चौथा खम्बा
लोकतंत्र की मर्यादाओं को संवैधानिक दृष्टि से सदैव सर्वोपरि रखा जाता है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता को माना गया है, और यही चौथा स्तंभ महत्त्वपूर्ण भी है। इस समय इसी चौथे स्तंभ का वर्तमान बेहद संवेनशील हो रहा है। हर छोटी-सी छोटी बात पर या बड़ी घटना पर भी दोष कहीं न कहीं मीडिया का नज़र आने लगा है। देश में मीडिया के ही कुछ चेहरों के कारण मीडिया की ताक़त ही कमज़ोर हो रही है। आख़िरकार इस तरह की घटनाओं से मीडिया के अस्तित्व पर चुनौती बन रही है।
जैसे-जैसे पत्रकारिता के स्वरूप में परिवर्तन होने लगा, नए मीडिया के उदय के बाद पत्रकारिता के मूल तत्व में उद्दंडता का भी मिश्रण होने लगा है। उद्दण्ता से तात्पर्य मूल्यहीनता से भी है। पत्रकारिता में कुछ ऐसे तत्व भी आ गए, जो ये नहीं जानते कि भारतीय पत्रकारिता का इतिहास क्या है? हिंदी पत्रकारिता को किन लोगों ने पोषित किया है? किन आदर्शों और वैचारिक मूल्यों से भारत में पत्रकारिता पल्लवित और पुष्पित हुई है? इन सब ज्ञान के अभाव में विधा में शामिल रंगे सियार उसी डाल को काटने पर आमादा हो जाते हैं, जिस पर वे बैठे हैं।
मेरा इशारा उन तत्वों की ओर है, जो गाहे-बगाहे पत्रकारिता में पीत पत्रकारिता, फेक न्यूज़, दलाली, दुकानदारी और अन्य तरह के षड्यंत्र घोल रहे हैं। बेशक नए रूप में आने वाली हवा भी अपना प्रभाव साथ लाती है, उसी तरह पत्रकारिता में जिस तरह से डिजिटल मीडिया, नए अख़बारों, चैनलों का आना आरम्भ हुआ है, उसी दौरान नए पत्रकार भी बने, जिनमें से अधिकांश बिना डिग्रीधारी पत्रकार बने, जिन्हें पत्रकारिता का भूत, वर्तमान और भविष्य नहीं मालूम और बस निकल गए ख़बर की खोज में, ऐसे लोगों के कारण ही पत्रकारिता में फेक न्यूज़ जैसे तत्व को शामिल कर लिया है। कुछ पुराने चावल भी पत्रकारिता को अपने स्वार्थ के चलते गन्दा करने से बाज़ नहीं आ रहे।
वर्तमान सुधारने के लिए नींव को पुनः मज़बूत करना होगा, नींव की सुदृढ़ता न होने से इमारत लगातार खण्डित हो रही है।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा, इन्दौर
