_पुण्यस्मरण विशेष_

दुःख की गगरी के पार महादेवी वर्मा

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*

 

न लिबास कोई गेरुआ, न किसी संत के सम्मुख दीक्षित, लिखा वही जो देखा, रंगों के उत्सव के दिन जन्मी पर ताउम्र एक रंग ही भाया। गद्य भी लिखे, पद्य भी लिखे, प्रेम भी लिखा, विरह भी समझाया, आदि भी लिखा, अनंत भी समझाया, मौन भी लिखा, उत्सव भी दिखाया, ऐसी हिन्दी साहित्य की आधुनिक मीरा महादेवी कहलाई।
यह सत्य है कि इस मीरा ने अपना सर्वस्व अपने साहित्य को समर्पित कर दिया, अपना बचपन, अपना यौवन और उम्र भर साहित्य को अर्पण कर युगों-युगों तक गीतों और प्रेम पुजारिन की तरह अमर हो गई।
जब एक विरहणी स्त्री के रो देने से कोई गुरुदेव रवीन्द्रनाथ बन जाता है तो सोचिये जब ख़ुद एक विरहणी स्त्री ही सृजन का ध्वज थाम ले तो विजय का कैसा महोत्सव बन जाया करता है।
महादेवी वर्मा ने पथ के साथी और अतीत के चलचित्र लिखे, दीपशिखा में शृंगार लिखा, नीहार, रश्मि, नीरजा में पूरा काव्यालय परोस दिया, इसीलिए निराला ने उन्हें हिन्दी साहित्य के मंदिर की सरस्वती भी कहा। सप्तपर्णा, प्रथम आयाम और अग्निरेखा ने काव्य प्रतिमा का सृजन किया तो क्षणदा जैसे ललित निबंध और गिल्लू जैसी कहानी भी लिख कर हिन्दी सेवा की।
महादेवी का कृतित्व जितना निराला था, उतना ही अद्भुत व्यक्तित्व भी था। महीयसी महादेवी का चिर-परिचित अंदाज़, जिसमें लोकमंगल ही निहित रहा।
उन्होंने हिन्दी कविता को बृजभाषा की कोमलता दी, छंदों के नये दौर को गीतों का भंडार दिया और भारतीय दर्शन को वेदना की हार्दिक स्वीकृति दी। भावात्मकता एवं अनुभूति की गहनता को स्थापित करके छायावाद के गौरव शिखर की स्थापना का श्रेय भी महादेवी को ही जाता है।
समाज सुधार और नारी स्वतंत्रता जैसे विषयों के माध्यम से भावना का सूत्र पिरोने वाली यह ममतामयी महादेवी ही हैं, जिन्होंने समाज को नवजागरण की तरफ़ मोड़ा। स्त्रीत्व को प्रेम के अरुणोदय के रूप में समझाकर यशस्वी बोध दिया।
जिनकी बेटियों की उपमाओं से संसार की सैंकड़ो हिन्दी व साहित्यसेवी स्त्रियाँ सुशोभित होकर आरूढ़ हैं, ऐसी श्वेतवस्त्र धारिणी शुभ्रा अनंत तक प्रेम गीतों और हिन्दी काव्य की मणिमाला बनकर पथ प्रदर्शित करती रहे। माँ अहिल्या की नगरी इंदौर से भी जिनका रिश्ता रहा, ऐसी अडिग अहिल्यासम महादेवी वर्मा जी को असंख्य कोटी नमन !

*डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’*
हिन्दीग्राम, इंदौर


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