डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ की प्रकाशित पुस्तकें 2025
अब तक कुल 14 पुस्तकें
काव्य संग्रह
- काव्यपथ [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- वारांगना (व्यथांजलि) [प्रथम संस्करण वर्ष 2020 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- महायात्री [प्रकाशन वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
आलेख
- मेरे आँचलिक पत्रकार [प्रथम संस्करण वर्ष 2015]
- राष्ट्रभाषा (तर्क और विवेचना) [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- पत्रकारिता और अपेक्षाएँ [प्रकाशन वर्ष 2021 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- हिन्दी विमर्श [प्रकाशन वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- हिन्दी योद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक [प्रकाशन वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
बाल कविता संग्रह
- मनय [प्रकाशन वर्ष 2025 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
लघु पुस्तिकाएँ
1. नव त्रिभाषा सूत्र [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 |प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- हिन्दी! आख़िर क्यों? [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 |प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
- हिन्दी ग्राम [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 |प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
प्रकाशनाधीन
- एक अल्हड़ दिवाना कवि- राजकुमार कुम्भज
- अनहद अहद प्रकाश
- उर्विजा
सुधि पाठकों और आप सभी के स्नेहाशीष से अब तक का रचना संसार। आभार हिन्दीप्रेमियों का, आप सभी का। सभी पुस्तकें अमेज़न, फ्लिपकार्ट व संस्मय प्रकाशन पर उपलब्ध हैं। कुल छह पुस्तकों के द्वितीय संस्करण बाज़ार में उपलब्ध है।
काव्य संग्रह
1. काव्यपथ [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ का पहला काव्य संग्रह ‘काव्य पथ’ है, जिसका प्रथम संस्करण वर्ष 2018 में एवं द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 में संस्मय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक में डॉ. अर्पण ने सरल विषयों को सम्मिलित करते हुए सामान्य भाव की कविताएँ गढ़ी हैं। उनका मानना है कि काव्य का कृतित्व, शब्दों का संयोजन और भावों की वंदना जब एकाकार होकर सृजन के सापेक्ष एक छायाचित्र गढ़ती हैं, तब कहीं जाकर रचना को अपने पूर्ण होने का प्रमाण मिलता है। वही प्रमाण समय के बहुमूल्य रंग से रंगकर्मी की भाँति रचना को काव्यपथ का सूत्रधार बनाता है। काव्यपथ सरल, सहज भाव अभिव्यक्ति का संग्रह है, जहाँ चिर-परिचित नियमों व व्याकरणबद्ध संचालक मानकों पर न कस कर कल्पना को आकार दिया गया है। वैसे भी भावों को नियमों की कसौटी पर कसना संभव नहीं होता, उसी तरह जैसे नदी के वेग और धारा का वर्णन तो किया जा सकता है परन्तु नियमबद्ध नहीं किया जा सकता। वैसे इस संग्रह में स्त्री, राष्ट्र, प्रेम, सामान्य समाज और समाज के देव राम से प्रश्न इत्यादि सम्मिलित हैं।
