अबकि बार दिव्यांग को मौका दो यार

बोलने सुनने वालों को देखा अब की बार करने वालों को मौका *–डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’* जी हाँ, सात दशकों से लोकतंत्र निर्माण की प्रक्रिया में भारत की जनता ने हर उस व्यक्ति पर भरोसा किया जिसने सपने दिखाये, जिसने नई राह बताई, नए लोग जोड़े, पर उनमें से सभी यानि शत प्रतिशत तो कामयाब […]


सुनो…मेरे यार

सुनो, ये सब इतना आसान नहीं था, न ही इतना सहज था, न हो सकता था प्रेम, न ही हो सकता था द्वेष, सबकुछ अचानक से नहीं हुआ, जितने सरल रुप में दुनिया ने देखा, गुजरे जमाने की यादों के सहारे मैने जिया है तुम्हें, तुम्हारे रंग को.. मैने पाया नहीं तुम्हें अचानक से, मैने […]


ऐ जाने वाले, लौट के आ जाओं…

आदरणीय सुरेश सेठ साहब की अन्तिम विदाई पर समर्पित चंद पंक्तियाँ…   *ऐ जाने वाले, लौट के आ जाओं…* जब भी बदलती है बयार सभी, शहर की कोई परवाह नहीं करता, पर वो अकेला ही खड़ा रहा, इंदौर की आत्मा का कवच बनकर… एक शख्स जो रहा हमेशा शेर-सा शान-ए-इंदौर राजवाड़े को बचाकर गजासीन हो […]


मैं जरुरत बनूंगा

हाँ ! प्यार की ठण्ड से *ठिठुरते* जज्बातों पर मैं तुम्हारी तपन बनूंगा, हाँ ! उम्मीद के स्याह आसमान में दीपक-सी मैं तुम्हारे लिए रोशनी बनूंगा, हाँ! थामकर हाथ मेरा चलने की आदत है तुम्हें मैं तुम्हारी लाठी बनूंगा, हाँ ! तुम्हें जरुरत दवा की नहीं मेरे साथ की है, मैं तुम्हारी जरुरत बनूंगा हाँ! […]


भारतीय

तारीखों के पटलने से साल बदल जाता है, मौसम के पटलने से नव सृजन मना कर देखो, हाँ ! तुम जो आज नया साल मना रहे हो, गुलामी की जंजीरों से परे निकल कर देखो, हाँ ! वही बेड़ियाँ जिसमें शताब्दियों की चारणता है, कभी स्वाधीनता के समर का विज्ञान बनकर देखो, हाँ ! वही […]


धुंध

सुनो! ये मौसम है ठण्ड और *धुंध* का, पर तुम ज्यादा संभलना इससे, क्योंकि इस मौसम में नमी और साथ-साथ आलस होता है, और यह मौसम सपनों पर भी धुंध की परते चढ़ा देता है । और अभी सपनों को धुंध से बचाना होगा, वरना हम बिखर से जाएंगे, हाँ ! इसके लिए तुम मेहनत […]


|| वसुंधरा ||

सौम्य सुधा सब पक्ष हमारा, जीवन का अगणित श्रृंगार | सबकुछ सहकर कुछ ना बोले, वहीं माँ है हमारी तारणहार || तंतु की विवेचना भी सहती, न निकले कभी अश्रु की धार | अहम के टकराव में रहती, धरती माँ है हमारी पालनहार || निश्चल मन, निर्मल स्वअंग है, सबसे ही करती वो भी प्यार | कभी न करती फेर किसी में वहीं धरा है हमारी चिंतनहार || न जाति न रंग भेद है उसमें सबका उस पर है अधिकार | मौन स्वीकृति सबको देती ‘अवि’ वसुंधरा है पुरणहार || अर्पण जैन ‘अविचल‘ इंदौर (म.प्र.)