कविताः गुरुत्वाकर्षण

जैसे लौटती है बूंद,
वैसे ही लौटती है ज़िन्दगी।

जैसे लौटता है समय,
वैसे ही लौटती हैं स्मृतियाँ।

जैसे लौटती है चिड़िया,
वैसे ही लौटता है कलरव।

जैसे लौटती है कविता,
वैसे ही लौटती है किताबें।

जैसे लौटती हैं पुरानी कतरने,
वैसे ही लौटती हैं पुरानी चिट्ठियाँ।

जैसे लौटते हैं मनुष्य,
वैसे ही लौटती है मनुष्यता।

यही गुरुत्वाकर्षण का
अबोध सिद्धांत है।

हर चीज़ लौटती है,
अपने समयानुशासन में…..

है न….?

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

Photo Clicked by Dr. Arpan Jain ‘Avichal’