कवि ने बहते हुए भावों को शब्दबद्ध कर एक माला बनाने का प्रयास किया है, जो निश्चित तौर पर पाठक के मन व मस्तिष्क तक पहुँचने में सफल होकर सुंगध फैलाएगी। काव्य पथ का उद्देश्य ही रस में पाठक को लाना है, जहाँ परमात्मा व माँ-पिता का आशीर्वाद साथ लेकर बहन का स्नेह और पत्नी के प्रेम का पुट भी मिलाया है ताकि रसास्वादन की सम्पूर्णता का बोध हो। व्याकरणिक रूप से सशक्त तो नहीं किन्तु भावनात्मक रूप से पहला संग्रह सशक्त है।
- वारांगना (व्यथांजलि) [प्रथम संस्करण वर्ष 2020 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने सामान्यतः समाज से तिरस्कृत स्त्री, जिसे वेश्या, नगरवधु, वारांगना के नाम से पहचाना जाता है, की पीड़ा और व्यथा को लिखने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में कवि का भाव है कि ‘संसार की हर स्त्री, अपने समय में कहीं न कहीं ख़ुद को वारांगना जैसी समझती भी है पर हेय भी उसी वारांगना से रखती है। और समाज वारांगना को स्वीकार नहीं करता, जबकि यदि वारांगना जीवित है तभी तो संसार में स्त्री और स्त्रीत्व सुरक्षित है। वारांगना शब्द के पर्यायवाची वेश्या, नगरवधू, गणिका, नगरश्री आदि हैं। हमारा समाज वारांगना को भोग्या मानता है किंतु वह भी असाधारण कर्त्तव्य निर्वहन के लिए बनी साधारण स्त्री है। यदि समाज के सभी पुरूष सुकुमार ही होते तो फिर वेश्यालय ज़िंदाबाद नहीं रहते।’
वारांगना भी एक स्त्री है और उस स्त्री के भीतर भी वेदना होती है, पीड़ा होती है, दर्द होता है, स्वांग रचाकर कर्म करना सहज नहीं होता। उस असाधारण स्त्री के मन की पीड़ा को कविता के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयास डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने अपनी पुस्तक ‘वारांगना’ में किया है। ‘साज़ जो थे नहीं, राज़ बनकर रह गए…वारांगना तुम कैसे जी पाती…? तुम कितना सह जाती…? तुम कैसे घाव छुपाती…? ये दोष कैसा…? अपना कौन था…? वारांगना चुप रही सदा’ किन्तु कवि ने इन समस्त प्रश्नों के उत्तर जिस चित्रण के साथ दिए उन उत्तरों से पाठक निरुत्तर हो जाता है। पाठकों तक यह कृति प्रकाशित कर पहुँचाने का कार्य संस्मय प्रकाशन ने किया है। इसका प्रथम संस्करण वर्ष 2020 में तथा द्वितीय संस्करण 2023 में संस्मय प्रकाशन से ही प्रकाशित हुआ हैं।
- महायात्री [प्रकाशन वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने महायात्री पुस्तक को लिखा और वर्ष 2023 में जिसे संस्मय प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। मनुष्य के द्वारा मनुष्यता की खोज करने के लिए दर्शन और चिंतन के महासागर में डुबकी लगाना आवश्यक होता है, उसी तरह नाम से स्पष्ट है कि एक अनंत की यात्रा का ‘महायात्री’ अपने एकांत के चिंतन को समाज हितार्थ समाज के सामने रख रहा है, जिस यात्रा में अनावश्यक बोझ नहीं होते, न ही किसी सामान को साथ रखा जाता है और न ही किसी रिश्ते, नातेदारों को उस यात्रा के साक्षी भाव में शामिल किया जाता है। उस यात्रा में मनुष्य अपने अस्तित्व की खोज करता है और उसकी खोज में एकांत की अनिवार्यता उस यात्रा में उसे सबलता प्रदान करती है। जब खोज ही मनुष्य होने की होती है तो फिर निश्चित रूप से खोज का अर्जित मनुष्यता ही होगा। उसी खोज के दौरान एकत्रित एकांत में उपजी कविताएँ प्रायः दर्शन प्रधान होती हैं, जहाँ मानव के मानव होने की खोज को अक्षर और शब्द प्रदान किए जाते