हाँ !
प्यार की ठण्ड से *ठिठुरते* जज्बातों पर
मैं तुम्हारी तपन बनूंगा,

हाँ !
उम्मीद के स्याह आसमान में दीपक-सी
मैं तुम्हारे लिए रोशनी बनूंगा,

हाँ!
थामकर हाथ मेरा चलने की आदत है तुम्हें
मैं तुम्हारी लाठी बनूंगा,

हाँ !
तुम्हें जरुरत दवा की नहीं मेरे साथ की है,
मैं तुम्हारी जरुरत बनूंगा

हाँ!
स्वप्नों की सेज पर संबलता का साया,
मैं तुम्हारी हकिकत बनूंगा

हाँ!
गन्तव्य पर पथिक बन चलों तुम,
मैं तुम्हारी कोशिश बनूंगा,…

 

*डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’*


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