मानवता की परिधि से बाहर होता इन्दौर

सच ही पढ़ा कि यह शहर अब अमानवीय होने पर आमादा है। शहर ही नहीं अपितु यहाँ आने वाले अफ़सरों को भी अमानवीयता की कार्यशाला का हिस्सा बनाकर भेजा जाता है। अफ़सरों से पहले जनप्रतिनिधियों की पाठशाला में मानवता को सरेआम कुचलना ही पदोन्नति का पर्याय हो गया है।
अब क्या ही कहें इस शहर को, जो अपने बाशिंदों की मौत पर भी मौन है?
शब्दों ने अपनी आत्मा के चोले को उतार फेंका है, बचे हुए अक्षर अब मातम मनाने का ढोंग कर रहे हैं। यही न कहें तो क्या कहें उस शहर के बारे में जो तरक़्क़ी की ऊँची-ऊँची इमारतों पर इतरा तो रहा है पर हादसों की जद में आए अपने ही लोगों की मौत पर भी मौन है।
सोमवार को इन्दौर के एरोड्रम रोड पर शाम को एक ट्रक, जो कई गाड़ियों और सड़क पर चलने वालों को मदमस्त रौंदता हुआ बढ़ गया और फिर बाद में 8 लोगों की अधिकृत मौत हो गई, कई घायल हो गए। सवाल सबसे पहला यहीं से शुरू होता है कि ‘ट्रक उस क्षेत्र में घुसा कैसे?’
फिर बात आती है कि इस हादसे के बाद शहर की क्या प्रतिक्रिया रही? फिर अफ़सरों ने कितनी लीपा-पोती की और फिर नेताओं का एकतरफ़ा मौन!
कमाल है, जो शहर मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रभार वाला शहर हो, जहाँ अफ़सरों की तैनाती में भी मुख्यमंत्री कार्यालय का दख़ल होता हो, ऐसे दौर में वे अफ़सर क्यों मौन बैठ गए कि ट्रक ने कैसे रौंद दिया! और कितनी साफ़-सफ़ाई रखकर सड़क साफ़ करवाई जा सकें।
कुछ दिनों पहले शहर ही नहीं अपितु जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में नवजात शिशु को चूहे कुतर गए थे, तब भी अफ़सरों की चुप्पी तो झेल गए पर जनता की चुप्पी खल गई। एरोड्रम वाले हादसे के बाद भी जनता अगले दिन भूल कर अपने काम में लग गई।
पहले भी यही सब हुआ है। पहले जब सरवटे बस स्टैंड के होटल के गिरने से 11 लोग मर गए, रिवर साइड स्थित पटाखे की दुकान में लगी आग ने लोगों की जान ले ली, डीपीएस विद्यालय हादसे ने बच्चों की जान ले ली, और तो और रामनवमी पर बावड़ी के धसने से 36 लोग दब कर मर गए, तब भी कुछ मोमबत्तियों के सिवा हुआ क्या?
आज भी यही बात है कि शहर की चुप्पी और नेताओं के मौन ने अफ़सरों की मनमर्ज़ी को मानो इन्दौर को अमानवीय सिद्ध करने का काम किया है। जनप्रतिनिधियों के मौन ने यह बता दिया कि अफ़सर तंत्र के आगे वे भी बेबस हो गए, अब सुरेश सेठ जैसी बेझिझक शख़्सियत शहर में बची ही नहीं, जो माँ अहिल्या के मान को बचा कर शहर को इस तरह के हादसों का गुलाम बना दिया, जो हमेशा मौन धारण करके बैठ जाता है।
मुख्यमंत्री तो शहर में आए दिन आते रहते हैं, फिर भी वो केवल आश्वासन देकर रफ़ू चक्कर।
शहर में सैंकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवि, नेतृत्व कौशल लोग मौजूद हैं, पर सबका मौन शहर को मानवता की परिधि से बाहर कर रहा है, जिसे न रोका गया तो शहर इन्दौर व्यावसायिक तो बन जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएँगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

