घनाक्षरी- प्रेम

कोमल अंग सी तुम
प्रेम का पवित्र रूप
प्रेम तुम से हुआ है
प्रेम जीत जाएगा

जीवन का एक छंद
पवन बहेगी मंद
प्रीत की फुहार बन
प्रेम गीत गाएगा

भाषा का शृंगार देख
मन बन हार देख
मानस तो भीगा हुआ
प्रेम मीत लाएगा

कहने को शब्द रीत
मनडोर बंधी प्रीत
जीवन जीयेगा और
प्रेम प्रीत पाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’