पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा

डॉ. अर्पण जैन अविचल'

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, पत्रकार एवं लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' के बारें में जाने...

झुलस रहा गणतंत्र, यह राष्ट्र धर्म नहीं

झुलस रहा गणतंत्र, यह राष्ट्र धर्म नहीं ===================================================== डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल‘ जहाँ हुए बलिदान प्रताप और जहाँ पृथ्वीराज का गौरव हो, जहाँ मेवाड़ धरा शोभित और जहाँ गण का तंत्र खड़ा हो, ऐसा देश अकेला भारत है, परन्तु वर्तमान में जो हालात विश्वपटल पर पहुँचाए जा रहे है वो भारत का असली चेहरा नहीं | […]


मैं जरुरत बनूंगा

हाँ ! प्यार की ठण्ड से *ठिठुरते* जज्बातों पर मैं तुम्हारी तपन बनूंगा, हाँ ! उम्मीद के स्याह आसमान में दीपक-सी मैं तुम्हारे लिए रोशनी बनूंगा, हाँ! थामकर हाथ मेरा चलने की आदत है तुम्हें मैं तुम्हारी लाठी बनूंगा, हाँ ! तुम्हें जरुरत दवा की नहीं मेरे साथ की है, मैं तुम्हारी जरुरत बनूंगा हाँ! […]


भारतीय

तारीखों के पटलने से साल बदल जाता है, मौसम के पटलने से नव सृजन मना कर देखो, हाँ ! तुम जो आज नया साल मना रहे हो, गुलामी की जंजीरों से परे निकल कर देखो, हाँ ! वही बेड़ियाँ जिसमें शताब्दियों की चारणता है, कभी स्वाधीनता के समर का विज्ञान बनकर देखो, हाँ ! वही […]


स्वास्थ्य समस्या- जिम्मेदार कौन

  हमारे धर्म शास्त्रों में मानव शरीर को सबसे बड़ा साधन माना गया है | कहा भी गया है कि *शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम*– यानी यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है | सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं| जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन और दिमाग तंदरुस्ती से […]


धुंध

सुनो! ये मौसम है ठण्ड और *धुंध* का, पर तुम ज्यादा संभलना इससे, क्योंकि इस मौसम में नमी और साथ-साथ आलस होता है, और यह मौसम सपनों पर भी धुंध की परते चढ़ा देता है । और अभी सपनों को धुंध से बचाना होगा, वरना हम बिखर से जाएंगे, हाँ ! इसके लिए तुम मेहनत […]


लघुकथा- मंचों की कवयित्री

*2.लघुकथा-मंच की कवयित्री* संस्कृति मंचों की एक उम्दा कवियत्री है । सप्ताह में 4 से अधिक कवि सम्मेलनों में रचना पाठ करना ही संस्कृति की पहचान थी । पुरुषप्रधान समाज होने के कारण कई बार संस्कृति का सामना फूहड़ कवियों और श्रोताओं से भी होता था । इसी बीच एक गाँव में हुए कवि सम्मेलन […]


लघुकथा- प्रतिक्रिया

*लघुकथा- प्रतिक्रिया* सारांश अपनी व्यस्त जीवन शैली में संचयनी के साथ बहुत खुश था, पर संचयनी अपनी सहेलियों और सहकर्मीयों के बीच बहुत सीधी और भोली थी | संचयनी के सहकर्मी उसके भोलेपन का हमेशा नाजायज फायदा उठा कर संचयनी को ही तंज कसते रहते थे, जिसके कारण वह पिछले कुछ दिनों से थोड़ी उखड़ी-उखड़ी […]


दैनिक लोकजंग में प्रकाशित आलेख

भोपाल से प्रकाशित दैनिक लोकजंग में मेरा आलेख- ‘तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य’ तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य


तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य

*तर्क के आरोहण के बाद बनेगा हिन्दी राष्ट्रभाषा का सूर्य* *_समग्र के रोष के बाद, सत्य की समालोचना के बाद, दक्षिण के विरोध के बाद, समस्त की सापेक्षता के बाद, स्वर के मुखर होने के बाद, क्रांति के सजग होने के बाद, दिनकर,भास्कर, चतुर्वेदी के त्याग के बाद, पंत,सुमन, मंगल,महादेवी के समर्पण के बाद भी […]