझ और नौकरी करने के कारण जेब से ख़र्च करके नियमित काम करने का भी तनाव। यहाँ तक कि अख़बारी काग़ज़, स्याही आदि ख़रीदी की भी चिंता। इन सबके बावजूद भी अख़बार के घटते पाठक या ग्राहक और डिजिटल मीडिया पर भरोसा करते हुए लोग भी तो अख़बारी पाठन से दूर हो रहे हैं।
वैसे भी विश्व के कई देशों में प्रिंट मीडिया ने अपना रुख इंटरनेट मीडिया की ओर काफ़ी पहले कर लिया है, बीते एक दशक से तो डिजिटल संस्करण श्रेष्ठ विकल्प बनकर उभर रहे हैं।
ऐसे मुश्किल हालात में सरकारों को भी नियमित अख़बारी छपाई को रोक कर डिजिटल संस्करण को अधिक मान्यता देनी चाहिए।
काग़ज़ भी बचेगा यानी जंगल बचेंगे और साथ में यह उद्योग भी लाभ के उद्योग में तब्दील हो पाएगा।
इस संकट की घड़ी में ही सही किन्तु सरकारें यदि नियमित छपी हुई प्रति की माँग को समाप्त कर दें तो शायद अख़बारी दुनिया भी डिजिटल की ओर रुख कर लें, वैसे भी डिजिटल संस्करण की ताक़त ज़्यादा होती है।
और अभी की देशबन्दी के हालातों के बाद तो यकीन जानिए आगामी एक वर्ष तो विज्ञापनों की आमद होने में संकट है और बिना विज्ञापन के अख़बार का भविष्य भी संकट में ही है।
कवि कुमार विश्वास कहीं लिखते है कि
‘जिसके विरुद्ध था युद्ध उसे
हथियार बना कर क्या पाया?
जो शिलालेख बनता उसको
अख़बार बना कर क्या पाया?’
आज अख़बार की दुनिया दोतरफ़ा संकट में है। मूल्यों का क्षरण तो लगातार हो ही रहा है और आर्थिक रूप से पड़ने वाली मार तो ज़्यादा संकट में डालेगी।
डिजिटल दुनिया में तो एक लाभ और भी है कि आप अपने विज्ञापनदाताओं को यह स्पष्टता के साथ बता पाओगे कि कितने लोगों ने विज्ञापन देखा जबकि अख़बार में यह सुनिश्चितता तो है ही नहीं। इसी के चलते ज़्यादा विज्ञापन मिलेंगे क्योंकि कम लागत में विज्ञापनदाताओं का लाभ अधिक है। समय रहते यदि अख़बार नहीं संभल पाए तो आर्थिक, सामाजिक और व्यवस्थाजन्य तो कमज़ोर होंगे ही, साथ में अस्तिव भी संकट में आ जाएगा। जागना आवश्यक है, वर्ना, अख़बार का भविष्य खतरे से खाली नहीं है ।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
ख़बर हलचल न्यूज़, इंदौर

लता मंगेशकर : स्वर की अधिष्ठात्री का महाप्रयाण

फरवरी की छहः तारीख, रविवार की सुबह जिस बुरी ख़बर को लाई, वो कभी न् भूल पाने वाली ख़बर रही। इन्दौर में जन्मी और पूरे भारत ही नहीं अपितु वैश्विक मण्डल में अपने स्वर से स्वयं को स्थापित करने वाली साधिका लता मंगेशकर की सुरलोक की यात्रा का समाचार स्तब्ध कर गया।

