विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी
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एक आम भारतीय के दृष्टिकोण से यह कहना बहुत उचित है कि भारत की सरकार ने समझौता किया और अमेरिका के दबाव में कदम पीछे लिए किन्तु जब इसे अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य, युद्धनीति और वैश्विक विवशताओं के साथ जोड़कर देखेंगे तो निःसंदेह इसका दूसरा पक्ष भी है, जो जल्द ही सामने आएगा।
मत देखिए कि पाकिस्तान को मदद करने वाले देश कौन हैं पर यह अवश्य देखें कि behind the curtain क्या हो रहा होगा!
एक संवेदनशील प्रधानमंत्री और उनसे भी कहीं अधिक धैर्य रखने वाली भारतीय सेना… विश्वास कीजिए, अवश्य कुछ अलग और बेहतर होगा।
इस समय भारत विकासशील देशों की श्रेणी में आता है, एक उदाहरण है ना कि जब हम सड़क पर चलते हैं तो साइकिल सवार यदि ग़लती से भी कार से टकरा जाए, तब भी ग़लती कार चालक की मानी जाती है। उसी तरह पाकिस्तान साइकिल सवार देश है और भारत कार चालक।
चीन यही चाहता है कि भारत को युद्ध में उलझा कर कुछ नुक़सान करे। पर यह भी तय है कि देश का गंभीर नेतृत्व कुछ तो सोच ही रहा होगा, जबकि वह जानता है कि आगामी चुनाव में इस तरह रणछोड़ बनना उसके राजनैतिक दल के लिए घातक हो सकता है, फिर भी यह निर्णय लिया है तो कुछ तैयारी के साथ ही यह कदम उठाया होगा।
शेष सब शुभ हो, यही कामना है।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर