राजनीति के अजातशत्रु का यूँ चला जाना…..खल गया साहब

राजनीति के अजातशत्रु का यूँ चला जाना…..खल गया साहब

*डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*

 

विधि के विधान के आगे विधिविद की भी नहीं चली, कर्क रोग ने जब से जकड़ा वित्त और न्याय मंत्री का दायित्व भी कमजोर होता चला गया, लंबे समय से जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते-करते आखिरकार अरुण जेटली जी ने अलविदा कह दिया।
वकील पिता महाराज किशन जेटली जी व माता रतन प्रभा जेटली जी की संतान के रूप में अरुण जेटली जी का जन्म हुआ। उन्होंने अपनी विद्यालयी शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल, नई दिल्ली से 1957-69 में पूर्ण की। उन्होंने अपनी 1973 में श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स, नई दिल्ली से कॉमर्स में स्नातक की। फिर 1977 में दिल्ली विश्‍वविद्यालय के विधि संकाय से विधि की डिग्री प्राप्त की। छात्र के रूप में अपने कैरियर के दौरान, उन्होंने अकादमिक और पाठ्यक्रम के अतिरिक्त गतिविधियों दोनों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के विभिन्न सम्मानों को प्राप्त किया हैं। वो 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन के अध्यक्ष भी रहे।
अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को संगीता जेटली से विवाह किया। उनके दो बच्चे, पुत्र रोहन और पुत्री सोनाली हैं। आपके बच्चें भी अधिवक्ता के रूप में ही कार्य कर रहें हैं।
जेटली जी का राजनैतिक सफर तब चरम पर आने लगा जब साल 1991 से भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनें। वह 1999 के आम चुनाव से पहले की अवधि के दौरान भाजपा के प्रवक्ता बन गए।
1999 में, भाजपा की वाजपेयी सरकार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सत्ता में आने के बाद, उन्हें 13 अक्टूबर 1999 को सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। उन्हें विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी नियुक्त किया गया। विश्व व्यापार संगठन के शासन के तहत विनिवेश की नीति को प्रभावी करने के लिए पहली बार एक नया मंत्रालय बनाया गया। उन्होंने 23 जुलाई 2000 को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला।
मई 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार के साथ, जेटली एक महासचिव के रूप में भाजपा की सेवा करने के लिए वापस आ गए, और अपने कानूनी कैरियर में वापस आ गए।
मोदी युगीन सरकार में 26 मई 2014 को, जेटली को नवनिर्वाचित प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा वित्त मंत्री के रूप में चुना गया (जिसमें उनके मंत्रिमंडल में कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय और रक्षा मंत्री शामिल हैं।)
भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, सरकार ने 9 नवंबर, 2016 से भ्रष्टाचार, काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के इरादे से महात्मा गांधी श्रृंखला के 500 और 1000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया।
इसके बाद अगले आर्थिक सुधार के रूप में 20 जून, 2017 को उन्होंने पुष्टि की कि जीएसटी रोलआउट अच्छी तरह से और सही मायने में ट्रैक पर है।
यानी नोटबन्दी और जीएसटी पर जेटली जी का पहनाया चोला ही देश में चला।

विपक्षियों के भी चहेते रहें जेटली राजनीति के अजातशत्रु रहें है। आज जब दिन के 12 बजकर 7 मिनट पर उन्हें दिल्ली के एम्स अस्पताल में अंतिम सांस लेकर जेटली युग को अलविदा कह दिया तब देश ने सही मायनों में एक कुशल रणनीतिकार और गंभीर नेतृत्व खो दिया। यह नुकसान न केवल भाजपा का रहा बल्कि राष्ट्र ने भी अच्छा विधिविद खोया है।
भावपूर्ण श्रद्धांजलि सहित…

*डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*
www.arpanjain.com

सवाल तो विधान का था…

सवाल तो विधान का था…
●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●

■ डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’

हस्तिनापुर के अनुबंध और करार में बंधें गुरू द्रोणाचार्य ने जब वनवासी बालक और क्षेत्रीय काबिले के सरदार के पुत्र को धनुर्विद्या सीखाने से इंकार कर दिया तो वही वनवासी बलवान एकलव्य गुरु द्रोण की मूर्ति से धनुर्विद्या सीखने लगा और पारंगत होने पर उसी के जंगल में एक कुकुर का भोंकना भी वह न सह सका और शरों से उस कुकुर के मुँह को बंद कर दिया।
तभी गुरु द्रोणाचार्य और पाण्डव उसकी प्रशस्त धनुर्विद्या को खोजते-खोजते एकलव्य से जा मिले, गुरु ने संवाद के बाद जानने पर गुरुदक्षिणा में अंगूठा मांग लिया।
सवाल तो तब भी उठे, और तब भी जब गुरु द्रोण ने धनुर्विद्या सिखाने से इंकार किया ।
जबकि सच तो यह है कि अनुबंध और विधान नाम की कोई चीज होती है, इसको लेकर बुद्धिमान प्रश्न नहीं करते और उनके अतिरिक्त अन्य को आप समझा भी दोगे तो समझ नहीं आएगी, क्योंकि नीति विरुद्ध तो आप भी हो ही।
क्या एकलव्य का दोष नहीं था कि बिना गुरु द्रोण की आज्ञा के क्यों उसने उनकी मूर्ति बनाई?
सवाल तो यह भी उठा कि एकलव्य निरीह वनवासी था, तो महाशय कोई निरीह सीधा-साधा व्यक्ति धनुर्विद्या ही क्यों सीखेगा?
धनुर्विद्या वही सीखते है जिन्हें योद्धा बनना होता है, और कबिले के सरदार का बेटा यानी उस कबिले का अगला सरदार निरीह या मूर्ख नहीं हो सकता।
खैर प्रश्न यही था न कि ‘गुरु द्रोण ने एकलव्य को क्यों धनुर्विद्या नहीं सिखाई?’ और उसके उपरांत भी ‘अँगूठा क्यों दक्षिणा में मांग लिया?’
दोनों ही प्रश्नों का जवाब केवल एक ही था, वो है ‘अनुबंध या संविधान’ ।
हस्तिनापुर को दिए वचनों में धनुर्विद्या सिखाने का अनुबंध केवल हस्तिनापुर के राजपुत्रों से था, अतिरिक्त किसी को वो सिखा नहीं सकते थे और यही जब एकलव्य ने किया तो दुनिया वाले उनके बाद ये नहीं कहें कि गुरु द्रोणाचार्य वचन के पक्के या विधान के पक्के नहीं थे इसलिए अँगूठा दक्षिणा में मांगा।
इसके अतिरिक्त एक और बात कि गुरु द्रोण भी जानते थे कि कौन किस विद्या को प्राप्त करने का अधिकारी है , एक निरीह श्वान पर अपनी विद्या का प्रयोग करने वाला धैर्यवान योद्धा हो ही नहीं सकता।

अब बात विधान, संविधान और अनुबंध की करते है-
प्रत्येक जीवन में, संस्था में, ग्राम, नगर,प्रान्त और राष्ट्र में संचालन विधान और संविधान अनुरूप होता है।
संचालन की सुस्पष्टता उसमें निहित संवैधानिक शक्तियों के कारण होती है। नियमों से बंधा जीवन अलंकार होता है।
कोई व्यक्ति हठ कर सकता है, किन्तु संस्था, राज्य, राष्ट्र हठी नहीं हो सकतें ,यदि ऐसा होता है तो उस संस्था, राज्य और राष्ट्र की अवनति तय है।
उसके संचालन हेतु बनाए गए नियमों को मानना ही होता है, उदाहरण के लिए कोई अति बुद्धिमान व्यक्ति यह कहता है कि केवल उसके लिए नियम बदल दो तो यह न संस्थान, राज्य या राष्ट्र के लिए संभव है, क्योंकि ये संवैधानिक व्यवस्था से चलने वाला तंत्र है।
संस्थान या राष्ट्र किसी का घर नहीं जो आपके व्यक्तिगत के लिए नियमों को ताक में रख दें।
उसके उपरांत भी व्यक्तिगत मदद की जा सकती है, किन्तु संस्थागत नियमों का उलंघन करके एक परिपाठी न बनाने की इच्छा भी संवैधानिक कमेटी की होती है।
नियमों को तोड़ने की प्रगाढ़ता चाहने वाले शाख से टूट जाया करते है और उसके बाद खुद के वजूद तलाशते रहते है।
वैसे जो संस्थान या राष्ट्र में दोगला चरित्र निभाते है, इधर-उधर की करने में जीते है, केवल अपना सम्मान, मंच औऱ पैगाम चाहते है वो भी तो कहाँ टिक पाते है। उनके हाथ क्या आता है वो भी जग जाहिर है। वो दो ही कोढ़ी के होते है, इसमें कोई शक भी नहीं है। यदि नियमों से बंधे रहें तो लहरों से भी मोहब्बत मिलती है, वरना ज्वार बनकर लहरें ही डूबा देती है। इसलिए संविधान और विधान का मान आवश्यक है।

*– डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*

अहद प्रकाश जी को जन्मदिन की बधाई

शुभ जन्मदिवस अहद प्रकाश जी

अक्षरों को टटोलते-टटोलते जो शब्द ढूंढ लेते है और शब्दों से गढ़ते है ग़ज़ल ,कविता या गीत, और कभी तो पुस्तकों से मकरंद ढूंढ कर लिख देते है समीक्षाएँ,सच ही है कि जो शब्दों से, भावनाओं से और पुस्तकों से इश्क करते हो उनका नाम *अहद प्रकाश जी* है।

बड़े ताल की हवाओं से ख़ुशनुमा, भोज की नगरी में साहित्य की समर्पित प्राकार अट्टालिका, जिनके जीवन में जयघोष केवल साहित्यिक है, वित्तीय संस्थान में सेवाएँ देने के बाद भी साहित्य से कही दूर नहीं हुए, हिन्दी-उर्दू का अद्भुत समन्वय, जो कभी प्रेमी की बात करते है तो कभी विरह को ढाल देते है, कभी बाल मन के गीत गढ़ जाते है तो कभी पुस्तकों की कहानी अपनी जुबान में कह जाते है।
कभी भारत के किसानों के दर्द को लिखते है जैसे-
*सम्मानित वे लोग हो, जिनके काँधें पर हल हो,*
*सीने तो फौलादी हो, दिल जिनके निर्मल हो*
– अहद प्रकाश जी

कभी एक विरहणी के दर्द को ग़ज़ल में उतार देते है।

ऐसे पितृ सत्ता के अधिकारी, पिता तुल्य, संस्मय पत्रिका के संपादक, हिन्दीग्राम के संरक्षक, आदरणीय अहद प्रकाश जी को जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामना सहित प्रणाम।
यूँ ही हम पर आपका स्नेह बना रहें, आप स्वस्थ्य एवं दीर्घायु हो यही परमात्मा से कामना है।

*—डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’*

 

हिन्दी योद्धा

हिन्दी योद्धा

रत्नगर्भा भारत की धरा पर सदा से ही माँ, मातृभाषा और मातृभूमि के प्रति व्यक्ति के कर्तव्यबोध का व्याकरण बना हुआ है। हमारे यहाँ का ताना-बाना ही संस्कार और संस्कृति के प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वाहन का बना है। हमारे यहाँ धर्मग्रन्थ भी ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ के सिद्धांत का प्रवर्तन करते है। आधुनिक काल में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने कहा है कि –

‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।

सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।।’

किन्तु वर्तमान में हमारी मातृभाषा जो हिंदुस्तान की राष्ट्रभाषा होना चाहिए वो हिन्दीभाषा दूषित राजनीती की शिकार होती जा रही है। सन १९६७ में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने से रोक कर राजभाषा बना दिया। साथ ही एक विदेशी भाषा अंग्रेजी की दास्ताँ को स्वीकार करते हुए उसे भी राजभाषा बना दिया गया।

फिर मत और आधिपत्य के साथ तुष्टिकरण की राजनीती ने अनुसूचियों के माध्यम से छल करके लगातार हिन्दी को अलग-थलग करके उसको तोड़ा भी जा रहा है और फिर हिन्दी के सम्पूर्ण स्वाभिमान पर कुठाराघात किया जा रहा है। हिन्दी भाषा पर आए इस संकट की घडी में  भारतीयता के नाते भारत के स्वाभिमानी स्वयंसेवक योद्धाओं की आवश्यकता है। भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को पुनर्स्थापित करने के लिए मातृभाषा उन्नयन संस्थान निरन्तर प्रयासरत है। डॉ अर्पण जैन ‘अविचल’ और डॉ प्रीति सुराना के साथ आज संस्थान के प्रत्येक सारथी भारतेन्दु हरीशचंद और महात्मा गाँधी के सपनों को पूर्ण करने के लिए इस भारत की पावन भूमि पर कार्य करती है। हिन्दी के स्वाभिमान की स्थापना के आन्दोलन से देश के अंतिम व्यक्ति तक ले जाने और उन्हें जोड़ कर हिन्दी के प्रति निष्ठावान बनाने के संकल्प को पूर्ण करने के लिए जो भी भाई-बहन इस सेवा के लिए रोज 1 से 2 घंटा समय दे सकते हैं तथा इस कार्य को नौकरी या व्यवसाय के रूप में नही, बल्कि राष्ट्र सेवा, मातृभाषा सेवा, मातृभूमि सेवा समझकर सेवा भाव से करना चाहते हैं। हम ऐसे कर्मठ, पुरुषार्थी व संस्कारी, भाई-बहनों को ‘हिन्दी योद्धा’ बनने के लिए आमंत्रित करते है।

हिन्दी योद्धा का कर्तव्य:

  • आज हिन्दी को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने के लिए हमें जुटकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करना होगा,
  • हस्ताक्षर बदलो अभियान को अपने क्षेत्र में संचालित एवं प्रचारित करना होगा,
  • हिन्दी लेखन करने वाले साथियों को आय दिलवाने में मदद करनी होगी,
  • हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए उसे बाजार मूलक भाषा बनानी होगी,
  • हिन्दी साहित्य को आमजन तक पहुँचाना होगा,
  • हिन्दी के प्रचार हेतु अपने क्षेत्र में हिन्दी प्रेमियों का समुच्चय बनाकर प्रतियोगीताएं, कार्यक्रम आदि का संचालन करना होगा।

हिन्दी योद्धा द्वारा किए जाने वाले आवश्यक कार्य:

  • हस्ताक्षर बदलो अभियान संचालित करना।
  • ‘शिक्षालय की ओर चले हिन्दीग्राम’ संचालित करना।
  • हिन्दी प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना।
  • आदर्श हिन्दीग्राम बनाना और गतिविधियां संचालित करना।
  • संगणक योद्धा , संवाद सेतु, हिन्दी समर्थक जनमानस को जोड़ना।
  • जनसमर्थन अभियान को संचालित कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु समर्थन प्राप्त करना।
  • हिन्दी व्याख्यानमाला, काव्य गोष्ठी, निबंध प्रतियोगिताएं, चित्रकला प्रतियोगिता, पुस्तक समीक्षा आदि आयोजित करना।
  • हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना।
  • प्रत्येक हिन्दी योद्धा द्वारा संचालित समस्त कार्यों का विवरण अनिवार्यतः संस्थान की केंद्रीय मुख्यालय द्वारा प्रदत्त निश्चित प्रारूप में करना अनिवार्य है।

अन्य संगठनात्मक कार्य –

  • ग्राम-प्रखण्ड-तहसील-वार्ड समिति का निर्माण करना
  • आदर्श हिन्दी ग्राम निर्माण में सहयोग करना।
  • भाषाई स्वच्छता अभियान का विद्यालओं में सचालन करना।
  • समाचार संस्थाओं में समाचार के माध्यम से अभियान का प्रचार-प्रसार करना
  • समय-समय पर मुख्यालय द्वारा निर्देशित सेवाओं को पूर्ण प्रामाणिकता से निभाना।

नियमित स्वाध्याय करना 

स्वाध्यायाद्योगमासीत् योगात् स्वाध्यायमामनेत्।

योगस्वाध्याय सम्पत्या परमात्मा प्रकाशते।।

प्रत्येक हिन्दी योद्धा को दिन में एक बार कम से कम 1 घंटा नियमित स्वाध्याय करें। इससे आपके ज्ञान एवं प्रशिक्षण में नवीनता व दिव्यता निरन्तर बढ़ती रहेगी। प्रशिक्षण एवं स्वाध्याय हेतु हिन्दी के महनीय साहित्यकारों की पुस्तके, राजभाषा अधिनियम, अनुसूची, के साथ-साथ संस्थान द्वारा प्रदत्त साहित्य  अनिवार्य रूप से पढ़े। इन पुस्तकों के निरन्तर स्वाध्याय से आपके ज्ञान में अत्यन्त वृद्धि और आचरण में शुचिता पवित्रता व सात्विकता बनी रहगी।

हिन्दीग्राम सदस्यता अभियान

हिंदी प्रचार हेतु संस्थान एक साप्ताहिक अख़बार ‘हिन्दी ग्राम’ निकाल रहा है। इस अख़बार का मूल उद्देश्य ही सम्पूर्ण राष्ट्र में हिंदी प्रचार करने के साथ-साथ साहित्य और हिन्दी से जुड़ी गतिविधियों, आयोजनों आदि की सूचना प्रेषित करना, हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आवश्यकत तत्वों को अख़बार में शामिल करके उसे प्रचारित करना है। संस्थान द्वारा संचालित एक साप्ताहिक अख़बार हिन्दी ग्राम की सदस्यता हेतु जागरूकता भी हिंदी योद्धा कर सकते है।

हिंदी योद्धा गाँव, नगर व प्रान्त में ‘हिन्दी ग्राम’ के सदस्य भी बना सकते है जिससे हम हिन्दी भाषा से जुड़े समाचार और साहित्यिक सामग्री को जन-जन तक पहुंचा सकें। साथ ही हिन्दी योद्धा बतौर हिन्दी पत्रकार भी अखबार के लिए कार्य कर सकते है।

हिन्दी योद्धा का व्यक्तित्व

व्यक्तित्व शब्द अपने आप में बहुत व्यापक अर्थ रखता है जो व्यक्ति के एक-एक कार्य-कलाप व आदत से निर्मित होता है। सामाजिक कार्यकर्त्ता का व्यक्तित्व प्रभावशाली दिव्य और हिन्दी भाषा की समझ रखने वाला और मन-वचन और कर्म से हिन्दी भाषा का समर्थक होना अति आवश्यक  है ताकि उसके व्यक्तित्व से समाज के लोग प्रेरणा लें और सदगुणों को धारण करके उसके जैसा बनने का प्रयास करें। अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए हिन्दी योद्धा निम्न गुणों को धारण करने के लिए दृढ संकल्पित हो-

1-प्रभावशाली सम्बोधन- हिन्दी योद्धा की भाषा-शैली अत्याधिक मृदु होनी चाहिए। यदि आप प्रभावशाली संबोधन करेंगे तो लोगों में आपकी बात को सुनने में रूचि उत्पन्न होगी। किसी भी कार्यकर्त्ता या अन्य व्यक्ति को आदरणीय, श्रद्धामयी माताओं, पिता तुल्य बुजुर्गो, संतों आदि के लिए पूज्य, श्रद्धेय, आदरणीय भाईयो-बहनो आदि प्रयोग करना चाहिए।

2-विषय की सम्पूर्ण व प्रामाणिक जानकारी होना- क्योंकि हिन्दी योद्धा का मुख्य कार्य लोगों को हिन्दी भाषा से जोड़ना और उसके प्रति प्रेम उत्पन्न करके उसे राष्ट्रभाषा बनाने हेतु आंदोलित करना। अतः हिन्दी योद्धा को भाषा अधिनियम, हिन्दी आंदोलनों की जानकारी, साहित्यकारों से परिचय, महनीय हिन्दी सेवकों के बारे में अध्ययन, भाषा की मानकता और वर्तनी दोषों से मुक्ति के साथ ग्रन्थों का सामान्य परन्तु प्रामाणिक ज्ञान होना आवश्यक है। जिससे कि अपना आत्मविश्वास भी बना रहे और लोगों को हिन्दी भाषा का सही महत्व भी समझ में आ सके।

3-वक्ता व श्रोता का आत्मीय भाव सम्पर्क- किसी भी विषय को भावपूर्वक तरीके से रखें। लोगों के जीवन से विषय को सीधा जोड़कर उनके ह्रदय, मस्तिष्क व भावों से एकाकार होकर अपनी बात कहे। इससे श्रोता आत्मीयता का अनुभव करते हैं और आपके आत्मविश्वास में भी अभिवृद्धि होगी।

