जननायक या चुनावी नायक बन गए टंट्या मामा
जननायक या चुनावी नायक बन गए टंट्या मामा
कहानी: अनथक हिन्दी योद्धा डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ से खास भेंट हिन्दी के सम्मान में, हर भारतीय मैदान में जैसी अलख जगाने वाले का नाम डॉ जैन कहानी एक ऐसे व्यक्ति की जो हिन्दी भाषा को भारत में ही सम्मान स्वरुप राष्ट्रभाषा बनाने के लिए संघर्षरत है, जो संगणक विज्ञान अभियंता होने के बावजूद स्थापित […]
नाम: डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ पिता: श्री सुरेश जैन माता: श्रीमती शोभा जैन पत्नी: श्रीमती शिखा जैन जन्म: २९ अप्रैल १९८९ शिक्षा: बीई (संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी) एमबीए (इंटरनेशनल बिजनेस) पीएचडी- भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ पुस्तकें: १. मेरे आंचलिक पत्रकार ( आंचलिक पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक ) २. काव्यपथ ( काव्य संग्रह) ३. राष्ट्रभाषा (तर्क और विवेचना) ४. नव त्रिभाषा सूत्र (भारत […]
*चुनौती* सुन निगोड़ी… रोज सुबह उठ कर कहा चली जाती है, रोज के काम करना ही नहीं चाहती, घर के बर्तन, कपड़े, खाना बनाना ये सब कौन करेगा…? तेरी माँ??? नौकरी से ज्यादा जरुरी घर का काम भी है… रमा की सास ने रमा को डाँटते हुए कहा.. इसी बीच रमा का पति आकर कहने […]
यादों में हमेशा रहेंगे सेठ साहब हाँ! याद है पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए पोस्टकार्ड अभियान हेतु सेठ साहब से मिलना, पूर्ण समर्थन करने से शुरु हुआ मिलना, जानना उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को…। शहर की जनता को राजवाड़ा वापस दिलवाने के संघर्ष से लेकर कई बड़े मुद्दे जिनमें स्ट्रीट लाईट की सौगात और यहाँ […]
झुलस रहा गणतंत्र, यह राष्ट्र धर्म नहीं ===================================================== डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ जहाँ हुए बलिदान प्रताप और जहाँ पृथ्वीराज का गौरव हो, जहाँ मेवाड़ धरा शोभित और जहाँ गण का तंत्र खड़ा हो, ऐसा देश अकेला भारत है, परन्तु वर्तमान में जो हालात विश्वपटल पर पहुँचाए जा रहे है वो भारत का असली चेहरा नहीं | […]
हाँ ! प्यार की ठण्ड से *ठिठुरते* जज्बातों पर मैं तुम्हारी तपन बनूंगा, हाँ ! उम्मीद के स्याह आसमान में दीपक-सी मैं तुम्हारे लिए रोशनी बनूंगा, हाँ! थामकर हाथ मेरा चलने की आदत है तुम्हें मैं तुम्हारी लाठी बनूंगा, हाँ ! तुम्हें जरुरत दवा की नहीं मेरे साथ की है, मैं तुम्हारी जरुरत बनूंगा हाँ! […]
तारीखों के पटलने से साल बदल जाता है, मौसम के पटलने से नव सृजन मना कर देखो, हाँ ! तुम जो आज नया साल मना रहे हो, गुलामी की जंजीरों से परे निकल कर देखो, हाँ ! वही बेड़ियाँ जिसमें शताब्दियों की चारणता है, कभी स्वाधीनता के समर का विज्ञान बनकर देखो, हाँ ! वही […]
*2.लघुकथा-मंच की कवयित्री* संस्कृति मंचों की एक उम्दा कवियत्री है । सप्ताह में 4 से अधिक कवि सम्मेलनों में रचना पाठ करना ही संस्कृति की पहचान थी । पुरुषप्रधान समाज होने के कारण कई बार संस्कृति का सामना फूहड़ कवियों और श्रोताओं से भी होता था । इसी बीच एक गाँव में हुए कवि सम्मेलन […]