‘हेय’ की नहीं ‘हित’ की भाषा है हिन्दी


डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

भारत 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेषचारों से सम्पन्न, सांस्कृतिक रूप से सबल और साहित्यिक दृष्टिसम्पन्नता वाला वैभवमय, लोक अक्षुण्ण, भाषाई सशक्त, परम्पराओं वाला राष्ट्र है। इसकी चेतना दिगदिगंत तक प्रवाहित होती है, इसके सांस्कृतिक ताने-बाने और धार्मिक दृढ़ता की चर्चा न केवल विश्वभर में है बल्कि विश्व इस बात पर भारत का लोहा भी मानता है। यही कारण है कि सृष्टि पर सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में स्वीकृत सिंधु घाटी सभ्यता का केन्द्र भी भारत रहा। दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के रूप में तमिल और संस्कृत दोनों का उल्लेख किया जाता है, लेकिन तमिल को दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषा माना जाता है।
परम वैभव सम्पन्न राष्ट्र भारत का आज विश्व में सरलता से भाषाई परिचय हिन्दी से मिलता है। यानी कि भारत की पहचान हिन्दी है। और गर्व इस बात पर किया जाना चाहिए कि दुनिया को हिन्दी के माध्यम से उन ग्रन्थ, इत्यादि पढ़ने के लिए मिले, जो सदियों पहले अन्य भाषाओं के साथ लुप्त हो रहे थे। आरंभिक काल से देवभाषा संस्कृत ने अपने प्रभाव को अक्षुण्ण रखा, किन्तु समय के अनुवांशिक विकास ने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी को भी मज़बूती से गढ़कर भारतीयता के बोध को सुस्पष्ट कर दिया। वर्तमान में हिन्दी न केवल जनभाषा है अपितु विश्व की सबसे ज़्यादा बोली, सुनी और लिखी जाने वाली भाषा है।
विश्व के 50 से अधिक विश्वविद्यालय आज हिन्दी की पढ़ाई करवा रहे हैं। उसके पीछे का बड़ा कारण भारत का बाज़ार है, और साथ-साथ भारत का शक्ति सम्पन्न होना भी ज़िम्मेदार है। भारत की विदेश नीतियों की वजह से दिन-प्रतिदिन व्यापारिक संस्थान तेज़ी से बढ़ रहे हैं, सकल घरेलू उत्पाद दर व सकल राष्ट्रीय उत्पाद दर में बढ़ोतरी हो रही है, विश्व अपने व्यापार के लिए अब भारत का रुख़ कर रहा है, ऐसे समय भारतीय भाषाएँ ही भारत के बाज़ार की मज़बूती बन सकती हैं। सरकारों को भी चाहिए कि कोई एक विदेशी भाषा की गुलामी को छोड़कर अपनी भाषाओं की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि इस समय पूँजी का केन्द्र आपके हाथों में होने से आप विश्व को दिशा-निर्देश दे सकते हैं कि हमसे व्यापार करना है तो हमारी भाषा में करना होगा। जैसे चीन ने अपने देश में स्वभाषा की बाध्यता लगाई है। भारत भी चाइना की तरह ही बल्कि यूँ कहें कि चाइना से भी अधिक व्यापार सम्पन्न राष्ट्र है। फिर अपनी भाषा की स्थिरता क्यों नहीं?
इसके साथ भारतीयों के भीतर भी कटुता का त्याग कर जनजागृति लानी होगी, हम आपस में न लड़कर वैश्विक रूप से ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ के सिद्धान्त को दृढ़ करें। इस समय महाराष्ट्र में मराठी भाषा और हिन्दी के बीच खाई पैदा की जा रही है, जबकि जिन राजनैतिक लोगों को हिन्दी का विरोध दिख रहा है, वही आज मुम्बई की सफलता में बॉलीवुड के योगदान को नहीं हटा सकते। आज हिन्दी फ़िल्म जगत का केन्द्र मुम्बई न होता तो शायद आज मुम्बई इतना प्रगतिशील नहीं होता। कुल मिलाकर आप हिन्दी के बिना भारत की प्रगति सोच नहीं सकते, तब हिन्दी को अलग करने की चाह क्यों?ग
वैसे भी कोई भाषा किसी पर थोपी नहीं जा रही, बल्कि सब जनस्वीकार्यता के आगे नतमस्तक है। ऐसे दौर में भारत को अपनी सांस्कृतिक संपन्नता को कमज़ोर नहीं आँकना चाहिए। भारतीयता को बचाना है तो भारत की भाषाई पहचान हिन्दी को मज़बूत करना होगा, वह हेय की नहीं हित की भाषा है।।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा ‘नया इन्दौर’