4-नेतृत्व– सामाजिक कार्यकर्ता में नेतृत्व का गुण होना आवश्यक है। एक हिन्दी योद्धा को जाति, मजहब आदि की श्रेष्ठता के अहंकार से मुक्त होकर समाज के विभिन्न वर्गों, जाति, मजहब, धर्म, सम्प्रदाय, के लोगों को एक साथ लेकर चलना चाहिए। कार्य की सफलता का श्रेय सभी को देते हुए असफलता या विरोधाभासों के बीच खुद आगे आकर समूह का नेतृत्व करने का सामर्थ्य होना चाहिए।

5-अनचाहे शब्दों से बचना- समूह में अपनी बात रखते हुए हमें अनचाहे शब्दों से बचने का प्रयास करना चाहिये। क्योंकि अनचाहे शब्दों को बार-बार दोहराने से समूह में आपके प्रति गंभीरता कम होती है। जैसे-कहने का मतलब, समझ गये न, जो है न , वाह, अरे, अबे, यार, ओके, अभद्र मजाक न करें आदि।

हिन्दी योद्धा बनने हेतु अनिवार्य अर्हताएँ

  • शिक्षा- कक्षा १० से अधिक पढ़ाई किए हुए हिन्दी प्रेमी
  • संगणक (कम्प्यूटर) पर कार्य करने का अनुभव।
  • सोशल मीडिया पर कार्य करना आता हो।
  • आयु – १८ वर्ष से अधिक

आवश्यक सत्यापित प्रमाणपत्रः- संस्थान से जुड़ने पर हिन्दी योद्धा को अपना आधारकार्ड या मतदान परिचय पत्र की छायाप्रति जमा करानी होगी उसके साथ पासपोर्ट साइज फोटो और शैक्षणिक प्रमाण पत्रों की फोटो कॉपी हिन्दी योद्धा प्रकल्प में जमा करनी होगी।

भारतीय पत्रकारिता में इंदौर शहर का योगदान

भारतीय पत्रकारिता में इंदौर शहर का योगदान

डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’

जब धरती के गहन, गंभीर और रत्नगर्भा होने के प्रमाण को सत्यापित किया जाएगा और उसमें जब भी मालवा या कहें इंदौर का जिक्र आएगा निश्चित तौर पर यह शहर अपने सौंदर्य और ज्ञान के तेज से बखूबी स्वयं को साबित करेगा। हिंदी या कहें अन्य भाषाओँ में इंदौर के पत्रकार और साहित्यकारों का एक अलग ही स्थान है। जिस शहर को मध्यप्रांत की पत्रकारिता का केंद्र या कहें नर्सरी ही कहा जाता हो वह शहर का बाशिंदा होना भी अपने आप में गर्वित होने का कारक है।

देश में स्वच्छता में तीसरी बार प्रथम पायदान पर रहना जिस तरह से गौरवान्वित करने का कारण है तो वही यहाँ के पत्रकारों को भी अपने पूर्वजों या समकालीन पत्रकारों के कारण गौरव की अनुभूति होती है। नईदुनिया जैसे अख़बार ने इस शहर को समाचारों की निष्पक्षता और भाषा की शुद्धता का पाठ पढ़ाया तो वही इंदौर से प्रकाशित वीणा साहित्यिक पत्रकारिता के अपने 75 वर्ष पूर्ण करके एक कीर्तिमान रच रही है। यहाँ वेब पत्रकारिता के प्रथम पोर्टल ‘वेबदुनिया’ ने देश को एक दिशा दी है और साथ ही नवाचार का सन्देश भी। फिल्म, खेल, और साहित्य पत्रकारिता का क्षेत्र भी इंदौर से रोशन रहा है। इंदौर का भारतीय पत्रकारिता में योगदान शहर को ताउम्र अमर कर गया है। जब-जब भी भारतीय पत्रकारिता की बात होगी या इतिहास लिखा जाएगा तब-तब बिना इंदौर के विवरण के वह अधूरा ही माना जाएगा। इंदौर की पत्रकारिता जिन सितारों से रोशन है उनके योगदान का जिक्र करना भी गौरव का महोत्सव मनाना है। इसी सन्दर्भ में कई मूर्धन्य पत्रकार, संपादक है जिनका वर्णन आवश्यक है जैसे –

राहुल बारपुते:  बाबा के नाम से मशहूर शख्सियत राहुल बारपुते जी का योगदान हिंदी पत्रकारिता में अखंड है। हिंदी पत्रकारिता में शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जिसने राहुल बारपुते का नाम नहीं सुना होगा। पत्रकारिता के युग निर्माता बारपुते जी एक ऐसी शख्सियत है जिन्होंने राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी जैसे दिग्गजों को तराशा है।  बाबा के नाम से मशहुर बारपुतेजी ने नईदुनिया रूपी वटवृक्ष के नीचे धूनी रमाते हुए पत्रकारिता जगत को रत्नों से लाद दिया। यह संस्था कब अखबार से विश्वविद्यालय बन गया और बाबा कुलपति बनगए ये उन्होंने भी पता नहीं चला। लोग नईदुनिया पत्रकारिता सीखने आते और बाबा से सीखकर अन्य अखबारों को समृद्ध करने चले जाते। राहुल बारपुते हिंदी पत्रकारिता के पुरोधा हैं। उनके संपादकत्व में इंदौर की ‘ नईदुनिया ‘ हिंदी पत्रकारिता की ऐसी नर्सरी बनी, जिसकी जड़ें भाषाई और सामाजिक सरोकारों से ऊर्जा पाती थीं।

