लघुकथा- बदलाव

“अरे आश्वस्ति! तुम अपने मायके से इतनी जल्दी कैसे आ गई?” पड़ोस वाली भाभी ने लौटती हुई आश्वस्ति से पूछा।

“अब क्या ही बताऊँ भाभी! आजकल मायके से ज़्यादा अपना घर याद आता है। वहाँ भी भाभी, भैया की अपनी ज़िंदगी है। उनके भी अपने काम हैं। एक समय बाद मायका बदल ही जाता है।”

“अच्छा! क्या इसीलिए तुम्हारी ननद भी आजकल छुट्टियों में तुम्हारे घर कम आती है?”

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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