हैं। ‘महायात्री’ उन कविताओं का संग्रह है, जो मनुष्य होने के कई सारे कारणों में संरक्षित मनुष्यता का दायित्वबोध करवाता है। इस पुस्तक को पढ़ने के साथ-साथ आपका चिन्तन करना अनिवार्य शर्त है क्योंकि बिना चिन्तन किए कविताओं का मोल कम हो जाएगा। प्रायः यह पुस्तक आपके हाथों में एक चिंतन की चाबी है, जो आपके द्वारा किए गए ख़र्च की तुलना में आप तक इससे अधिक गहराई पहुँचाने का सामर्थ्य रख रही है। पाठक उस गहरे पानी में उतरकर अपने चिंतन को जागृत करेंगे।
आलेख
- मेरे आँचलिक पत्रकार [प्रथम संस्करण वर्ष 2015]
वर्ष 2007 से अपनी पत्रकारिता आरंभ करने वाले डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने अंचल में रहने वाले पत्रकारों की पीड़ा, उनकी कार्यशैली और उनके बारे में तथ्यपरक जानकारियों के साथ उनके अधिकारों, उनके कर्त्तव्यों से जुड़ी जानकारी को शामिल कर वर्ष 2015 में पहली पुस्तक ‘मेरे आँचलिक पत्रकार’ लिखी। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 2025 में संस्मय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। प्रायः अंचल में रहने वाला पत्रकार वैसे तो संवाददाता मात्र होता है किन्तु यदि कामकाज के दृष्टिकोण से देखा जाए तो वह सर्वगुण सम्पन्न होता है। इस पुस्तक का उद्देश्य यह है कि सीमेंट-कंक्रीट के जंगलों यानी शहरों में रहने वाले लोगों तक उस गाँव में कार्य करने वाले सशक्त योद्धा के बारे में उसकी पीड़ा, उसके अधिकार और उसके कर्त्तव्यों के बारे में अवगत करवाना। शहरों में प्रायः अख़बारों के स्थानीय कार्यालय होते हैं, जहाँ एक से अधिक पत्रकार कार्य करते हैं, और अख़बारी भाषा में कहें तो हर एक बीट पर अलग व्यक्ति कार्य देखता है, ख़बरों का संकलन करता है और विज्ञापन, अख़बार वितरण इत्यादि कार्यों के अलग-अलग व्यक्ति कार्यरत रहते हैं किन्तु गाँव में संवाददाता ही समाचार लिखता है, पुलिस, अस्पताल, घोटाला, सामाजिक आयोजन कवरेज, विज्ञापन लाना, उसकी वसूली इत्यादि सब एक ही व्यक्ति करता है और वही लोकतंत्र के मानद चौथे स्तम्भ का मज़बूत हस्ताक्षर भी है। इसी भाव के साथ लिखी पुस्तक ‘मेरे आँचलिक पत्रकार’ आँचलिक क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी लोगों के बीच भी बहुत लोकप्रिय हुई। इस पुस्तक में डॉ. अर्पण जैन के द्वारा आँचलिक क्षेत्रों में की पत्रकारिता के अनुभव और इसके साथ विभिन्न आन्दोलनों के कवरेज के दौरान अपनी आँचलिक यात्राओं के अनुभव भी साझा किए हैं ताकि पाठक सहज भाव से अंचल की पत्रकारिता से परिचित हो सके और साथ ही, इस पुस्तक में आँचलिक पत्रकारों के साक्षात्कार भी शामिल हैं।
- राष्ट्रभाषा (तर्क और विवेचना) [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
भारत के संविधान के आलोक में संघ की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, इसी बात से आहत डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने वर्ष 2018 में एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक था ‘राष्ट्रभाषा- तर्क और विवेचना’, जिसका द्वितीय संस्करण 2025 में संस्मय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ। राष्ट्रभाषा को लेकर देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों में कई तरह के भ्रम हैं, और उन भ्रम के साथ-साथ कई तरह की जिज्ञासा भी हैं कि आख़िर राष्ट्रभाषा और राजभाषा में अंतर क्या है? क्यों होनी चाहिए राष्ट्रभाषा? क्या हासिल होगा राष्ट्रभाषा होने से? और भी अन्य-अन्य।
