एक साक्षात्कार – डॉ अर्पण जैन अविचल का…

नाम: डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ पिता: श्री सुरेश जैन माता: श्रीमती शोभा जैन पत्नी: श्रीमती शिखा जैन जन्म: २९ अप्रैल १९८९ शिक्षा: बीई (संगणक विज्ञान अभियांत्रिकी) एमबीए (इंटरनेशनल बिजनेस) पीएचडी- भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ पुस्तकें: १. मेरे आंचलिक पत्रकार ( आंचलिक पत्रकारिता पर केंद्रित पुस्तक ) २. काव्यपथ ( काव्य संग्रह) ३. राष्ट्रभाषा (तर्क और विवेचना) ४. नव त्रिभाषा सूत्र (भारत […]


यादों में हमेशा रहेंगे सेठ साहब

यादों में हमेशा रहेंगे सेठ साहब हाँ! याद है पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए पोस्टकार्ड अभियान हेतु सेठ साहब से मिलना, पूर्ण समर्थन करने से शुरु हुआ मिलना, जानना उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को…। शहर की जनता को राजवाड़ा वापस दिलवाने के संघर्ष से लेकर कई बड़े मुद्दे जिनमें स्ट्रीट लाईट की सौगात और यहाँ […]


मैं जरुरत बनूंगा

हाँ ! प्यार की ठण्ड से *ठिठुरते* जज्बातों पर मैं तुम्हारी तपन बनूंगा, हाँ ! उम्मीद के स्याह आसमान में दीपक-सी मैं तुम्हारे लिए रोशनी बनूंगा, हाँ! थामकर हाथ मेरा चलने की आदत है तुम्हें मैं तुम्हारी लाठी बनूंगा, हाँ ! तुम्हें जरुरत दवा की नहीं मेरे साथ की है, मैं तुम्हारी जरुरत बनूंगा हाँ! […]


भारतीय

तारीखों के पटलने से साल बदल जाता है, मौसम के पटलने से नव सृजन मना कर देखो, हाँ ! तुम जो आज नया साल मना रहे हो, गुलामी की जंजीरों से परे निकल कर देखो, हाँ ! वही बेड़ियाँ जिसमें शताब्दियों की चारणता है, कभी स्वाधीनता के समर का विज्ञान बनकर देखो, हाँ ! वही […]


स्वास्थ्य समस्या- जिम्मेदार कौन

  हमारे धर्म शास्त्रों में मानव शरीर को सबसे बड़ा साधन माना गया है | कहा भी गया है कि *शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम*– यानी यह शरीर ही सारे अच्छे कार्यों का साधन है | सारे अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं| जब शरीर स्वस्थ रहेगा तो मन और दिमाग तंदरुस्ती से […]


लघुकथा- मंचों की कवयित्री

*2.लघुकथा-मंच की कवयित्री* संस्कृति मंचों की एक उम्दा कवियत्री है । सप्ताह में 4 से अधिक कवि सम्मेलनों में रचना पाठ करना ही संस्कृति की पहचान थी । पुरुषप्रधान समाज होने के कारण कई बार संस्कृति का सामना फूहड़ कवियों और श्रोताओं से भी होता था । इसी बीच एक गाँव में हुए कवि सम्मेलन […]


लघुकथा- प्रतिक्रिया

*लघुकथा- प्रतिक्रिया* सारांश अपनी व्यस्त जीवन शैली में संचयनी के साथ बहुत खुश था, पर संचयनी अपनी सहेलियों और सहकर्मीयों के बीच बहुत सीधी और भोली थी | संचयनी के सहकर्मी उसके भोलेपन का हमेशा नाजायज फायदा उठा कर संचयनी को ही तंज कसते रहते थे, जिसके कारण वह पिछले कुछ दिनों से थोड़ी उखड़ी-उखड़ी […]


हिन्दी ही भारत की आत्मा

हिन्दी साहित्य के कुछ नौनिहालों ने आजकल भाषा को अंगवस्त्र बना डाला है, मानो शब्दों को व्याकरण का मैल समझ कर उसे पौंछ कर फैंकने भर को ही साहित्य सृजन मानने लगे हैं | इस दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार भी हमेशा की तरह आज का पाठक वर्ग ही माना जाएगा, जिसने सर आँखों पर बैठाने […]