लघुकथा- प्रतिक्रिया

*लघुकथा- प्रतिक्रिया* सारांश अपनी व्यस्त जीवन शैली में संचयनी के साथ बहुत खुश था, पर संचयनी अपनी सहेलियों और सहकर्मीयों के बीच बहुत सीधी और भोली थी | संचयनी के सहकर्मी उसके भोलेपन का हमेशा नाजायज फायदा उठा कर संचयनी को ही तंज कसते रहते थे, जिसके कारण वह पिछले कुछ दिनों से थोड़ी उखड़ी-उखड़ी […]


हिन्दी ही भारत की आत्मा

हिन्दी साहित्य के कुछ नौनिहालों ने आजकल भाषा को अंगवस्त्र बना डाला है, मानो शब्दों को व्याकरण का मैल समझ कर उसे पौंछ कर फैंकने भर को ही साहित्य सृजन मानने लगे हैं | इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार भी हमेशा की तरह आज का पाठक वर्ग ही माना जाएगा, जिसने सर आँखों पर बैठाने […]