डॉ. विकास दवे

तीन पग नापकर वामन का विराट हो जाना अर्थात अर्पण जैन और मातृभाषा उन्नयन संस्थान

प्रिय अनुज अर्पण जैन अपने कार्यों के कारण इस समय संपूर्ण देश में यश को प्राप्त कर रहे हैं। विशेष कर भाषा और साहित्य की सेवा के लिए उनकी प्रतिबद्धता हम सबको आकर्षित भी करती है और प्रभावित भी। उनकी अनेक योजनाओं को इस समय संपूर्ण भारत का साहित्य जगत और भाषा की सेवा करने वाली संस्थाएं अत्यंत जिज्ञासा और प्रेरक तत्व के रूप में देख रही हैं। पहले उन्होंने जब हिंदी में हस्ताक्षर को प्रोत्साहन देने के लिए देशभर से आवाहन किया और उस आवाहन के फल स्वरुप लगभग तीस लाख लोगों ने हिंदी में हस्ताक्षर करना प्रारंभ किया तो इस कार्य की गूंज प्रदेश और देश की राजधानियों तक होने लगी। दूसरे पग पर जब साहित्यकारों को सम्मान देना प्रारंभ किया तो सम्मान स्वयं सम्मानित होने लगे। इसी प्रकार तीसरे पग पर इन दिनों उन्होंने अपने घर में एक कोना पुस्तकों के लिए सुरक्षित रखने तथा जिन साहित्य अनुरागियों के घर में बड़े पुस्तकालय हैं उन्हें सम्मानित करने का उपक्रम प्रारंभ किया है। यह कदम भले ही छोटे दिखाई देते हों किंतु उनके दूरगामी परिणाम निश्चय ही अर्पण भाई को और अधिक यशस्वी बनाएंगे।

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