◆ डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

कभी अपने शहर इन्दौर के लिए सुना भी नहीं था कि गंजेड़ी, भंगेड़ी, पाउडरची, चरसी, अफ़ीमबाज़, नाइट्रा बाज़, और तमाम तरह के नशेड़ियों का शहर होने लगेगा। पर जैसे-जैसे शहर मेट्रोपॉलिटन बनने की राह पर है, वैसे-वैसे बेलगाम नशेड़ियों ने अपना ‘ठिया’ इन्दौर को बना लिया है।
विजय नगर से लेकर लव कुश चौराहा, मेट्रो मार्ग से एयरपोर्ट जाने वाले मार्ग को तो नशेड़ियों ने अपने कब्ज़े में लेकर मानो शिकार करने का अड्डा बना रखा है। वैसे एबी रोड़ भी इन्ही नशेबाज़ों की चपेट से अछूता नहीं है।
शहर के अपराध रिकॉर्ड को रोज़ खंगाला जाए तो हर दिन इन्दौर में नशेबाज़ों के द्वारा लूट, मारपीट, छीना-झपटी, बलात्कार, राह चलती लड़की पर बुरी नीयत से हाथ डालना, यहाँ तक कि हत्या जैसे जघन्य कार्यों को भी नियमित अंजाम दिया जा रहा है।
कई पुराने चिह्नित क्षेत्रों में तो नशे का कारोबार भयंकर रूप से हो रहा है। हाल ही में मध्यप्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि ‘इंदौर में नशे के कारोबार के तार राजस्थान के प्रतापगढ़ से जुड़े हैं। एमपी पुलिस ने चोर को तो पकड़ लिया है, लेकिन चोर की माँ तक नहीं पहुँच पा रहे हैं। एमपी को बचाना है तो चोर की माँ तक पहुँचना ज़रूरी है।’
सोचिए प्रदेश के काबीना मंत्री तक नशेड़ियों से त्रस्त हैं, उसके बावजूद नशे के शिकार लोग शहर को बर्बाद करने आए बाज़ नहीं आ रहे और न ही कोई पुलिसिया बड़ी कार्यवाही हो रही है।
पिछले दिनों इन्दौर पुलिस ने बड़े स्तर पर ‘नशे से दूरी है ज़रूरी’ अभियान के तहत नशे से मुक्ति के लिए जागरुकता का कार्य किया, जिसमें विशाल मानव शृंखला बनाकर विश्व कीर्तिमान भी बना लिया पर नतीजा जस का तस ही है। नशेड़ी से हर थाना परेशान है। हर थाने में रोज़ नशेड़ियों के कृत्य दर्ज हो रहे हैं। बीते 15 दिन में दो वरिष्ठ पत्रकारों के साथ भी नशेड़ियों ने वारदात कर दी, परदेशीपुरा थाना क्षेत्र में पत्रकार सागर चौकसे को नशेड़ियों ने लूट का शिकार बनाया। कल रात विजय नगर थाना क्षेत्र में पत्रकार अभिषेक वर्मा को होटल ला-ओमनी के समीप रोककर मारपीट की, आरोपी अभी भी पहचाने नहीं गए और न ही आस-पास का सीसीटीवी चालू मिला। इस तरह होती वारदातों से शहर के निवासियों में भय का वातावरण है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के प्रभार वाला जिला आज नशेड़ियों की गिरफ़्त में आ रहा है। न नशेड़ियों पर वार हो रहा है और न ही इनके आकाओं की कमर तोड़ी जा रही। आख़िर इस तरह का ‘उड़ता इन्दौर’ किसी इन्दौरी के ख़्वाबों का शहर नहीं हो सकता। इस इंदौर को बचा लीजिए माननीय प्रशासन, वर्ना शहर बर्बाद हो जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक

पेडों की हत्याओं पर मौन तंत्र

दिखावा नहीं, असल पर्यावरण हितैषी बनना होगा

इन्दौर में लगातार पर्यावरण जागरुकता मुहिम चलाई जा रही है, पेड़-पौधों के रोपण की संख्याओं में लगातार वृद्धि हो रही है, राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे लगातार पेड़ लगाए जा रहे हैं, ‘एक पेड़ माँ के नाम’ से आरम्भ हुई यात्रा अब ‘एक बगिया माँ के नाम’ तक पहुँच चुकी है। वर्ष 2024 में सरकारी तंत्र द्वारा 51 लाख पेड़ लगाने का पुनीत कार्य करने की बात हुई और फिर एक ही दिन में 11 लाख पौधे लगाकर विश्व कीर्तिमान बनाया और अब इस वर्ष भी 51 लाख पेड़ लगाने का संकल्प लिया हुआ है, ऐसे दौर में भी शहर में वृक्षों की अवैध कटाई रुकी नहीं।
शहर को मेट्रोपॉलिटन बनाने का सपना देखने वाले राजनेताओं ने विकास की मेट्रो चलाने के लिए सैंकड़ों पेड़ सुपर कॉरिडोर और अन्य स्थानों पर ट्रांसप्लांट किए, उनमें से कई जीवित नहीं रह पाए। फ्लाईओवर बनाने की हड़बड़ी ने हज़ारों पेड़ों को असमय मौत के घाट उतार दिया। यहाँ तक कि मध्यप्रदेश हाउसिंग बोर्ड के द्वारा हुकुमचंद मिल की ज़मीन पर 5000 से अधिक पेड़ों पर आरी चलने के दुःखद समाचार ने शहर को व्यथित किया। ब्रिलियंट कन्वेंशन सेंटर और आसपास की सड़कों पर ग्रीनरी कम हो गई है। ऐसी सैंकड़ों घटनाओं का गवाह इन्दौर बना है और आज भी बनता ही जा रहा है।
काग़ज़ों पर बनाई तमाम वृक्ष हितेषी योजनाओं की साख पर धरातलीय कार्यों ने बट्टा लगा दिया। प्रदेश के कई जिलों में वन माफ़िया रात के स्याह अंधेरे में वृक्षों की अवैध कटाई में लगे है। जबकि उच्च न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटाई पर रोक लगा रखी है। ऐसे में विचार यह भी उठता है कि जब प्रदेश के मुखिया से लेकर मंत्री, अफ़सर, महापौर इत्यादि सब वृक्ष हितेषी हैं तो फिर इन वन माफ़ियाओं के हौंसलें बुलंद कैसे, जो वृक्षों को अंधाधुंध काट रहे हैं!
खोट तंत्र के मौन में है, जो धृतराष्ट्र की भाँति पांचाली के चीर हरण पर मौन रहे, और वृक्षों की अब लगातार हो रही हत्या पर चुप्पी साध कर नए पेड़ लगाने के अभियान को गति दे रहे हैं। शायद वृक्षों का नाम मतदाता सूची में नहीं है, अन्यथा उनके बचाओ के लिए भी यह तंत्र आगे आता। यदि शहर हित चाहते हैं तो सबसे पहले वन माफ़ियाओं को चिह्नित करके वृक्षों की हत्या से बचाओ, अन्यथा सारी बगिया और पेड़ कोरे दिखावे हैं।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
लेखक एवं पत्रकार
इन्दौर, मध्यप्रदेश

जनता और प्रशासन के तालमेल से सुधरेगा ‘इन्दौरी ट्रैफ़िक’