‘राष्ट्रभाषा- तर्क और विवेचना’ पुस्तक में ‘राष्ट्रभाषा क्या होती है?’ इस परिभाषा से लेकर ‘जनभाषा हिन्दी के राष्ट्रभाषा होने का सन्दर्भ’ और साथ ही, हिन्दी को लेकर चलाए गये आंदोलनों की भूमिका भी शामिल करने का प्रयास किया गया है। जिस तरह इस राष्ट्र में राष्ट्रगान, राष्ट्र चिह्न, राष्ट्र ध्वज, राष्ट्र गीत, राष्ट्रीय पशु-पक्षी सब कुछ है सिवाय राष्ट्र भाषा के। साथ ही, देश की सांस्कृतिक अखंडता को बचाने और संस्कृति के संरक्षण हेतु भी जनभाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनना चाहिए। इसी के साथ, हिन्दी के लिए योद्धाओं के अपूर्व संघर्ष के दस्तावेजों के साथ जन आंदोलनों की जानकारी इत्यादि भी सम्मिलित हैं।
पुस्तक में राष्ट्रभाषा और राजभाषा की स्थिति, राजभाषा नियम 1976, हिन्दी की विकास-यात्रा, हिन्दवी से हिन्दी तक का मार्ग और विकास धारणा, हिन्दी के लिए विभिन्न योगदान, आख़िर हिन्दी अब तक क्यों नहीं बनी राष्ट्रभाषा?, कैसे बनेगी हिन्दी राष्ट्रभाषा? – एक समग्र चिन्तन, गांधी-दर्शन में राष्ट्रभाषा समाधान आदि विषयों को सम्मिलित किया गया है।
- पत्रकारिता और अपेक्षाएँ [प्रकाशन वर्ष 2021 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
भारत में पत्रकारिता के जन्म के साथ ही उसकी कुछ अपेक्षाएँ रही हैं, साथ ही, हिन्दी पत्रकारिता से हिन्दी भाषा की क्या अपेक्षाएँ हैं? भाषा अपने बच्चों से शोभायमान होती है और हिन्दी के पत्रकार तो उसी से आजीविका अर्जित करते हैं किन्तु उनके भी कुछ दायित्व हैं अपनी भाषा के प्रति। इसी तथ्य को लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने अपनी पुस्तक ‘पत्रकारिता एवं अपेक्षाएँ’ में लिखा है। इस पुस्तक को वर्ष 2021 में संस्मय प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।
पुस्तक वर्तमान दौर के पत्रकारों से सीधी और सरल भाषा में हिन्दी की माँग है। लेखक मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जिन्होंने अपना शोध कार्य भी पत्रकारिता में किया है और अब तक दस से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं। साथ ही, हिन्दी के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए देश का सर्वाधिक सक्रिय हिन्दी आंदोलन भी संचालित कर रहे हैं। इस नाते उन्होंने अपने पत्रकार साथियों के मध्य हिन्दी की अपेक्षाएँ पहुँचाने का कार्य किया। इस पुस्तक में छोटे-छोटे आलेखों के माध्यम से भूतकाल की पत्रकारिता से लेकर आधुनिक तकनीक सम्पन्न पत्रकारिता पर टिप्पणियाँ हैं, जो प्रत्येक पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक हैं। हिन्दी की पत्रकारिता से हिन्दी का शरीर मज़बूत होता है, इसलिए इस बौद्धिक सशक्तता के लिए डॉ. अर्पण जैन ने भाषा की पीड़ा के साथ-साथ उसकी अपेक्षाओं को पत्रकारों तक पहुँचाया है। यह पुस्तक लगभग दस हज़ार से अधिक पाठकों तक पहुँची और लेखक की अब तक की सर्वाधिक चर्चित और विक्रय होने वाली पुस्तक है।
