न्यूज़ वेबसाइट के सामने मंडराता वैधानिकता का संकट

चौथा खम्बा

देश और दुनिया डिजिटल होती जा रही है, कम्प्यूटर युग चल रहा है और इसी दौर में भारत में डिजिटल क्रांति की हुँकार भरने वाली सरकारें भी मीडिया के डिजिटलीकरण पर अपनी उदासी ज़ाहिर कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना आईटी प्रेम तो जताते हैं, पर उदासीनता मीडिया के क्षेत्र में अव्वल है। 1 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया परियोजना की शुरुआत की थी।
अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र ने 30 जून 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की अगुआई में इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को क़ानूनी मान्यता दे कर उस राष्ट्र के सम्पूर्ण डिजिटल होने का प्रमाण दे दिया था, उसी तरह हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश में डिजिटल भारत के सपने को साकार करने में जुटे हैं। इसलिए भारत में मीडिया संस्थानों ने भी स्वयं को डिजिटल युग के साथ-साथ गठजोड़ बनाने के उद्देश्य से तैयार करना शुरू कर दिया।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने के उद्देश्य से दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा। किन्तु उन वेबसाइटों का पंजीयन, क़ानूनन मान्यता अब भी अधर में लटकी हुई है।
जिस प्रकार भारत में समाचार पत्र प्रकाशित करने के लिए तमाम तरह की मान्यताएँ लेनी होती हैं, जिनमे भारत सरकार के अधीनस्थ ‘भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक कार्यालय’ की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसके पंजीयन होने के बाद ही उसे टाइटल और आरएनआई नंबर मिलता है और फिर समाचार पत्र का प्रकाशन होता है, उसी तरह डिजिटल पोर्टल के पंजीयन की दिशा में सरकार का कोई ख़ास ध्यान नहीं है। मान्यता या वैधानिकता के अभाव में पोर्टल को आज भी कोई विशेष तवज्जों नहीं मिल रही।

सरकारों ने न्यूज़ वेबसाइटों के लिए विज्ञापन नीति तो बनाई है किन्तु विज्ञापन नीति के अतिरिक्त भी महत्त्वपूर्ण विषय न्यूज़ पोर्टल या कहें न्यूज़ वेबसाइटों की क़ानूनन मान्यता की है। राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना, जो भारत में संचालित वेब न्यूज़ पोर्टल की रीति-नीति बना पाए, केवल पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को क़ानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा। यदि इसी तरह चलता रहा तो वैधानिकता के अभाव में न्यूज़ पोर्टल संचालित तो होंगे पर बेलगाम ही रहेंगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
इंदौर, मध्यप्रदेश