राजेंद्र माथुर: स्वतंत्र भारत में हिन्दी पत्रकारिता को स्थापित करने वाले स्तम्भ के रूप में राजेन्द्र माथुर जी का नाम अग्रणी है जिन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दी और पत्रकारिता के लिये समर्पित कर दिया। आपका जन्म 7 अगस्त, 1935 को मध्य प्रदेश के धार जिले की बदनावर तहसील में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा धार, मंदसौर एवं उज्जैन में हुई। उच्च शिक्षा के लिए वे इंदौर आए जहां उन्होंने अपने पत्रकार जीवन के महत्वपूर्ण समय को जिया। इंदौर के पास बदनावर में जन्में और इंदौर को कर्मस्थली बना कर मालवा अंचल के इस प्रतिभावान पत्रकार ने यह प्रमाणित कर दिया कि ऊंचाई प्राप्त करने के लिये महानगर में पैदा होना आवश्यक नहीं है। इंदौर से प्रकाशित नई दुनिया से अपनी पत्रकारिता यात्रा आरंभ करने वाले श्री माथुर हिन्दी राष्ट्रीय दैनिक नवभारत टाइम्स के सम्पादक बने। आरंभ से अपनी आखिरी सांस तक ठेठ हिन्दी पत्रकार का चोला पहने रहे।

प्रभाष जोशी: हिन्दी पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक आदरणीय प्रभाष जोशी जी का जन्म  इंदौर के निकट स्थित बड़वाहा में हुआ था। उनके परिवार में उनकी पत्नी उषा, माँ लीलाबाई, दो बेटे संदीप और सोपान तथा एक बेटी पुत्री सोनल है। उनके पुत्र सोपान जोशी, डाउन टू अर्थ नामक पर्यावरण विषयक अंग्रेजी पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक हैं। प्रभाष जी बंद कमरे में कलम घिसने वाले पत्रकार नहीं होकर एक एक्टिविस्ट / कार्यकर्त्ता थे, जो गाँव, शहर, जंगल की खाक छानते हुए सामाजिक विषमताओं का अध्ययन कर ना केवल समाज को खबर देते थे अपितु उसे दूर करने का हर संभव प्रयास भी उनकी बेमिसाल पत्रकारिता का हीं एक हिस्सा था थे। वे राजनीति तथा क्रिकेट पत्रकारिता के विशेषज्ञ भी माने जाते थे। दिल का दौरा पड़ने के कारण गुरुवार, ५ नवम्बर २००९ मध्यरात्रि के आसपास गाजियाबाद की वसुंधरा कॉलोनी स्थित उनके निवास पर उनकी मृत्यु हो गई।

डॉ प्रभाकर माचवे:  आपका जन्म तो ग्वालियर में हुआ किन्तु शिक्षा इंदौर में और आगरा में हुई। इन्होंने एम.ए., पी-एच.डी. एवं साहित्य वाचस्पति की उपाधियां प्राप्त कीं। ये मजदूर संघ, आकाशवाणी, साहित्य आकदमी, भारतीय भाषा परिषद् आदि से सम्बध्द रहे। देश और विदेश में अध्यापन किया। इनके कविता-संग्रह हैं : ‘स्वप्न भंग, ‘अनुक्षण, ‘तेल की पकौडियां तथा ‘विश्वकर्मा आदि। इन्होंने उपन्यास, निबंध, समालोचना, अनुवाद आदि मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी में 100 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार तथा उ.प्र. हिन्दी संस्थान का सम्मान प्राप्त हुआ है। भारतीय साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता को भी सुशोभित करने में आपका नाम गौरव से लिया जाता है।

डॉ. वेद प्रताप वैदिक: भारत के सुप्रसिद्ध लेखक, पत्रकार और हिंदी सेवी होने के साथ-साथ एक स्वप्न दृष्टा के रूप में वैदिक जी प्रतिष्ठित है। हिन्दी को भारत और वैश्विक मंच पर स्थापित करने की दिशा में सदा प्रयत्नशील रहते हैं। भाषा के सवाल पर स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी और डॉ॰ राममनोहर लोहिया की परम्परा को आगे बढ़ाने वालों में डॉ॰ वैदिक का नाम अग्रणी है। वैदिक जी अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ रहे हैं। भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने लगभग 80 देशों की यात्रायें की हैं।

अंग्रेजी पत्रकारिता के मुकाबले हिन्दी में बेहतर पत्रकारिता का युग आरम्भ करने वालों में डॉ॰ वैदिक का नाम अग्रणी है। उन्होंने सन् 1958 से ही पत्रकारिता प्रारम्भ कर दी थी। नवभारत टाइम्स में पहले सह सम्पादक, बाद में विचार विभाग के सम्पादक भी रहे। उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया। सम्प्रति भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा नेटजाल डाट काम के सम्पादकीय निदेशक हैं।

वेद प्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसम्बर 1944 को इंदौर में हुआ। वे सदैव प्रथम श्रेणी के छात्र रहे। दर्शन और राजनीति उनके मुख्य विषय थे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अन्तरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी करने के पश्चात् कुछ समय दिल्ली में राजनीति शास्त्र का अध्यापन भी किया।उन्होंने हिन्दी समाचार एजेन्सी भाषा के संस्थापक सम्पादक के रूप में एक दशक तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में काम किया। इसके पूर्व वे नवभारत टाइम्स में सम्पादक भी रहे। उस समय नवभारत टाइम्स सर्वाधिक पढा जाने वाले हिन्दी अखबार था। इस समय वे भारतीय भाषा सम्मेलन के अध्यक्ष तथा मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक भी हैं।

