सूर्यकांत नागर

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ऐसी शख़्सियत हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मातृभाषा हिन्दी और उसके साहित्य के उन्नयन के लिए समर्पित किया हुआ है। नाम के अनुरूप अपने इस यज्ञ के प्रति वे अचल-अटल हैं, निरंतर क्रियाशील। उन्होंने व्रत ले रखा है कि जब तक हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं बनती, तब तक वे मिष्ठान्न नहीं खाएँगे। इस प्रकार का आत्म-नियंत्रण कठिन काम है, किन्तु डॉ. अर्पण जैन ने उसे अच्छे से साधा हआ है।
डॉ. अर्पण जैन उत्साही और समर्पित व्यक्तित्व हैं। आज जब बाज़ारवाद, भूमण्डलीकरण और सोशल मीडिया के कारण हिन्दी के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं, डॉ. जैन की यह संपूर्ण यात्रा हिन्दी के उत्कर्ष के लिए निश्चित ही कारगर सिद्ध होगी।

सूर्यकांत नागर
वरिष्ठ साहित्यकार, इन्दौर