मानवता की परिधि से बाहर होता इन्दौर

सच ही पढ़ा कि यह शहर अब अमानवीय होने पर आमादा है। शहर ही नहीं अपितु यहाँ आने वाले अफ़सरों को भी अमानवीयता की कार्यशाला का हिस्सा बनाकर भेजा जाता है। अफ़सरों से पहले जनप्रतिनिधियों की पाठशाला में मानवता को सरेआम कुचलना ही पदोन्नति का पर्याय हो गया है।
अब क्या ही कहें इस शहर को, जो अपने बाशिंदों की मौत पर भी मौन है?
शब्दों ने अपनी आत्मा के चोले को उतार फेंका है, बचे हुए अक्षर अब मातम मनाने का ढोंग कर रहे हैं। यही न कहें तो क्या कहें उस शहर के बारे में जो तरक़्क़ी की ऊँची-ऊँची इमारतों पर इतरा तो रहा है पर हादसों की जद में आए अपने ही लोगों की मौत पर भी मौन है।
सोमवार को इन्दौर के एरोड्रम रोड पर शाम को एक ट्रक, जो कई गाड़ियों और सड़क पर चलने वालों को मदमस्त रौंदता हुआ बढ़ गया और फिर बाद में 8 लोगों की अधिकृत मौत हो गई, कई घायल हो गए। सवाल सबसे पहला यहीं से शुरू होता है कि ‘ट्रक उस क्षेत्र में घुसा कैसे?’
फिर बात आती है कि इस हादसे के बाद शहर की क्या प्रतिक्रिया रही? फिर अफ़सरों ने कितनी लीपा-पोती की और फिर नेताओं का एकतरफ़ा मौन!
कमाल है, जो शहर मुख्यमंत्री डॉ. यादव के प्रभार वाला शहर हो, जहाँ अफ़सरों की तैनाती में भी मुख्यमंत्री कार्यालय का दख़ल होता हो, ऐसे दौर में वे अफ़सर क्यों मौन बैठ गए कि ट्रक ने कैसे रौंद दिया! और कितनी साफ़-सफ़ाई रखकर सड़क साफ़ करवाई जा सकें।
कुछ दिनों पहले शहर ही नहीं अपितु जिले के सबसे बड़े शासकीय अस्पताल में नवजात शिशु को चूहे कुतर गए थे, तब भी अफ़सरों की चुप्पी तो झेल गए पर जनता की चुप्पी खल गई। एरोड्रम वाले हादसे के बाद भी जनता अगले दिन भूल कर अपने काम में लग गई।
पहले भी यही सब हुआ है। पहले जब सरवटे बस स्टैंड के होटल के गिरने से 11 लोग मर गए, रिवर साइड स्थित पटाखे की दुकान में लगी आग ने लोगों की जान ले ली, डीपीएस विद्यालय हादसे ने बच्चों की जान ले ली, और तो और रामनवमी पर बावड़ी के धसने से 36 लोग दब कर मर गए, तब भी कुछ मोमबत्तियों के सिवा हुआ क्या?
आज भी यही बात है कि शहर की चुप्पी और नेताओं के मौन ने अफ़सरों की मनमर्ज़ी को मानो इन्दौर को अमानवीय सिद्ध करने का काम किया है। जनप्रतिनिधियों के मौन ने यह बता दिया कि अफ़सर तंत्र के आगे वे भी बेबस हो गए, अब सुरेश सेठ जैसी बेझिझक शख़्सियत शहर में बची ही नहीं, जो माँ अहिल्या के मान को बचा कर शहर को इस तरह के हादसों का गुलाम बना दिया, जो हमेशा मौन धारण करके बैठ जाता है।
मुख्यमंत्री तो शहर में आए दिन आते रहते हैं, फिर भी वो केवल आश्वासन देकर रफ़ू चक्कर।
शहर में सैंकड़ों की संख्या में बुद्धिजीवि, नेतृत्व कौशल लोग मौजूद हैं, पर सबका मौन शहर को मानवता की परिधि से बाहर कर रहा है, जिसे न रोका गया तो शहर इन्दौर व्यावसायिक तो बन जाएगा और हम हाथ मलते रह जाएँगे।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

