बुलेट युग में मेट्रो की समस्या से जूझता ‘इन्दौर’

भारतीय राजनीति में अपने स्वर्णिम इतिहास का बखान करता हुआ शहर, जिसने सत्ता को सदैव अपना सहयोग दिया, जनप्रतिनिधियों के नेतृत्व से प्रदेश को गौरवान्वित किया, सत्ता को इतना बल दिया कि शायद ही कोई शहर दे पाए। वर्तमान में सत्ताधारी राजनैतिक दल को पूरे नौ विधायक, महापौर, सांसद, पार्षद सब चुनकर दिए पर वर्तमान के तमाम जनप्रतिनिधियों से शहर इन्दौर का विकास और समस्याएँ हल होने का नाम नहीं ले रहीं।
एक तरफ़ देश के विकास दर के आँकड़े क़दम-दर-क़दम बढ़ते जा रहे हैं, विकास की अट्टालिकाएँ खड़ी हो रही हैं, वहीं इन्दौर का ग्राफ़ गिरता नज़र आने लगा। मेट्रो का स्वप्न उस युग में भी कमज़ोर दिखाई दे रहा है, जब दुनिया बुलेट ट्रेन की तरफ़ बढ़ चुकी है। अतिक्रमण, पार्किंग विहीन मेट्रो स्टेशन, शहर की यातायात समस्या, धूल-धुएँ की जद में आता इन्दौर, और फिर अंडरग्राउंड मेट्रो लाइन का संकट शहर के सामने मुँह बाहें खड़ा है।
जनप्रतिनिधि शहर में बढ़ रहे अपराध के लिए चिंतित नज़र नहीं आ रहे, फिर विकास का स्वप्न देखना शहर के लिए तो दूभर ही है।
हालात इतने बदतर होते जा रहे हैं कि अभी शहर का बाशिंदा शहर में नौकरी करना नहीं चाहता, या यूँ कहें कि शहर में नौकरियों का संकट सामने खड़ा हुआ है। ऐसे में युवा शहर छोड़कर अन्य शहरों की ओर पलायन कर रहा है।
मेट्रो तो चलने लगी पर किस मार्ग से, यह सबके सामने है। इसलिए अब जनता की पीड़ा को समझने के लिए जनप्रतिनिधियों को सामूहिक रूप से शहर की चिन्ता करनी चाहिए, क्योंकि इन्दौर ने सदैव सत्ता को सबलता प्रदान की है।
आज कमज़ोर विपक्ष और मनमानी सत्ता से शहर का भाग्य धूल धूसरित हो रहा है। चिंता इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि इन्दौर ने मध्य प्रदेश का आर्थिक भाग्य लिखा है, इन्दौर की विकास दर पर चिंता करके इस समास्याओं से इन्दौर को मुक्त कीजिए, अन्यथा जनता की नाराज़गी फिर मतदान में दिखने लगेगी।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
इन्दौर