पेडों की हत्याओं पर मौन तंत्र

दिखावा नहीं, असल पर्यावरण हितैषी बनना होगा

इन्दौर में लगातार पर्यावरण जागरुकता मुहिम चलाई जा रही है, पेड़-पौधों के रोपण की संख्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है, राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे लगातार पेड़ लगाए जा रहे हैं, ‘एक पेड़ माँ के नाम’ से आरम्भ हुई यात्रा अब ‘एक बगिया माँ के नाम’ तक पहुँच चुकी है। वर्ष 2024 में सरकारी तंत्र द्वारा 51 लाख पेड़ लगाने का पुनीत कार्य करने की बात हुई और फिर एक ही दिन में 11 लाख पौधे लगाकर विश्व कीर्तिमान बनाया और अब इस वर्ष भी 51 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया हुआ है, ऐसे दौर में भी शहर में वृक्षों की अवैध कटाई रुकी नहीं।
शहर को मेट्रोपॉलिटन बनाने का सपना देखने वाले राजनेताओं ने विकास की मेट्रो चलाने के लिए सैंकड़ों पेड़ सुपर कॉरिडोर और अन्य स्थानों पर ट्रांसप्लांट किए, उनमें से कई जीवित नहीं रह पाए। फ्लाईओवर बनाने की हड़बड़ी ने हज़ारों पेड़ों को असमय मौत के घाट उतार दिया। यहाँ तक कि मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के द्वारा हुकुमचंद मिल की ज़मीन पर 5000 से अधिक पेड़ों पर आरी चलने के दुःखद समाचार ने शहर को व्यथित किया। ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर और आसपास की सड़कों पर ग्रीनरी कम हो गई है। ऐसी सैंकड़ों घटनाओं का गवाह इन्दौर बना है और आज भी बनता ही जा रहा है।
काग़ज़ों पर बनाई तमाम वृक्ष हितेषी योजनाओं की साख पर धरातलीय कार्यों ने बट्टा लगा दिया। प्रदेश के कई जिलों में वन माफ़िया रात के स्याह अंधेरे में वृक्षों की अवैध कटाई में लगे है। जबकि उच्च न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगा रखी है। ऐसे में विचार यह भी उठता है कि जब प्रदेश के मुखिया से लेकर मंत्री, अफ़सर, महापौर इत्यादि सब वृक्ष हितेषी हैं तो फिर इन वन माफ़ियाओं के हौंसलें बुलंद कैसे, जो वृक्षों को अंधाधुंध काट रहे हैं!
खोट तंत्र के मौन में है, जो धृतराष्ट्र की भाँति पांचाली के चीर हरण पर मौन रहे, और वृक्षों की अब लगातार हो रही हत्या पर चुप्पी साध कर नए पेड़ लगाने के अभियान को गति दे रहे हैं। शायद वृक्षों का नाम मतदाता सूची में नहीं है, अन्यथा उनके बचाओ के लिए भी यह तंत्र आगे आता। यदि शहर हित चाहते हैं तो सबसे पहले वन माफ़ियाओं को चिह्नित करके वृक्षों की हत्या से बचाओ, अन्यथा सारी बगिया और पेड़ कोरे दिखावे हैं।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार
इन्दौर, मध्यप्रदेश

जनता और प्रशासन के तालमेल से सुधरेगा ‘इन्दौरी ट्रैफ़िक’

जिजीविषा की कमी, इच्छाशक्ति की मृत्यु और ध्येय का धूमिल हो जाना ही किसी कार्य की असफलता का मानक और पर्याय हो जाता है। ऐसा ही कुछ हाल इन्दौर के अव्यवस्थित यातायात ने शहर पर बदनुमा दाग़ की तरह जगह बना ली है।
भारत में लगभग 1 लाख से अधिक लोग प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गँवा देते हैं, उनमें से अधिकांशतः युवा हैं, ऐसे नए भारत में इंदौर भी किसी सूरत में कम नहीं। बीते दिनों एक सड़क मार्ग जाम हो जाने से 3 लोगों ने दम तोड़ दिया। पुलिस-प्रशासन को उस जाम को हटवाने और सड़क मार्ग को सुचारू करवाने में 15 घण्टे से अधिक समय लग गया। ऐसी दुर्गति शहर के भीतर भी आए दिन हो रही है। यातायात के मामले में तो अब इंदौर राम भरोसे ही चल रहा है। और इसके लिए जितना ज़िम्मेदार प्रशासन है, उतनी ही ज़िम्मेदार जनता जनार्दन भी है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती, उसी तरह केवल प्रशासन द्वारा यातायात दुरुस्तीकरण के क़दम उठाने से शहर का यातायात भला नहीं हो जाता, जनता को भी नियम से चलने और बेवजह यातायात बाधित नहीं करने का भी ज्ञान होना चाहिए।
इंदौर ने पूरे देश में स्वच्छता के मामले में मिसाल क़ायम की है, उसी तरह सुचारू यातायात व्यवस्था में भी हम नंबर वन बनें। इंदौर की बड़ी समस्या, अव्यवस्थित यातायात और सिग्नल तोड़ते लोग हैं।
वैसे यातायात विभाग को सिग्नल तोड़ने वाले, यातायात बाधित करने वाले, सड़कों पर बेतरतीब वाहन खड़े करने वालों पर सख्ती और तगड़ा जुर्माना लगाना चाहिए। बड़ी बात यह भी कि शहर के जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों को भी एक प्रण लेना होगा कि किसी व्यक्ति द्वारा यातायात नियमों को तोड़ने पर लगने वाले जुर्माने व कार्यवाही से बचाने के लिए कतई पुलिस विभाग में न ही फ़ोन लगाए जाएँगे और न ही कोई दबाव बनाया जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
स्वतंत्र लेखक एवं हिन्दीयोद्धा
इन्दौर, मध्यप्रदेश