विमल झांझरी: बा साहब व नरेश के नाम से प्रसिद्द १ नवंबर 1924 को इंदौर में जन्में विमल झांझरी जी इंदौर की पत्रकारिता का अभिन्न अंग है जिन्होंने देश भर में विभिन्न भाषाओँ में पत्रकारिता कर के इंदौर को सदा ही मान दिलवाया है। आपकी शिक्षा-दीक्षा 1941 में मेट्रिक (त्रिलोकचन्द जैन हाईस्कूल से, इंदौर) 1944 में बी. काम. (आगरा विश्वविद्यालय से)1946 में एल. एल. बी.(आगरा विश्वविद्यालय से) से हुई है।  सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सहभागी होने के साथ साथ आपने पत्रकारिता शुरू की, तथा पहला संस्थान टाइम्स आफ इंडिया था , वर्ष 2001 तक टाइम्स आफ इंडिया में सेवाएँ दी। अँग्रेज़ी , हिन्दी, मराठी, गुजराती भाषाओं में आपने पत्रकारिता कर्म का निर्वहन किया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दो वर्ष भूमिगत रहकर ‘प्रजामंडल पत्रिका ‘ का संपादन भी किया। लगभग ६० वर्ष से अधिक की पत्रकारिता के काल में आपने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय सहभागिता की, होलकर राजशाही को ख़त्म करवाने में महती भूमिका अदा की, रतलाम- खंडवा-अकोला रेल लाइन में गेज कंवर्जन  की योजना मंजूर करवाई, महू- इंदौर का टर्मिनल स्टेशन अथक प्रयासों का परिणाम है, इंदौर में माल गोदाम पर छोटा रेलवे स्टेशन बनवाने में आपकी भूमिका सराहनीय रही, इसी के साथ ‘नरेश’ के नाम से आपकी लेखनी ब्रिटिश इंडिया के अख़बारों में भी प्रचलित रही।

शरद जोशी: आपका जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में २१ मई १९३१ को हुआ। कुछ समय तक यह सरकारी नौकरी में रहे, फिर इन्होंने लेखन को ही आजीविका के रूप में अपना लिया। इंदौर में नईदुनिया से स्तम्भकार के रूप में शुरुआत करते हुए आपने बतौर पत्रकार स्वयं को स्थापित भी किया। आरम्भ में कुछ कहानियाँ लिखीं, फिर पूरी तरह व्यंग्य-लेखन ही करने लगे। इन्होंने व्यंग्य लेख, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्य कॉलम के अतिरिक्त हास्य-व्यंग्यपूर्ण धारावाहिकों की पटकथाएँ और संवाद भी लिखे। हिन्दी व्यंग्य को प्रतिष्ठा दिलाने प्रमुख व्यंग्यकारों में शरद जोशी भी एक हैं। इनकी रचनाओं में समाज में पाई जाने वाली सभी विसंगतियों का बेबाक चित्रण मिलता है। इसी के चलते इंदौर को देश के नक़्शे पर आदरणीय शरद जोशी जी ने गौरवान्वित किया।

श्रवण गर्ग: जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुडकर अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआ़त करने वाले हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार,लेखक और संपादक श्री श्रवण गर्ग जी ने सम्पादकीय प्रभाग को उन्नत बनाने में अहम् भूमिका निभाई है। ४ मई १९४७ को जन्मे श्रवण गर्ग ने देश में हिंदी पत्रकारिता का परचम लहराया है। आपका परिवार राजस्थान से आकर इंदौर में बस गया था और इंदौर में वे वेद प्रताप वैदिक जी के पड़ोसी थे। शुरुआती पढ़ाई इंदौर में करने के बाद श्रवण गर्ग ने इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया, उसके बाद ग्रेजुएशन किया। दिल्ली जाने के बाद भारतीय विद्या भवन से उन्होंने पत्रकारिता की पढ़ाई की और अंग्रेजी पत्रकारिता के कोर्स भी किए और फिर नई दुनिया इंदौर में सम्पादकीय विभाग में कार्य करने लगे। नई दुनिया में रहते हुए उनका चयन इंग्लैंड के थॉमसन फाउंडेशन में तीन महीने के एक पाठ्यक्रम के लिए हुआ।

आलोक मेहता: 07 सितम्बर 1952 ई॰ को उज्जैन (म॰प्र॰) में जन्में आलोक मेहता जी ने एम॰ए॰ आधुनिक इतिहास की डिग्री विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से ली। हिन्दी के पत्रकार पत्रकार होने के साथ ख्यात संपादक भी है। आपने नईदुनिया ,नवभारत टाइम्स पटना, हिंदुस्तान. आउटलुक पत्रिका, नई दुनिया, दिनमान, दैनिक हिन्दुस्तान आदि में सेवायें दी तथा  आपको भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार, हिन्दी अकादमी का साहित्यकार-पत्रकार सम्मान-2006, दिल्ली हिन्दी अकादमी द्वारा श्रेष्ठ लेखन पुरस्कार-1999 आदि पुरस्कार भी प्राप्त हुए। आपकी भाषा सहज, सरल सादगी पूर्ण साहित्यिक खड़ीबोली हिन्दी है तथा यथार्थ परक, सरस, वर्णनात्मक, विचारात्मक, चित्रात्मक शैली है।