‘हेय’ की नहीं ‘हित’ की भाषा है हिन्दी


डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

भारत 14 सितम्बर हिन्दी दिवस विशेषचारों से सम्पन्न, सांस्कृतिक रूप से सबल और साहित्यिक दृष्टिसम्पन्नता वाला वैभवमय, लोक अक्षुण्ण, भाषाई सशक्त, परम्पराओं वाला राष्ट्र है। इसकी चेतना दिगदिगंत तक प्रवाहित होती है, इसके सांस्कृतिक ताने-बाने और धार्मिक दृढ़ता की चर्चा न केवल विश्वभर में है बल्कि विश्व इस बात पर भारत का लोहा भी मानता है। यही कारण है कि सृष्टि पर सबसे पुरानी सभ्यता के रूप में स्वीकृत सिंधु घाटी सभ्यता का केन्द्र भी भारत रहा। दुनिया की सबसे पुरानी भाषा के रूप में तमिल और संस्कृत दोनों का उल्लेख किया जाता है, लेकिन तमिल को दुनिया की सबसे पुरानी जीवित भाषा माना जाता है।
परम वैभव सम्पन्न राष्ट्र भारत का आज विश्व में सरलता से भाषाई परिचय हिन्दी से मिलता है। यानी कि भारत की पहचान हिन्दी है। और गर्व इस बात पर किया जाना चाहिए कि दुनिया को हिन्दी के माध्यम से उन ग्रन्थ, इत्यादि पढ़ने के लिए मिले, जो सदियों पहले अन्य भाषाओं के साथ लुप्त हो रहे थे। आरंभिक काल से देवभाषा संस्कृत ने अपने प्रभाव को अक्षुण्ण रखा, किन्तु समय के अनुवांशिक विकास ने संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी को भी मज़बूती से गढ़कर भारतीयता के बोध को सुस्पष्ट कर दिया। वर्तमान में हिन्दी न केवल जनभाषा है अपितु विश्व की सबसे ज़्यादा बोली, सुनी और लिखी जाने वाली भाषा है।
विश्व के 50 से अधिक विश्वविद्यालय आज हिन्दी की पढ़ाई करवा रहे हैं। उसके पीछे का बड़ा कारण भारत का बाज़ार है, और साथ-साथ भारत का शक्ति सम्पन्न होना भी ज़िम्मेदार है। भारत की विदेश नीतियों की वजह से दिन-प्रतिदिन व्यापारिक संस्थान तेज़ी से बढ़ रहे हैं, सकल घरेलू उत्पाद दर व सकल राष्ट्रीय उत्पाद दर में बढ़ोतरी हो रही है, विश्व अपने व्यापार के लिए अब भारत का रुख़ कर रहा है, ऐसे समय भारतीय भाषाएँ ही भारत के बाज़ार की मज़बूती बन सकती हैं। सरकारों को भी चाहिए कि कोई एक विदेशी भाषा की गुलामी को छोड़कर अपनी भाषाओं की अनिवार्यता सुनिश्चित करनी होगी, क्योंकि इस समय पूँजी का केन्द्र आपके हाथों में होने से आप विश्व को दिशा-निर्देश दे सकते हैं कि हमसे व्यापार करना है तो हमारी भाषा में करना होगा। जैसे चीन ने अपने देश में स्वभाषा की बाध्यता लगाई है। भारत भी चाइना की तरह ही बल्कि यूँ कहें कि चाइना से भी अधिक व्यापार सम्पन्न राष्ट्र है। फिर अपनी भाषा की स्थिरता क्यों नहीं?
इसके साथ भारतीयों के भीतर भी कटुता का त्याग कर जनजागृति लानी होगी, हम आपस में न लड़कर वैश्विक रूप से ‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ के सिद्धान्त को दृढ़ करें। इस समय महाराष्ट्र में मराठी भाषा और हिन्दी के बीच खाई पैदा की जा रही है, जबकि जिन राजनैतिक लोगों को हिन्दी का विरोध दिख रहा है, वही आज मुम्बई की सफलता में बॉलीवुड के योगदान को नहीं हटा सकते। आज हिन्दी फ़िल्म जगत का केन्द्र मुम्बई न होता तो शायद आज मुम्बई इतना प्रगतिशील नहीं होता। कुल मिलाकर आप हिन्दी के बिना भारत की प्रगति सोच नहीं सकते, तब हिन्दी को अलग करने की चाह क्यों?ग
वैसे भी कोई भाषा किसी पर थोपी नहीं जा रही, बल्कि सब जनस्वीकार्यता के आगे नतमस्तक है। ऐसे दौर में भारत को अपनी सांस्कृतिक संपन्नता को कमज़ोर नहीं आँकना चाहिए। भारतीयता को बचाना है तो भारत की भाषाई पहचान हिन्दी को मज़बूत करना होगा, वह हेय की नहीं हित की भाषा है।।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक
इन्दौर