जिजीविषा की कमी, इच्छाशक्ति की मृत्यु और ध्येय का धूमिल हो जाना ही किसी कार्य की असफलता का मानक और पर्याय हो जाता है। ऐसा ही कुछ हाल इन्दौर के अव्यवस्थित यातायात ने शहर पर बदनुमा दाग़ की तरह जगह बना ली है।
भारत में लगभग 1 लाख से अधिक लोग प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गँवा देते हैं, उनमें से अधिकांशतः युवा हैं, ऐसे नए भारत में इंदौर भी किसी सूरत में कम नहीं। बीते दिनों एक सड़क मार्ग जाम हो जाने से 3 लोगों ने दम तोड़ दिया। पुलिस-प्रशासन को उस जाम को हटवाने और सड़क मार्ग को सुचारू करवाने में 15 घण्टे से अधिक समय लग गया। ऐसी दुर्गति शहर के भीतर भी आए दिन हो रही है। यातायात के मामले में तो अब इंदौर राम भरोसे ही चल रहा है। और इसके लिए जितना ज़िम्मेदार प्रशासन है, उतनी ही ज़िम्मेदार जनता जनार्दन भी है।
एक हाथ से ताली नहीं बजती, उसी तरह केवल प्रशासन द्वारा यातायात दुरुस्तीकरण के क़दम उठाने से शहर का यातायात भला नहीं हो जाता, जनता को भी नियम से चलने और बेवजह यातायात बाधित नहीं करने का भी ज्ञान होना चाहिए।
इंदौर ने पूरे देश में स्वच्छता के मामले में मिसाल क़ायम की है, उसी तरह सुचारू यातायात व्यवस्था में भी हम नंबर वन बनें। इंदौर की बड़ी समस्या, अव्यवस्थित यातायात और सिग्नल तोड़ते लोग हैं।
वैसे यातायात विभाग को सिग्नल तोड़ने वाले, यातायात बाधित करने वाले, सड़कों पर बेतरतीब वाहन खड़े करने वालों पर सख्ती और तगड़ा जुर्माना लगाना चाहिए। बड़ी बात यह भी कि शहर के जनप्रतिनिधियों, पत्रकारों को भी एक प्रण लेना होगा कि किसी व्यक्ति द्वारा यातायात नियमों को तोड़ने पर लगने वाले जुर्माने व कार्यवाही से बचाने के लिए कतई पुलिस विभाग में न ही फ़ोन लगाए जाएँगे और न ही कोई दबाव बनाया जाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
स्वतंत्र लेखक एवं हिन्दीयोद्धा
इन्दौर, मध्यप्रदेश

डॉ. अर्पण जैन को मिला विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान 2025

भोपाल। लघुकथा दिवस के अवसर पर लघुकथा शोध केन्द्र समिति द्वारा भोपाल के हिन्दी भवन में शुक्रवार को लघुकथा पर्व 2025 का आयोजन किया गया। इस आयोजन में मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिन्दीयोद्धा डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए ‘विशिष्ट हिन्दी सेवी सम्मान 2025’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. देवेंद्र दीपक ने की व सारस्वत अतिथि नई दिल्ली से सुभाष नीरव, डॉ. उमेश कुमार सिंह, शोध केन्द्र निदेशक कान्ता रॉय एवं उपाध्यक्ष घनश्याम मैथिल रहे।

ज्ञात हो कि डॉ. अर्पण जैन हिन्दी सेवी हैं, जिन्होंने अब तक लगभग 30 लाख लोगों के हस्ताक्षर बदलवा दिए हैं। साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 का अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार और जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी एवं वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति द्वारा वर्ष 2023 का अक्षर सम्मान डॉ. अर्पण जैन को प्राप्त हुए हैं।

आयोजन में विभिन्न कृतिकारों एवं साहित्यकारों को भी सम्मानित किया गया।

घनाक्षरी- प्रेम

कोमल अंग सी तुम
प्रेम का पवित्र रूप
प्रेम तुम से हुआ है
प्रेम जीत जाएगा

जीवन का एक छंद
पवन बहेगी मंद
प्रीत की फुहार बन
प्रेम गीत गाएगा

भाषा का शृंगार देख
मन बन हार देख
मानस तो भीगा हुआ
प्रेम मीत लाएगा

कहने को शब्द रीत
मनडोर बंधी प्रीत
जीवन जीयेगा और
प्रेम प्रीत पाएगा।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

समीक्षा लेखन के लिए डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’ हुए पुरस्कृत