- हिन्दी विमर्श [प्रकाशन वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ द्वारा लिखित व वर्ष 2024 में संस्मय प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक आंदोलनधर्मी हिन्दी प्रेमियों के लिए ख़ास तौर पर तैयार की गई है। भारत सहित अन्य देशों में भी हिन्दी भाषा के विस्तार हेतु लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ के नेतृत्व में संचालित हिन्दी आंदोलन के अनुभवों को लेकर तैयार हुए विमर्श पर आधारित ‘हिन्दी विमर्श’ पुस्तक में हिन्दी के राज से आरंभ हुई इस शब्द यात्रा में राष्ट्रभाषा की परिभाषा से उसके बनने तक के समाधानपरक आलेखों का संग्रह है, फिर हिन्दी की आवश्यकता से उपयोगिता और समृद्धता का विमर्श भी उपलब्ध है। किस तरह हिन्दी को अधिक मज़बूत किया जा सकता है! उन बातों पर भी प्रकाश डाला गया है, साथ ही, हिन्दी को किस से ख़तरा है? उन चुनौतियों को भी रखा गया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की क्या स्थिति है? इससे भी परिचित करवाने का प्रयास ‘हिन्दी विमर्श’ में किया गया है। किन-किन क़दमों की अपेक्षाएँ हिन्दी के लिए महत्त्वपूर्ण हैं, उन बातों पर ज़ोर देते हुए भारत की वर्तमान शिक्षा नीति की अवधारणाओं को भी सम्मिलित कर हिन्दी के बारे में विमर्श स्थापित करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
निश्चित रूप से सदी के सबसे बड़े प्रभावशाली व्यक्तित्व मोहनदास करमचंद गांधी के कथनानुसार कि ‘बिना राष्ट्रभाषा के राष्ट्र गूँगा है’ हमारे राष्ट्र की प्रतिनिधित्व भाषा हिन्दी के प्रतिनिधित्व विमर्श की माँग को रखने का प्रयास भी इस पुस्तक में उपस्थित है। वर्तमान यानी 21वीं सदी में मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा संचालित ‘हिन्दी आंदोलन’ को गति देते हुए जिन मुद्दों पर हिन्दीप्रेमियों को जागरुक करने की आवश्यकता महसूस हुई, उन कुछ एक मुद्दों को सम्मिलित कर जागरण का प्रयास किया गया है। निश्चित रूप से पाठकों की दृष्टिसम्पन्नता हेतु यह पुस्तक अत्यन्त आवश्यक है।
- हिन्दी योद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक [प्रकाशन वर्ष 2024 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
(डॉ. वैदिक पर एकाग्र देश की पहली पुस्तक)
देश के सुप्रसिद्ध पत्रकार एवं विचारक, पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, अनेक क्षेत्र में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डॉ. वेदप्रताप वैदिक के हिन्दी के प्रति अनन्य भक्ति के परिचय को समायोजित करते हुए डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने उनके अवदान को रेखांकित करते हुए एक पुस्तक ‘हिन्दीयोद्धा डॉ. वेदप्रताप वैदिक’ लिखी है, जिसका प्रकाशन वर्ष 2025 में संस्मय प्रकाशन, नई दिल्ली से हुआ है। इस पुस्तक में डॉ. वैदिक के सम्पूर्ण परिचय के साथ उनके जीवन के अनछुए पहलू, जो हिन्दी भाषा के लिए उनके संघर्ष, कार्य और अवदान के साथ-साथ कुछ क़िस्से, जो डॉ. वैदिक का हिन्दी प्रेम दर्शाते हैं, उनको सम्मिलित किया गया है। साथ ही, डॉ. वैदिक ने समय-समय पर हिन्दी का महत्त्व दर्शाने वाले आलेख लिखे हैं, उनमें से चुनिन्दा आलेखों का संकलन भी पुस्तक में है।