आज हजारों गीत रो रहें है, गीतों का रुदन यदि सुनना चाहते है तो बम्बई के प्रभु-कुंज की ओर देखिए। जो शब्द पूजनीया लता दीदी के कंठ से अवतरित हुए होंगे उनका अभिमान निश्चित तौर पर चरम पर होगा और आज वें लाखों शब्द आज रो रहें होंगे।
स्वर और शब्दों पर लता ताई की अद्भुत पकड़ रही, लता ताई मंगेशकर को स्वरों की अधिष्ठात्री भी कहा जाएँ तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। ऐसी स्वर अधिष्ठात्री के अवसान से आज समूचा भारत स्तब्ध हैं।
यह गौरव इन्दौर के खाते में दर्ज हुआ कि इस मालवा की धीर-वीर, गम्भीर और रत्नगर्भा धरती पर लता ताई का जन्म हुआ। वैसे संगीत समृद्ध शहर इन्दौर कला, साहित्य और पत्रकारिता की भी उर्वरक धरा हैं।
आज स्वर साम्राज्ञी के इह लोक से सुरलोक की यात्रा के लिए प्रस्थान को नियति ने तय किया और भारत भू से अपने प्रदत्त स्वर को बैकुण्ठ के कंठ में पुनः प्रविष्ठ कर लिया किन्तु खाली रह गया तो केवल यह भूमि का टुकड़ा जिसे हम भारत कहते हैं।
निश्चित तौर लता जी के महाप्रयाण से संगीत, गायकी और फ़िल्म जगत ही नहीं वरन् समूची भारत भूमि प्रभावित हुई है। हज़ारों गायिकाओं की आदर्श और हिन्दी गीतों की अनंत यात्रा का नाम लता मंगेशकर हुआ करता हैं।
कहते है मुम्बई में भी इन्दौर लता दीदी के रूप में धड़कता रहा हैं। इन्दौर और मध्यप्रदेश से लता दीदी बेहद प्यार करती रही, उनके नाम पर शासन द्वारा लता अलंकरण भी दिया जाता हैं। इन्दौर की एक गली जिसे पताशे वाली गली के नाम से भी प्रसिद्धि मिली जहाँ लता जी का जन्म हुआ।
28 सितंबर 1929 को इंदौर के एक मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में जन्मीं लता मंगेशकर का नाम पहले हेमा था। हालांकि जन्म के 5 साल बाद माता- पिता ने इनका नाम बदलकर लता रख दिया था।
पंडित दीनानाथ मंगेशकर जी की सुपुत्री व शिष्या लता ताई किसी विद्यालय नहीं गई किन्तु बीसियों विश्वविद्यालयों ने उन्हें सम्मान स्वरूप डॉक्टरेट प्रदान कर शैक्षिण अभिनंदन किया हैं।
अपनी मधुर आवाज से लोगों को दीवाना बनाने वाली लता मंगेशकर जी ने लंबे समय तक अपने गीतों से दर्शकों का मनोरंजन किया। फिल्म इंडस्ट्री में स्वर कोकिला के नाम से मशहूर लता जी के गाने आज भी लोगों के मानस में जीवित है। हिंदी सिनेमा की इस दिग्गज गायिका के गाने ना सिर्फ बीती पीढ़ी के लोग पसंद करते हैं, बल्कि नई पीढ़ी भी इन्हें बड़े शौक से सुनती है। अपनी दमदार आवाज के दम पर इंडस्ट्री में एक अलग पहचान बनाने वालीं लता मंगेशकर आज भी करोड़ों दिलों की धड़कन हैं। ‘भारत रत्न’ से सम्मानित मशहूर गायिका लता मंगेशकर अपने अनूठे अंदाज़ के लिए भी जानी जाती रही हैं।
गीतकार प्रेम धवन ने लता जी के व्यक्तित्व पर एक कविता लिखी थी जिसमें दृश्य यह था कि गिरधर कृष्ण ने जब यह बात याद दिलाई होगी कि आपने वादा किया था जन्म लेने का तब कृष्ण का उत्तर रहा होगा कि वो तो नहीं आएँ अब तक पर पहले अपनी बाँसुरी भारत में भेजी है उस बाँसुरी का नाम भारत रत्न लता मंगेशकर है ।
50,000 से ज्यादा गीतों को अपनी आवाज दे चुकीं लता जी ने करीब 36 क्षेत्रीय भाषाओं में भी गाने गाए, जिसमें मराठी, बंगाली और असमिया भाषा शामिल है।92वें वर्ष की दैहिक आयु को तजकर आज स्वर कोकिला अपनी अनंत यात्रा पर प्रस्थान कर गई। स्वर कोकिला ने देह परिवर्तन कर लिया, पर यक़ीन् जानना वह हमारे बीच हमेशा रही है और हमेशा रहेंगी।
विधि के विधान के आगे हम नतमस्तक है। भारत रत्न, पूजनीया लता मंगेशकर जी के चरणों में विनम्र प्रणाम सहित स्वर साम्राज्ञी लता ताई को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, इन्दौर