इन्दौर। आत्म अनुभूति मंच एवं निःशुल्क वाचनालय द्वारा मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को पुस्तक ‘पत्नी एक रिश्ता’ की समीक्षा लिखने पर पुरस्कृत किया गया। यह पुरस्कार लेखक राधेश्याम माहेश्वरी एवं हीरामणि माहेश्वरी द्वारा दिया गया, जिसमें सम्मान सहित नगद राशि भी प्रदान की गई।
ज्ञात हो कि पुस्तकों के एक अनूठे महायज्ञ का संचालन करने वाले आत्म अनुभूति मंच के द्वारा निःशुल्क पुस्तकालय संचालित करने वाला माहेश्वरी दम्पत्ति निरंतर पुस्तकों की सेवा कर रहा है एवं राधेश्याम माहेश्वरी द्वारा एक पुस्तक ‘पत्नी- एक रिश्ता’ लिखी गई। और इस पुस्तक की समीक्षाओं को पुरस्कृत भी किया गया है। इसमें डॉ. अर्पण जैन सहित डॉ. किसलय पंचौली, ज्योति जैन, रंजना फतेहपुरकर, प्रीति मकवाना, वैजयंती दाते व अरुणा खरगोनकर को भी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

हिन्दीयोद्धा डॉ. अर्पण जैन को मिलेगा लघुकथा शोध केंद्र समिति द्वारा विशिष्ट हिन्दी सेवा सम्मान

भोपाल। लघुकथा शोध केंद्र समिति, भोपाल म.प्र. द्वारा आयोजित अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी 2025 के अवसर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार और विस्तार में जुटे मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ को लघुकथा शोध केंद्र भोपाल द्वारा वर्ष 2025 का हिन्दी सेवी सम्मान प्रदान किया जाएगा।

ज्ञात हो कि डॉ. अर्पण जैन सुप्रसिद्ध हिन्दी सेवी हैं, जिन्होंने अब तक लगभग 30 लाख लोगों के हस्ताक्षर बदलवा दिए हैं। साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 का अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार और जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी एवं वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति द्वारा वर्ष 2023 का अक्षर सम्मान डॉ. अर्पण जैन को प्राप्त हुए हैं।
यह सम्मान आगामी 19 जून को भोपाल में आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा अधिवेशन एवं शोध संगोष्ठी में प्रदान किए जाएँगे।

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी

विश्व रंगमंच पर पर्दा नहीं गिरा है अभी
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एक आम भारतीय के दृष्टिकोण से यह कहना बहुत उचित है कि भारत की सरकार ने समझौता किया और अमेरिका के दबाव में कदम पीछे लिए किन्तु जब इसे अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य, युद्धनीति और वैश्विक विवशताओं के साथ जोड़कर देखेंगे तो निःसंदेह इसका दूसरा पक्ष भी है, जो जल्द ही सामने आएगा।
मत देखिए कि पाकिस्तान को मदद करने वाले देश कौन हैं पर यह अवश्य देखें कि behind the curtain क्या हो रहा होगा!
एक संवेदनशील प्रधानमंत्री और उनसे भी कहीं अधिक धैर्य रखने वाली भारतीय सेना… विश्वास कीजिए, अवश्य कुछ अलग और बेहतर होगा।
इस समय भारत विकासशील देशों की श्रेणी में आता है, एक उदाहरण है ना कि जब हम सड़क पर चलते हैं तो साइकिल सवार यदि ग़लती से भी कार से टकरा जाए, तब भी ग़लती कार चालक की मानी जाती है। उसी तरह पाकिस्तान साइकिल सवार देश है और भारत कार चालक।
चीन यही चाहता है कि भारत को युद्ध में उलझा कर कुछ नुक़सान करे। पर यह भी तय है कि देश का गंभीर नेतृत्व कुछ तो सोच ही रहा होगा, जबकि वह जानता है कि आगामी चुनाव में इस तरह रणछोड़ बनना उसके राजनैतिक दल के लिए घातक हो सकता है, फिर भी यह निर्णय लिया है तो कुछ तैयारी के साथ ही यह कदम उठाया होगा।
शेष सब शुभ हो, यही कामना है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

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