जैसे- अंग्रेज़ से ज़्यादा ख़तरनाक अंग्रेज़ी’, ‘हिन्दी कैसे बने विश्वभाषा?’, ‘तमिल ख़ुद सीखेंगे हिन्दी’, ‘हिन्दी के लिए खुला विश्व-द्वार’, ‘हिन्दी दिवस जनता कैसे मनाए?’ इत्यादि। इस पुस्तक का एक उद्देश्य यह है कि आम जनमानस, जो डॉ. वैदिक और उनके हिन्दी प्रेम के बारे में जानना चाहता है, उनसे परिचित होना चाहता है, वह सरल भाषा में उनसे जुड़ सके। साथ ही, दूसरा उद्देश्य यह है कि जो शोधार्थी डॉ. वैदिक पर अध्ययन करना चाहते हैं, उनके हिन्दी के प्रति अवदान पर कार्य करना चाहते हैं, सीखना और अनुसरण करना चाहते हैं, वे इस पुस्तक की सहायता से प्रारंभिक खाका तैयार कर सकते हैं।
निःसंदेह किताबें समय का शिलालेख होती हैं। आज डॉ. वैदिक के देह त्याग को लगभग 2 वर्ष बीत गए, किन्तु वे अक्षरदेह के रूप में हम सभी के बीच हैं। उन्हीं अक्षरों की साधना से ही डॉ. वैदिक अनंतकाल तक पुस्तकों के माध्यम से जनमानस के बीच उपस्थित रहेंगे। ऐसे महत्त्वपूर्ण उद्देश्य की स्थापना के लिए यह देश की पहली ऐसी पुस्तक है, जो उनके अवदान का संक्षिप्त परिचय देती है।
बाल कविता संग्रह
1. मनय [प्रकाशन वर्ष 2025 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
बच्चों के लिए कुछ लिखने से पहले ख़ुद बचपन को पुनः जीना होता है और यह कार्य सबसे कठिन है। एक बार यात्रा के दौरान डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को एक नन्हा पुस्तक प्रेमी मिला, यात्राओं के दौरान अधिकतर डॉ. अर्पण जैन पुस्तकें पढ़ते हैं, उसी दौरान उस बालक ने भी कोई किताब पढ़ने के लिए माँगी और डॉ. अर्पण ने उसे अपनी ही किताब दे दी। काफ़ी देर तक बच्चे ने किताब के पृष्ठ उलटफेर किए और एक प्रश्न के साथ किताब लौटा दी कि ‘इसमें तो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, क्या मेरे पढ़ने के लिए कुछ लिखा है आपने?’ यहीं से डॉ. अर्पण जैन को बाल कविता लेखन की प्रेरणा मिली और वर्ष 2025 में एक बाल कविता संग्रह लिखा, जिसे संस्मय प्रकाशन ने प्रकाशित किया। मज़ेदार बात यह भी है कि इस पुस्तक का नाम ‘मनय’ भी उसी नन्हे पाठक मनय के नाम पर ही है।
इस पुस्तक में प्रेरक चरित्र, आदतें और ऐसे कार्य जो बच्चों को जागरुक करते हैं, उन पर सरल भाषा में बुनी हुई कविताएँ हैं, जिससे बच्चे पढ़कर आनंदित होंगे। बाल मन के मनोभावों को दर्शाता ‘मनय’ बाल कविता संग्रह बच्चों को सीखने, समझने, अभ्यास करने व जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इस संग्रह में ‘ओ मनय! तुम हारना नहीं’ से ‘कक्षा का बचपन’, ‘भारत स्वच्छ रखते हैं’, ‘प्यारे पानी बाबा’, ‘हिमालय पर चढ़ जाएँगे’, ‘अज्ञानी से ज्ञानी’, ‘क्या नहीं खाऊँगा मैं’ एवं ‘अपना प्यारा देश हमारा’ जैसी कविताएँ सम्मिलित हैं।
लघु पुस्तिकाएँ
1. नव त्रिभाषा सूत्र [ प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 | प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
