हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन

कहानी: अनथक हिन्दी योद्धा डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ से खास भेंट हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन कहानी एक ऐसे व्यक्ति की जो हिन्दी भाषा को भारत में ही सम्मान स्वरुप राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संघर्षरत है, जो संगणक विज्ञान अभियंता होने के बावजूद स्थापित […]


स्तरहीन कवि सम्मेलनों से हो रहा हिन्दी की गरिमा पर आघात

स्तरहीन कवि सम्मेलनों से हो रहा हिन्दी की गरिमा पर आघात डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ कवि सम्मेलनों का समृद्धशाली इतिहास लगभग सन १९२० माना जाता हैं । वो भी जन सामान्य को काव्य गरिमा के आलोक से जोड़ कर देशप्रेम प्रस्तावित करना| चूँकि उस दौर में भारत में जन समूह के एकत्रीकरण के लिए बहाने […]


एक साक्षात्कार – डॉ अर्पण जैन अविचल का…

नाम: डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ पिता: श्री सुरेश जैन माता: श्रीमती शोभा जैन पत्नी: श्रीमती शिखा जैन जन्म: २९ अप्रैल १९८९ शिक्षा: बीई (संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी) एमबीए (इंटरनेशनल बिजनेस) पीएचडी- भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ पुस्तकें: १. मेरे आंचलिक पत्रकार ( आंचलिक पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक ) २. काव्यपथ ( काव्य संग्रह) ३. राष्ट्रभाषा (तर्क और विवेचना) ४. नव त्रिभाषा सूत्र (भारत […]


मासूमों की चित्कारों से लथपथ भारतीय राजनीति

मासूमों की चित्कारों से लथपथ भारतीय राजनीति डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल‘ भारत के भाल से पढ़े जा रहें कसीदे, कमलनी के तेज पर प्रहार हो रहा है, समाजवाद से गायब समाज है, वामपंथी भी संस्कृति और धर्म के बीच का अन्तर भूल चुके हैं, न देश की चिन्ता है,न ही परिवेश की| धर्म और जातियों के […]


झुलस रहा गणतंत्र, यह राष्ट्र धर्म नहीं

झुलस रहा गणतंत्र, यह राष्ट्र धर्म नहीं ===================================================== डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ जहाँ हुए बलिदान प्रताप और जहाँ पृथ्वीराज का गौरव हो, जहाँ मेवाड़ धरा शोभित और जहाँ गण का तंत्र खड़ा हो, ऐसा देश अकेला भारत है, परन्तु वर्तमान में जो हालात विश्वपटल पर पहुँचाए जा रहे है वो भारत का असली चेहरा नहीं | […]


लघुकथा- मंचों की कवयित्री

*2.लघुकथा-मंच की कवयित्री* संस्कृति मंचों की एक उम्दा कवियत्री है । सप्ताह में 4 से अधिक कवि सम्मेलनों में रचना पाठ करना ही संस्कृति की पहचान थी । पुरुषप्रधान समाज होने के कारण कई बार संस्कृति का सामना फूहड़ कवियों और श्रोताओं से भी होता था । इसी बीच एक गाँव में हुए कवि सम्मेलन […]


लघुकथा- प्रतिक्रिया

*लघुकथा- प्रतिक्रिया* सारांश अपनी व्यस्त जीवन शैली में संचयनी के साथ बहुत खुश था, पर संचयनी अपनी सहेलियों और सहकर्मीयों के बीच बहुत सीधी और भोली थी | संचयनी के सहकर्मी उसके भोलेपन का हमेशा नाजायज फायदा उठा कर संचयनी को ही तंज कसते रहते थे, जिसके कारण वह पिछले कुछ दिनों से थोड़ी उखड़ी-उखड़ी […]


वेब मीडिया की कानूनी मान्यता में फिसड्डी केन्द्र सरकार

सरकार अब तक वेब मीडिया को कानून के दायरे में नहीं ला पाई.. वरिष्ठ पत्रकार अजय जैन ‘विकल्प’ की खबर दैनिक स्वदेश में 27/09/2017


हिन्दी ही भारत की आत्मा

हिन्दी साहित्य के कुछ नौनिहालों ने आजकल भाषा को अंगवस्त्र बना डाला है, मानो शब्दों को व्याकरण का मैल समझ कर उसे पौंछ कर फैंकने भर को ही साहित्य सृजन मानने लगे हैं | इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार भी हमेशा की तरह आज का पाठक वर्ग ही माना जाएगा, जिसने सर आँखों पर बैठाने […]