डॉ प्रकाश हिंदुस्तानी : 23 जुलाई 1955 को बुरहानपुर, मध्यप्रदेश में जन्में। वहां से इंदौर जिले की महू तहसील के गांव नेऊ गुराड़िया (महू-पातालपानी के बीच) में बचपन बीता । चौथी कक्षा में महू के माहेश्वरी विद्यालय में भर्ती। फिर शासकीय माध्यमिक और हायर सेकेण्डरी स्कूल में। महू के शासकीय कॉलेज से बी.कॉम, फिर एम.कॉम। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से टॉ रेंक पर मास्टर ऑफ जर्नलिज्म की डिग्री प्राप्त की। पंचायत और समाज सेवा विभाग में धार में अप अंकेक्षक की नौकरी की उसके बाद फिर श्री राजेन्द्र माथुर के मार्गदर्शन में नईदुनिया में प्रशिक्षु उपसंपादक के तौर पर पत्रकारिता में  शुरुआत की। मुंबई में दि टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की पत्रिका ‘धर्मयुग’ में उप संपादक के तौर पर भी कार्य किया उसी बाद नवभारत टाइम्स में स्थानांतरित हो गए। देश की पत्रकारिता के मिजाज को बखूबी समझकर टिपण्णी रचने वाले ध्येय पुरुष के रूप में डॉ प्रकाश हिंदुस्तानी जी कार्यरत है। कई मूर्धन्य सम्पादकों के साथ कार्य करना और इंटरनेटयुगीन वेबदुनिया के आरम्भ और स्थापित करने के लिए भी हिंदुस्तानी जी जाने जाते है।

दीपक चौरसिया: टीवी पत्रकारिता का चर्चित चेहरा दीपक चौरसिया जी का जन्म इंदौर,मध्य प्रदेश में हुआ था। उन्होंने नयी दिल्ली के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से पत्रकारिता में डिप्लोमा की डिग्री ली। शिक्षा प्राप्त करने के बाद दीपक आज तक में चले गए। २००३ में उन्होंने सहायक संपादक के तौर पर डीडी न्यूज़ में काम करना शुरुआत किया। जुलाई 2004 में वे आजतक वापस आ गए। आज तक टीवी टुडे नेटवर्क का मुख्य न्यूज़ चैनल है। उन्होंने बाद में स्टार न्यूज़ में शामिल हुए जो बाद में ABP न्यूज़ हो गया। दीपक ने जनवरी २०१३ में मुख्य संपादक के तौर पर इंडिया न्यूज़ में शामिल हुए।

सईद अंसारी: सईद अंसारी भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय एंकर्स में से एक हैं। सईद को लाइव एंकरिंग में दक्षता हासिल है। सईद उन गिने-चुने एंकर्स में से हैं जो राजनीति, खेल, व्यापार सभी तरह की खबरों को बेहद प्रभावशाली ढंग से पेश करते हैं। खबरों की संवेदनशीलता को लेकर सईद की गंभीरता दर्शकों को खबर से जोड़ती है। वहीं एक जुझारू पत्रकार के तौर पर भी इनकी पहचान है। फील्ड रिपोर्टिंग हो या एंकरिंग या फिर डेस्क वर्क, हर जगह इन्होंने अपना परचम लहराया है।

सईद अंसारी को देशभर की कई संस्थाओं ने प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार प्रदान किए हैं। सईद को ENBA का सर्वश्रेष्ठ एंकर अवॉर्ड, BCS रत्न बेस्ट एंकर अवॉर्ड, नारद पुरस्कार जैसे तमाम अवॉर्ड मिल चुके हैं। सईद के नाम एक ऐसा कारनामा भी है जो आजतक कोई भी एंकर नहीं कर पाया, सईद ने लगातार 18 घंटे बिना ब्रेक के लाइव एंकरिंग कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है, जिसे लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है।

सईद अंसारी रेडियो जॉकी रहे हैं, उन्होंने सैकड़ों डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाईं। लिखने-पढ़ने के शौकीन सईद साहित्य प्रेमी हैं। इंडिया टुडे पत्रिका और देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सईद के लेख छपते रहते हैं। सईद की विशेषता पुस्तक समीक्षा करना है। कई सौ पुस्तकों की सईद अंसारी समीक्षा कर चुके हैं और यह सिलसिला लगातार जारी है। देशभर के विश्वविद्यालयों, शैक्षणिक संस्थाओं, विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सईद अंसारी को मीडिया विशेषज्ञ और वक्ता के रूप में आमंत्रित किया जाता है। सईद ने मास कम्यूनिकेशन में मास्टर्स डिग्री हासिल करने के अलावा पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है. सईद ने मास मीडिया और क्रिएटिव राइटिंग में भी दो साल का डिप्लोमा किया है।

 

डॉ अर्पण जैन ‘अविचल

पत्रकार एवं स्तंभकार

संपर्क: 09406653005

अणुडाकarpan455@gmail.com

अंतरताना:www.arpanjain.com

[लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान,भाषा समन्वयआदि का संचालन कर रहे हैं ]