हिन्दी के उत्थान में भारत की स्वतंत्रता के बाद सबसे क्रान्तिकारी क़दम देश की पहली शिक्षा नीति के रूप में आया, उसी दौरान दौलत सिंह कोठारी आयोग का गठन किया गया, जिसने त्रिभाषा सूत्र दिया। किन्तु उस त्रिभाषा सूत्र का दक्षिण में बहुत विरोध हुआ, क्योंकि दक्षिण भारतीय लोगों का यह मानना था कि इस सूत्र के माध्यम से हिन्दी हम पर थोपी जा रही है। इस सूत्र में सुधार कर डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने वर्ष 2017-18 में एक नया त्रिभाषा सूत्र तैयार किया, जिसका व्यापक असर भारत की वर्तमान शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट दिखाई देता है। डॉ. अर्पण जैन ने इस सूत्र के व्यापक प्रचार-प्रसार और अनुपालन के लिए वर्ष 2018 में एक लघुपुस्तिका लिखी ‘नव त्रिभाषा सूत्र’, जिसका द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 में संस्मय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तिका के माध्यम से हज़ारों लोगों को जागरुक करने का कार्य किया गया है। दक्षिण भारत में भी समन्वय स्थापित करने की दृष्टि से यह पुस्तक महत्त्वपूर्ण साबित हुई।
- हिन्दी! आख़िर क्यों? [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 |प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
अपने ही देश में हिन्दी के सम्मान के लिए जब आंदोलन होना आरम्भ हुए तो इसने जनजागृति के साथ यह भी सोचने के लिए विवश किया कि आख़िर अपने देश में हिन्दी की आवश्यकता क्या है? उसी पीड़ा से उपजे विचारों ने डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को लिखने पर विवश किया। ‘हिन्दी! आख़िर क्यों?’ पुस्तक का प्रथम संस्करण वर्ष 2018 में व द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 में संस्मय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तिका में भारत में हिन्दी क्यों आवश्यक है? और किन-किन कारणों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनना चाहिए? इन विषयों में विचार लिखे हैं। यह भी लघुपुस्तिका श्रेणी में है किन्तु क्रांतिधर्मा होने कारण मातृभाषा उन्नयन संस्थान और इससे जुड़े हिन्दीयोद्धाओं ने घर-घर इस पुस्तक का वितरण ख़ूब किया और जनजागरण के लिए यह पुस्तिका सहायक है।
इस पुस्तक में हिन्दी की आवश्यकता, संवैधानिक महत्त्व और जनमानस क्यों हिन्दी को करे स्वीकार? जैसे विचारणीय प्रश्नों के सरल, सहज भाषा में उत्तर हैं। चूँकि लेखक स्वयं हिन्दी आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण अंग है, इस नाते भी उन्होंने अपने योद्धाओं के माध्यम से जनजागरण के लिए इस पुस्तिका का निर्माण किया।
- हिन्दी ग्राम [प्रथम संस्करण वर्ष 2018 | द्वितीय संस्करण वर्ष 2023 |प्रकाशक- संस्मय प्रकाशन]
हिन्दी आंदोलन में डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने एक आदर्श हिन्दी ग्राम की कल्पना की, जिसमें हिन्दी में जानकारियाँ मिलें, संवाद हिन्दी में हो, नामपट्टिकाएँ हिन्दी में लगी हों, इसी तरह की कल्पना को पुस्तकबद्ध किया गया। वर्ष 2018 में प्रथम संस्करण प्रकाशित हुआ, बाद में वर्ष 2024 में संस्मय प्रकाशन से द्वितीय संस्करण प्रकाशित हुआ। इस पुस्तिका के माध्यम से भी जनजागरण का कार्य किया जाता है, आम जनता में हिन्दी के महत्त्व को दर्शाया जाता है और आदर्श हिन्दी ग्राम के निर्माण के लिए प्रेरित किया जाता है। आज भारत में ग्राम पंचायत स्तर पर मातृभाषा उन्नयन संस्थान हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए जो कार्य कर रहा है, उसके केंद्र में ‘हिन्दी ग्राम’ ग्रन्थ का भी योगदान है।
प्रकाशनाधीन
- एक अल्हड़ दिवाना कवि- राजकुमार कुम्भज
2. अनहद अहद प्रकाश
- उपन्यास1. उर्विजा