सड़कों पर कब्ज़ा या बदरंग होता शहर

◆ डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

शहर उत्सवधर्मी है, उत्सवों का अपना आनंद भी है, और इन्हीं उत्सवों की बदौलत इन्दौर की आर्थिक तंदरुस्ती भी बनी रहती है। किन्तु त्योहार हर व्यक्ति के होते है, इस बात से बेख़बर ये तथाकथित बड़े दुकानदारों ने तो अपनी दुकान सड़कों पर ही लगा रखी है। बची-कुची पार्किंग पर भी इनका कब्ज़ा है, अथवा सड़कों पर ग्राहकों की गाड़ियों को पार्क करवा कर सीधे तौर पर सड़कों पर अतिक्रमण करने आम राहगीर का जीना दूभर कर रहे हैं, और प्रशासन है कि हमेशा की तरह हाथ पर हाथ धरकर बैठा है, जैसे मानो कुछ अतिक्रमण हो ही नहीं रहा क्योंकि ‘समरथ को नहीं दोष गुसाईं’?

कारण कुछ भी हो पर शहर के प्रति इस तरह की प्रशासनिक अनदेखी सोचने पर विवश करती है कि इस तरह की रहमदिली प्रशासन ने क्यों दिखा रखी है? पलासिया से साकेत नगर जाने वाले मार्ग में ग्रेटर कैलाश के सामने की ओर सड़कों पर चौपहिया वाहनों की अनाधिकृत पार्किंग बन गई, उसी मार्ग पर आए दिन जाम लगता है। दो मिठाई की प्रसिद्ध दुकानों के ग्राहकों के चौपहिया वाहनों का कब्ज़ा सड़क पर है, इससे आगे निकले तो कैप के बड़े ब्रांड की दुकान से लेकर आगे वाले कॉम्प्लेक्स दोनों में पार्किंग की समुचित व्यवस्था नहीं है, इस कारण वहाँ के रहवासी दुकानदारों और ऑफ़िस मालिकों की गाड़ियाँ भी सड़कों पर पार्क हैं। यही हाल साकेत चौराहे से आनंद बाज़ार जाने वाले रास्ते के मोड़ का भी है।
बहरहाल, यही हाल शहर के अन्य-अन्य स्थानों का भी है, पर प्रशासन का अतिरिक्त प्रेम इन बड़े दुकानदारों पर क्यों है? जबकि इसी शहर में नगर निगम की पीली गैंग ने सड़कों पर ग़रीबों की दुकानों से सामान सड़क पर फेंका है। रेहड़ियों को पलट कर ग़रीब के सामान को लूटा है। शहर के पश्चिम क्षेत्र के बाज़ारों में तो पैर रखने की जगह नहीं, आधी सड़क तो अतिक्रमण से दुकानदारों ने घेरी हुई है और बची हुई जगह पर लोगों ने गाड़ियों की पार्किंग रख ली। अब इस शहर का भगवान ही मालिक बचा है।

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
पत्रकार एवं लेखक